नरेश भारद्वाज
हरिद्वार। कुंभ! प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन-भारत में कुंभ के ये चार पवित्र स्थल हैं, जहां हर बारह वर्ष के अंतर से लगने वाला स्नान दान और मोक्ष का यह सर्वश्रेष्ठ ग्रहयोग आता है। ब्रह्माण्ड की अलौकिक शक्ति भगवान शिव के आसन हिमालय की तलहटी में बसी विश्व विख्यात पवित्र नगरी हरिद्वार में मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त के साथ यह योग शुरू हो चुका है। इस योग में करीब दस लाख लोगों ने डुबकी लगाकर अपने मोक्ष और पुण्य फलों की कामना की। हरिद्वार में कुंभ पर्व का जो महत्व है उसका वर्णन पुराणों में बहुत विस्तार से है। जिस समय गुरू कुंभ राशि पर और सूर्य मेष राशि पर हो तब हरिद्वार में कुंभ पर्व आता है। हरिद्वार सहित अन्य स्थानों पर भी कुंभ के ग्रहयोग का विलक्षण वर्णन है।
जब सूर्य और चंद्र मकर राशि पर हों, गुरू वृषभ राशि पर और अमावस्या भी हो तो प्रयाग में कुंभ योग पड़ता है। इस अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करना सहस्त्रों अश्वमेघ यज्ञों के बराबर माना जाता है। यहां कुंभ सैकड़ों यज्ञों और एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है। तीर्थ यात्रियों को इसके मुख्य दो लाभ होते हैं, एक-गंगा स्नान और दूसरा संत समागम। जिस समय गुरू सिंह राशि पर स्थित हो और सूर्य एवं चंद्र कर्क राशि पर हों तब नासिक में कुंभ होता है। जिस समय सूर्य तुला राशि पर हो और गुरू वृश्चिक राशि पर हो तब उज्जैन यह महान पर्व मनाया जाता है। कुंभ की उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में मनोरंजक कथाएं हैं और इनका संबंध समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए अमृतघट से है। कथा के अनुसार इस अमृतघट को असुर उठा ले गए थे जिसको गरूड़ पुन: पृथ्वी पर ले आए। जिन-जिन स्थानों पर यह अमृतघट रखा गया, वहां अमृत बूंदों के छलक जाने से वे सभी स्थान पुण्य स्थल हो गए। कहा जाता है कि इन स्थानों पर निश्चित समय पर स्नान-दान-पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कहते हैं कि त्रेता युग में राजा भगीरथ जब गंगा को धरती पर लाए थे तब हरिद्वार में ब्रह्मकुंड पर गंगा की पहली आरती उतारी थी। हरिद्वार में गंगा की आरती विख्यात है और इस मौके पर हजारों लोग हर की पौड़ी पर आया करते हैं। महामना मदन मोहन मालवीय ने भी तीर्थ पुरोहितों को साथ लेकर गंगा की आरती उतारी थी। आज हर की पौड़ी की संस्था गंगा सभा ने इस जिम्मेदारी को संभाला हुआ है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लाखों लोगों ने गंगा की आरती का पुण्य दर्शन किया। कुंभ पर हरिद्वार और मेला क्षेत्र रंग-बिरंगी रोशनी से नहाया हुआ है। चौराहों और अन्य स्थानों पर सुरक्षा बलों की तैनाती सुरक्षा का एहसास प्रदान करती है। साधु-सन्यासियों और तीर्थ यात्रियों के काफिले आध्यात्मिक चेतना पैदा करते हैं। मेला नियंत्रण कक्ष की मीनार से कुंभ का नज़ारा बेहद चमत्कृत करता है। गंगा की धारा में स्थापित मां गंगा की विशाल प्रतिमा आस्था का केंद्र बनी हुई है। भूमा निकेतन, भारत माता मंदिर, तुलसी आश्रम, दक्ष प्रजापति मंदिर, चंडी देवी और मनसा देवी के मंदिर श्रद्धालुओं की अनवरत आवाजाही से गुलज़ार है। कुंभ में श्रद्धालुओं के साथ-साथ अखाड़ों का स्नान कुंभ मेला प्रशासन के लिए चुनौती भरा है क्योंकि इनके स्नान को लेकर कई बार विवाद उठ चुका है। प्रशासन ने इनकी सुविधा के लिए ख़ास इंतजाम किए हैं।
