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अज्ञेय ने ग़रीबों और दलि‍तों के लिए लि‍खा-अंसारी

सच्‍चि‍दानंद हीरानंद वात्‍सायन 'अज्ञेय' की जन्‍मशती

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'अज्ञेय' जन्‍मशती समारोह/birth centenary of 'agyeya'

कोलकाता। उपराष्‍ट्रपति ‍मोहम्‍मद हामि‍द अंसारी ने कहा है कि सच्‍चि‍दानंद हीरानंद वात्‍सायन 'अज्ञेय' उस युग से संबंध रखते हैं, जब एक से अधि‍क वि‍धाओं में पारांगत होना असंभव था, एक दि‍ग्‍गज साहि‍त्‍यि‍क प्रति‍भा होने के नाते उन्‍होंने कवि‍ता, लघु कथा, समालोचना, उपन्‍यास, यात्रावृत्त, नि‍बंध और नाट्य सहि‍त साहि‍त्‍य लेखन की लगभग सभी वि‍धाओं में नए प्रयोग शुरू कि‍ए।
कोलकाता में सच्‍चि‍दानंद हीरानंद वात्‍सायन 'अज्ञेय' के जन्‍मशती समारोह को संबोधि‍त करते हुए मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा अज्ञेय ने पत्रकारि‍ता में भी हाथ आजमाए और गरीबों तथा दलि‍तों के मसलों पर लि‍खा। वे एक देशभक्‍त तथा क्रांति‍कारी स्‍वतंत्रता सेनानी थे, जि‍न पर चंद्रशेखर आजाद के चरि‍त्र ने गहरी छाप छोड़ी थी। वे एक बहुभाषावि‍द् थे और हिंदी, अंग्रेजी, संस्‍कृत तथा फारसी के अच्‍छे ज्ञाता थे। वे भारतीय सेना में भी रहे और उन्‍होंने दलि‍तों के कल्‍याण के लि‍ए सामाजि‍क आंदोलनों में भी भाग लि‍या। शि‍क्षा के क्षेत्र में भी उनकी दि‍लचस्‍पी रही, खासतौर से हिंदी के शि‍क्षण में। उनकी व्‍यापक अभि‍रुचि‍यां और साहि‍त्‍य रचनाओं में वेदांत की वि‍चारधारा से मेल खाती गहरे दर्शन की छाप, उन्‍हें वि‍श्‍व कवि ‍रबींद्रनाथ टैगोर की साहि‍त्‍यि‍क श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है।
मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा कि वात्‍सायनजी ने हिंदी को एक जीवंत और वि‍कासशील भाषा बनाने के लि‍ए संघर्ष कि‍या न कि ‍एक मानक तथा सभी के लि‍ए नि‍यमों में बंधी हिंदी के लि‍ए। उनके वि‍चार में ऐसी हिंदी केवल सरकारी अधि‍सूचनाओं और नि‍यमावलि‍यों के लि‍ए ही उपयुक्‍त होगी। मानकीकृत और शुष्‍क भाषा साक्षरता के वि‍स्‍तार के लि‍ए उपयोगी हो सकती है, लेकि‍न उनका मानना था, कि ‍साक्षरता का तर्क राष्‍ट्रीय भाषा के लि‍ए तर्क नहीं हो सकता। उन्‍होंने बहुत जोरदार तर्क दि‍या था कि ‍भाषा एस्‍पेरेंटो जैसी कृत्रि‍म रचना नहीं हो सकती, बल्‍कि ‍इसे वि‍कासशील और परि‍वर्तनशील होना चाहि‍ए और ऐसी स्‍थि‍र भाषा होना चाहि‍ए, जो साधारण स्‍त्रि‍यों और पुरुषों के मस्‍ति‍ष्‍क की गहराई से नि‍कली हो। अज्ञेय की मातृभाषा हिंदी नहीं थी किंतु वे असाधारण‌ हिंदी लेखक बन गए।

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