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नई दिल्ली। भारत सरकार ने कहा है कि वैश्विक खाद्य पदार्थों और कच्चे तेल के मूल्यों में हुई वृद्धि के कारण निरंतर रूप से उच्च स्तर पर बने रहे थोक मूल्य सूचकांक (डब्लयूपीआई) के स्तर में कमी आने के संकेत मिलने प्रारंभ हो गए हैं और इसके मार्च 2012 तक 6.5 से 7 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है। वर्ष 2012-13 के दौरान सरकार द्वारा उठाए गए कड़े मौद्रिक और अन्य उपायों के कारण इसमें और भी कमी आने की संभावना है। मूल्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए 2011-12 की आर्थिक समीक्षा में यह ध्यान दिया गया कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में खाद्य मुद्रा स्फीति में आई कमी के कारण डब्ल्यूपीआई और सीपीआई मुद्रास्फीति के अंतराल में महत्वपूर्ण रूप से कमी हुई है। अगस्त 2010 से 2011 के बीच सीपीआई-आईडब्ल्यू के एक अंक पर रहने के बाद सितम्बर 2011 में यह 10.1 प्रतिशत पर पर पहुंचा और दिसम्बर 2011 में यह फिर से कम होकर 6.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गया।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2011-12 के दौरान मौद्रिक नीति का उद्देश्य मुद्रा स्फीति में कमी लाना और इसकी संभावनाओं पर निरंतर नजर रखना रहा है। विकसित देशों के अनिश्चित आर्थिक परिदृश्य और खाद्य मुद्रा स्फीति से जुड़े आपूर्ति घटकों को देखते हुए मौद्रिक नीति का कार्य खास तौर पर चुनौतीपूर्ण रहा है। वर्ष 2011-12 के दौरान, घाटे में तरलता की स्थितियां आम तौर पर बनी रही, हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने मानक उपायों से तरलता से जुड़ी चिंताओं का समाधान भी किया। समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि मौद्रिक नीति के बेहतर समायोजन के लिए भारतीय संदर्भ को देखते हुए नीति दर परिवर्तन और मुद्रास्फीति के बीच संपर्कों का मूल्यांकन करने की जरूरत है।
मूल्य प्रबंधन के क्षेत्र के मामले में, आर्थिक समीक्षा में मुद्रास्फीति के नियंत्रण और उससे जुड़ी संभावनाओं पर खासतौर पर ध्यान देने पर जोर दिया गया है। इन उपायों के अपनाने से वैश्विक मंदी और अतंरराष्ट्रीय बाजार में तेल मूल्यों की वृद्धि जारी रहने के बावजूद भी मार्च तक मुद्रास्फीति की दर कम होकर करीब 6.5 से 7.0 प्रतिशत तक रहने की संभावना है।