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Saturday 30 July 2022 03:44:20 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज प्रथम अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया और 'मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार' पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहाकि हमारे यहां सामान्य से सामान्य मानवी को ये विश्वास होता हैकि अगर कोई नहीं सुनेगा तो अदालत के दरवाजे खुले हैं, न्याय का ये भरोसा हर देशवासी को यह एहसास दिलाता हैकि देश की व्यवस्थाएं उसके अधिकारों की रक्षा कर रही हैं, इसी सोच केसाथ देश ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण की स्थापना भी की थी, ताकि कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी न्याय का अधिकार मिल सके। प्रधानमंत्री ने कहाकि किसीभी समाज केलिए न्याय प्रणाली की पहुंच जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी न्याय वितरण भी है, इसमें एक अहम योगदान न्यायिक अवसंरचना का भी होता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि इन आठ वर्ष में देश की न्यायिक अवसंरचना को मजबूत करने केलिए तेज गति से काम हुआ है, इसको आधुनिक बनाने केलिए 9 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं, देश में कोर्ट हॉल की संख्या भी बढ़ी है और न्यायिक अवसंरचना के निर्माण में तेजी न्याय वितरण को भी जल्दी करेगी। प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्हें खुशी हैकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में देश की न्याय व्यवस्था इस दिशा में तेजीसे आगे बढ़ रही है, ई-कोर्ट मिशन के तहत देश में आभासी अदालतें शुरू की जा रही हैं। सूचना प्रौद्योगिकी और फिनटेक में भारत के नेतृत्व को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि न्यायिक कार्यवाही केलिए प्रौद्योगिकी की अधिक शक्ति को पेश करने का इससे बेहतर समय नहीं हो सकता। उन्होंने कहाकि यातायात उल्लंघन जैसे अपराधों केलिए 24 घंटे अदालतों ने काम करना शुरू कर दिया है, लोगों की सुविधा केलिए अदालतों में वीडियो कॉफ्रेंसिंग के बुनियादी ढांचे का भी विस्तार किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्हें बताया गया हैकि देश में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स में अबतक 1 करोड़ से ज्यादा केसेस की सुनवाई वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए हो चुकी है, करीब-करीब 60 लाख केस हाईकोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में भी सुने गए हैं। उन्होंने कहाकि कोरोना के समय हमने जिसे विकल्प के तौरपर अपनाया था, वो अब व्यवस्था का हिस्सा बन रहा है। प्रधानमंत्री ने कहाकि ये इस बात का प्रमाण हैकि हमारी न्याय व्यवस्था न्याय के प्राचीन भारतीय मूल्यों केलिए भी प्रतिबद्ध है और 21वीं सदी की वास्तविकताओं केसाथ मिलान करने केलिए भी तैयार है। उन्होंने कहाकि यह आजादी के अमृतकाल का समय है, यह उन संकल्पों का समय है, जो अगले 25 वर्ष में देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। उन्होंने कहाकि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस और ईज ऑफ लिविंग की तरह देश की इस अमृत यात्रा में ईज ऑफ जस्टिस भी उतना ही जरूरी है।
प्रधानमंत्री ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों में कानूनी सहायता के स्थान पर प्रकाश डाला, जिनका महत्व देश की न्यायपालिका में नागरिकों के विश्वास में परिलक्षित होता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि एक आम नागरिक को संविधान में अपने अधिकारों और कर्तव्यों केबारे में पता होना चाहिए, उन्हें अपने संविधान और संवैधानिक संरचनाओं, नियमों और उपायों केबारे में पता होना चाहिए। यह दोहराते हुएकि अमृतकाल कर्तव्य की अवधि है प्रधानमंत्री ने कहाकि हमें उन क्षेत्रों पर काम करना है, जो अब तक उपेक्षित रहे हैं। उन्होंने इस मौके पर विचाराधीन कैदियों के प्रति संवेदनशीलता का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहाकि ऐसे बंदियों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ले सकते हैं। उन्होंने विचाराधीन समीक्षा समितियों के अध्यक्ष के रूपमें जिला न्यायाधीशों से भी विचाराधीन कैदियों की रिहाई में तेजी लाने की अपील की। प्रधानमंत्री ने इस संबंध में एक अभियान शुरू करने केलिए नालसा की सराहना की। उन्होंने बार काउंसिल से और अधिक वकीलों को इस अभियान में शामिल होने केलिए प्रोत्साहित करने का भी आग्रह किया।
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण आज और कल जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण की पहली राष्ट्रीय स्तर की बैठक आयोजित कर रहा है। यह बैठक डीएलएसए में एकरूपता और तादात्म्य लाने के लिए एक एकीकृत प्रक्रिया निर्मित करने पर विचार करेगी। देश में कुल 676 जिला विधिक सेवा प्राधिकरण हैं। ये जिला न्यायाधीश के नेतृत्व में होते हैं, जो प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूपमें कार्य करते हैं। डीएलएसए और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से नालसा विभिन्न कानूनी सहायता और जागरुकता कार्यक्रम लागू करता है। डीएलएसए नालसा की आयोजित लोक अदालतों को विनियमित करके अदालतों पर बोझ को कम करने में भी योगदान करते हैं। उद्घाटन सत्र में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू, राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों के कार्यकारी अध्यक्ष और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के अध्यक्ष भी उपस्थित थे।