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Wednesday 26 August 2020 05:17:38 PM
नई दिल्ली। डॉल्फिन एक अनोखी प्रजाति है, जो मुख्य रूपसे एशिया और दक्षिण अमेरिका की नदियों में पाई जाती है और तेजी से लुप्त हो रही है। भारत के राष्ट्रीय जलीय जानवर गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने लुप्तप्राय घोषित किया है। एक वेबिनार में क्षेत्रीय सहयोग के जरिए डॉल्फिन के संरक्षण और इनकी आबादी बढ़ाने को लेकर भविष्य की रणनीति पर चर्चा हुई। 'नदियों और इसमें पलती डॉल्फिन आबादी के पारिस्थितिकी स्वास्थ्य पर कोविड-19 के प्रभाव का अन्वेषण: भारत-बांग्लादेश-म्यांमार-नेपाल में संरक्षण के लिए वर्तमान स्थिति और भविष्य की रणनीति' पर इनलैंड फिशरीज सोसाइटी ऑफ इंडिया, आईसीएआर-केंद्रीय अंतर्स्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, प्रोफेशनल फिशरीज ग्रेजुएट्स फोरम और एक्वाटिक इकोसिस्टम हेल्थ एंड मैनेजमेंट सोसाइटी ने यह वेबिनार आयोजित किया था।
आईसीएआर-सीआईएफआरआई के निदेशक डॉ बीके दास ने वेबिनार के उद्देश्य और प्रमुख बिंदुओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वेबिनार दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्रीय देशों में डॉल्फिन संरक्षण को बढ़ाने में मदद करेगा। डीडीजी (मत्स्य विज्ञान) आईसीएआर डॉ जेके जेना ने कहा कि कम अशांति और बिना हस्तक्षेप से डॉल्फिन अपने आप फल-फूल सकती हैं और यही हमने लॉकडाउन में देखा है। उन्होंने कहा कि ये जानवर सीमाएं नहीं समझते हैं और जहां भी संभव हो, वहां रहने की कोशिश करते हैं, इसीलिए उनका संरक्षण करने में क्षेत्रीय सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक डॉ बीसी चौधरी ने डॉल्फिन पर अब तक किए गए शोध का ऐतिहासिक विवरण सामने रखा। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने गंगा के कायाकल्प में डॉल्फिन संरक्षण के महत्व को जोड़ते हुए अपने अनुभव साझा किए।
गंगा नदी के कायाकल्प पर काम करते हुए डॉल्फिन संरक्षण को पूरे देश के ध्यान में लाने के लिए नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप एमओईएफ के तहत हाल में प्रधानमंत्री द्वारा 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' की घोषणा की गई है। यह परियोजना 'प्रोजेक्ट टाइगर' के अनुरूप होगी जिसने बाघों की आबादी बढ़ाने में सफलतापूर्वक मदद की है। हालांकि अब सबसे महत्वपूर्ण बात जिसपर ध्यान देने की जरूरत है कि वैज्ञानिक कोशिश के साथ सामुदायिक भागीदारी भी सुनिश्चित हो। नमामि गंगे ने प्रदूषण उन्मूलन के साथ जैव विविधता और पारिस्थितिक सुधार को महत्व दिया है और सीआईएफआरआई के साथ मत्स्य पालन में सुधार और भारत वन्यजीव संस्थान के साथ जैव विविधता संरक्षण के लिए परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इस ढांचे के तहत यह अपनी तरह का पहला अवसर है, जहां मत्स्य क्षेत्र डॉल्फिन संरक्षण के अभियान की अगुवाई कर रहा है। यह महत्वपूर्ण चर्चा भारत में 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' की रूपरेखा तय करने में बहुत सहायक सिद्ध होगी।
आईसीएआर-सीआईएफआरआई बैरकपुर के पूर्व निदेशक प्रोफेसर एपी शर्मा ने डॉल्फिन के रहने के ठिकाने की बहाली पर शोध की आवश्यकता पर प्रकाश डाला और आईसीएआर-सीआईएफई के पूर्व कुलपति डॉ दिलीप कुमार ने ग्रामीण भारत में मछुआरों के जीवन के सामाजिक पहलुओं और डॉल्फिन के बारे में बताया। सीआईएफआरआई के माध्यम से नमामि गंगे के तहत मत्स्य संरक्षण के प्रयासों से डॉल्फिन के निवास स्थान में ही उसके शिकार का बेस मजबूत होगा, जिससे डॉल्फिन की आबादी में वृद्धि होगी। मछुआरों की आजीविका में सुधार होने से वे भी संरक्षण के प्रयासों में शामिल होते हैं। एक देश से दूसरे देश की सीमा में भी प्रयासों को मजबूती देने और एक क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम तैयार करने के लिए समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। स्थानीय प्रसार और एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवाजाही के लिए नॉर्थ ईस्ट की नदियों में छोटे ठिकानों पर विशेष अध्ययन की आवश्यकता है। छात्रों, सामुदायिक जुड़ाव और समग्र जागरुकता में सुधार के लिए डॉल्फिन शिक्षा महत्वपूर्ण है।
डॉल्फिन की गणना के लिए पानी के भीतर आधुनिक ध्वनिक विधि का इस्तेमाल किया जाएगा। जैव विविधता के दृष्टिकोण से पर्यावरण-प्रवाह का आकलन और क्रियांवयन महत्वपूर्ण है। सुंदरबन डेल्टा एक अद्वितीय पारिस्थितिक स्थान है, जहां गंगा के साथ-साथ इरावदी डॉल्फिन मौजूद हैं, यह भारत के साथ-साथ बांग्लादेश में भी फैला हुआ है। सम्मेलन ने डॉल्फिन पर अनुभव साझा करने का एक अनूठा अवसर दिया। यह म्यांमार और चिल्का झील प्राधिकरण द्वारा इरावदी डॉल्फिन के संदर्भ में भी पूरक था। वेबिनार में दुनियाभर के 1000 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। 'म्यांमार में इरावदी डॉल्फिन के संरक्षण के उपाय' पर डॉ हला विन डीडीजी-मत्स्य-सेवानिवृत्त म्यांमार, 'नेपाली नदियों में डॉल्फिन की स्थिति' पर डॉ माधव के श्रेष्ठ प्रोफेसर एक्वाकल्चर एएफयू (सेवानिवृत्त) नेपाल और 'राष्ट्रीय एटलस और डॉल्फिन एक्शन प्लान-बांग्लादेश' पर प्रोफेसर मोहम्मद ए अजीज, वरिष्ठ विशेषज्ञ बांग्लादेश प्रोफेसर बेनजीर अहमद, एक्वाटिक इकोसिस्टम हेल्थ ऐंड मैनेजमेंट सोसाइटी कनाडा के डॉ एम मुनव्वर और जानेमाने वैश्विक विद्वानों ने सम्मेलन में विचार रखे। सम्मेलन में इस क्षेत्रीय और बहुक्षेत्रीय सहयोग को जारी रखने का संकल्प लिया गया।