भारी सुरक्षा प्रबंधों के बीच महाकुंभ का पहला स्नान मकर संक्रांति पर सकुशल संपन्न हो गया। महाकुंभ मेला प्रशासन ने मेले में सुरक्षा और व्यवस्था के कड़े प्रबंध किए हैं जिनकी प्रशासन लगातार समीक्षा कर रहा है। हरिद्वार में करीब पांच करोड़ तीर्थयात्रियों के आने की संभावना को देखते हुए जो कदम उठाए गए हैं उनमें सुगम यातायात और सुरक्षा को यूं तो सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है लेकिन हरिद्वार में देश दुनिया से पहुंचने वालों को बाकी कठिनाईयों से भी मुक्त रखने पर ध्यान दिया गया है। मेला प्रशासन और हरिद्वार जिला प्रशासन अपने प्रबंधों में कहां तक सफल होता है इसकी परीक्षा महाकुंभ के मकर संक्रांति के स्नान से ही शुरू हो गई है। मकर संक्रांति पर स्नान का मुहूर्त सुबह 4 बजे शुरू हुआ। सबेरे 10 बजकर 15 मिनट पर मौनी अमावस्या आरंभ हो गई जो 15 जनवरी की दोपहर 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। सूर्य के मकर राशि में होने पर उत्तरायण में पड़ने वाले इस महाकुंभ के पहले स्नान का बहुत महत्व माना जाता है। स्कंद पुराण के हरिद्वार महात्मय खंड में उल्लेख है कि 'कुंभयोगे हरिद्वारे न्नयहं स्नानेनयत्फलम्, नाश्वमेधसहस्रेण तत्फलं भजते भुवि' अर्थात कुंभ पर्व के समय पावन गंगा जल में स्नान करने का जो फल प्राप्त होता है, वह पृथ्वी पर एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता।
देश के विभिन्न भागों से तीर्थ यात्री कई दिन पहले से ही पहुंचने शुरू हो गए थे। बत्तीस सेक्टरों में बंटे कुंभ मेला क्षेत्र में नियंत्रण कक्ष से सीसी टीवी से निगरानी का प्रबंध किया गया है। हर सेक्टर के लिए एक सेक्टर प्रभारी तैनात किया गया है। उत्तर रेलवे ने पहले स्नान को ध्यान में रखते हुए दो विशेष रेलगाड़ियां शुरू कीं। पार्किंग स्थलों से गंगा घाट तक का सफर रोडवेज की बसों से तय किया गया है। सभी मार्गों से आने वाले तीर्थ यात्रियों को हर की पौड़ी के पास बस स्टॉप पर लाया गया है। यहीं से ही पार्किंग स्थलों पर वापसी सुनिश्चित की गई है।
विभिन्न मार्गों से हरिद्वार पहुंचने वालों की व्यवस्था इस प्रकार है-दिल्ली मेरठ, पानीपत की ओर से आने वाले यात्री सीधे मुजफ्फरनगर से रुड़की होते हुए हरिद्वार जा सकेंगे और हरिद्वार से वापसी के लिए लक्सर मार्ग से जाया जा सकेगा। सहारनपुर, हरियाणा, पंजाब से आने वाले यात्रियों को भगवानपुर से धनौरी होते हुए बीएचईएल (भेल) लाया जाएगा। यहां से इनके वाहनों की सिडकुल और धीरवाली में पार्किंग होगी। बिजनौर बरेली और कुमाऊं से आने वाले वाहन नजीबाबाद-श्यामपुर होते हुए हरिद्वार पहुंचेंगे जिनकी पार्किंग गौरीशंकर द्वीप में बनाई गई है। देहरादून और हिमांचल की ओर से आने वाले वाहनों को सूखी नदी पार्किंग तक लाया जाएगा फिर सप्तसरोवर और मोतीचूर की पार्किंग में भेजा जाएगा। पार्किंग के बाद मेले तक पहुंचाने का काम रोडवेज की बसें ही करेंगी।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने मकर संक्रांति पर बधाई देते हुए लोगो की सुख-समृद्धि की कामना की है। मेला अधिकारी आनंद वर्धन और डीआईजी आलोक शर्मा का कहना है कि उनकी प्राथमिकता कुंभ के सकुशल संपंन होने की है। यह एक ऐसा धर्म-आध्यात्म समागम है जिसमें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भी दिलचस्पी रहती है। कुंभ की व्यवस्था को सुनिश्चित करने में हर पहलू को ध्यान में रखा गया है जिसमें सुरक्षा सबसे प्रमुख विषय है। कुंभ में मीडिया से समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी (मीडिया) डा अशोक शर्मा को दी गई है।