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बैंगलूरू। भाकपा (माले) की केंद्रीय कमेटी की विगत 4 से 6 जुलाई तक बैंगलोर में बैठक हुई, जिसके बाद जारी प्रेस विज्ञप्ति में देश की स्थिति का मूल्यांकन करते हुए कहा गया है कि केंद्र की संप्रग सरकार की नव-उदारवादी नीतियों ने देश को घनघोर संकट में फंसा दिया है। महंगाई, खासकर जीवनोपयोगी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने जनता का जीना मुहाल कर दिया है। बेरोज़गारी और अर्द्ध-बेरोज़गारी विकराल रूप लेती जा रही है तथा भ्रष्टाचार सर्वव्यापी हो गया है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि आज यूरोप आर्थिक सुनामी का केंद्र बन हुआ है, जो वर्ष 2008 के अमेरिकी आर्थिक संकट से कहीं ज्यादा गहरा है। पिछले बीस वर्ष के दौरान साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण की नीतियों को लागू करके हमारे देश की अर्थव्यवस्था को साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ दिया गया है, इसलिए जब साम्राज्यवादी देशों में आर्थिक संकट आता है, तो हमारा देश तुरंत इस बीमारी से ग्रसित हो जाता है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर काफी कम हो गई है और एक ऐसी स्थिति बन गई है कि उत्पादन स्थिर सा हो गया है, मगर महंगाई और मुद्रास्फीति बढ़ती जा रही है। इस विकट स्थिति से देश और जनता को निकाल पाना केवल तभी संभव है, जब नव-उपनिवेशिक गुलामी की इन नीतियों को पूरी तरह उलट दिया जाए, किंतु ऐसा करने के बजाय, मनमोहन सरकार आईएमएफ, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन और बहुराष्ट्रीय निगमों की हुक्मशाही के सामने समर्पण करते हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और संस्थागत विदेशी निवेश (एफआईआई) के लिए देश के दरवाजे को लगातार खोलते जा रही है।
यह गुलामी का रास्ता है। यह प्राकृतिक व मानव संसाधनों को लूटने में लगे साम्राज्यवादी, देशी कारपोरेट तथा राजनेताओं, अफसरशाही, ठेकेदारों, माफियाओं को खुश करने का रास्ता है। केंद्र की संप्रग सरकार और कर्नाटक की भाजपा सरकार, दोनों ही राष्ट्रद्रोह के इस रास्ते पर चल रही हैं, जिससे जनता दरिद्र और देश तबाह हो रहा है। राष्ट्रीय विश्वासघात की इन नीतियों पर पर्दा डालने के लिए, केंद्र एवं राज्यों में सत्ता में साझीदारी कर रही सभी पार्टियां सांप्रदायिकता, जातिवादी उत्पीड़न एवं राजकीय आतंक तेज कर रही हैं। अब तक जो लोकतांत्रिक अधिकार थे, उन्हें भी छीन लिया गया है। सभी क्षेत्रों में अंधाधुंध भ्रष्टाचार व्याप्त है। जनता का विशाल बहुमत संकट के अत्यंत बुरे दिनों से गुजर रहा है।
जनता को गोलबंद कर इसके खिलाफ लड़ने के बजाय, माकपा के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा, जो पश्चिम बंगाल और केरल में सत्ता में था, इन्हीं नव-उदारवादी नीतियों पर अमल करते हुए जनता से अलग-थलग पड़ गया और इन दोनों राज्यों में उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा, इसके बावजूद, राष्ट्रपति पद के चुनाव में माकपा संप्रग के उम्मीदवार, प्रणव मुखर्जी का समर्थन कर रही है, जो दर्शाता है कि इसका कितना अधःपतन हो चुका है। दूसरी तरफ, माओवादियों की अराजक गतिविधियां, शासन व्यवस्था के बहाने चल रही हैं, जिनकी आड़ में आदिवासियों की हत्याएं की जा रही हैं और उन्हें आतंकित किया जा रहा है, ताकि इन इलाकों की समृद्ध खनिज संपदा को लूटा जा सके। माकपा और माओवादी, दोनों ही असल में शासन व्यवस्था की सेवा कर रहे हैं।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस परिस्थिति में भाकपा (माले) की पहल पर सच्ची वामपंथी और जनवादी ताकतों को गोलबंद कर लोकतांत्रिक जन मंच (डीपीएफ) का गठन किया गया है। इसका मकसद है, साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण, सांप्रदायिकता, जाति व्यवस्था, भ्रष्टाचार और राज्य के अपराधीकरण के खिलाफ एक जनपक्षीय विकल्प का निर्माण करना। राज्यों में भी इस तरह के मंचों का निर्माण किया जा रहा है। भाकपा (माले) की केंद्रीय कमेटी ने निर्णय लिया है कि विस्थापन, झुग्गी-बस्तियों को उजाड़े जाने, कारपोरेट-माफिया द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की लूट, परमाणु बिजलीघरों के निर्माण, आदि के खिलाफ देशभर में जो अनेक आंदोलन चल रहे हैं, उन्हें एक साथ लाने का प्रयास तेज किया जा जायेगा। केंद्रीय कमेटी ने निर्णय लिया है कि वह लोकतांत्रिक जन मंच की 7 नवंबर की अहमदाबाद रैली को सफल बनाने के लिए पूरा जोर लगायेगी। साथ ही, दिसंबर माह में होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव में सभी जनवादी ताकतों को एकताबद्ध कर प्रत्याशी खड़ा करने का निर्णय भी लिया गया है।
आरोप लगाया गया है कि कर्नाटक में भाजपा सरकार में माफिया राज चल रहा है, जो राज्य के संसाधनों को लूटने में व्यस्त है। सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। इस पर पर्दा डालने के लिए सांप्रदायिक फूटपरस्ती का सहारा लिया जा रहा है। राजनीतिक अधःपतन और लूट में हिस्सेदारी के लिए भाजपा के अंदरूनी झगड़े ने कर्नाटक को संकट में धकेल दिया है इस स्थिति में भाकपा(माले) ने राज्य विधानसभा को भंग कर तुरंत चुनाव कराने की मांग की है। पार्टी ने इस मांग को लेकर 1 अगस्त से राज्यव्यापी अभियान छेड़ा हुआ है। पार्टी ने कर्नाटक में करीब 40 सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने का निर्णय लिया है।
इसके अलावा, राज्य में सक्रिय विभिन्न दलित संगठनों, किसान संगठनों एवं धर्मनिरपेक्ष अल्पसंख्यक संगठनों का साझा मंच गठित कर करीब 60 उम्मीदवार खड़े किये जायेंगे। इस तरह, करीब 100 उम्मीदवार खड़े कर जनपक्षीय विकल्प के नारे के साथ मुहिम चलाई जायेगी। पार्टी एवं मंच में शामिल संगठन संयुक्त चुनाव घोषणापत्र के आधार पर भाजपा, कांग्रेस एवं जनता दल (सेकुलर) के खिलाफ 1 सितंबर से अभियान चलाने का भी निर्णय लिया गया है। भाकपा (माले) ने सभी प्रगतिशील एवं जनवादी ताकतों से जन विकल्प के नारे का समर्थन करने तथा नव-उदारवादी नीतियों, सांप्रदायिकता, जातिवादी अत्याचारों और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एकजुट होने का आह्वान किया है।