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गुजरात ने पकड़ी दिल्ली की राह...!

कन्हैया कोष्टी

कन्हैया कोष्टी

नरेंद्र मोदी-narendra modi

अहमदाबाद। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर हमेशा ही चर्चा में रहते गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री देखने की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की बड़ी ही इच्छा है। संघ की इस महेच्छा ने नरेंद्र मोदी को एक बार फिर राष्ट्रीय चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर संघ की यह खुशफहमी विरोधी दलों को ही नहीं, बल्कि स्वयं भाजपा में दूसरी पंक्ति के कई नामी-गिरामी नेताओं को भी रास नहीं आ रही होगी, लेकिन संघ, अगर मोदी में प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं देखता है, तो और भी हैं जो यह आशा रखते हैं। निश्चित रूप से इसके पीछे गुजरात में मोदी की नेतृत्व क्षमता है, जो विरोधियों पर हमेशा भारी पड़ती रही है।
गुजरात में मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 को सत्ता संभाली और जीवन का पहला चुनाव 26 फरवरी 2002 को राजकोट-दो से विधानसभा चुनाव जीता। उसके बाद शायद ही मोदी ने कभी पीछे मुड़ कर देखा हो। उनके नेतृत्व की परीक्षा वैसे तो मार्च-2003 में होनी थी, लेकिन उनके उप चुनाव जीतने के अगले ही दिन यानी 27 फरवरी 2002 को गोधरा कांड हुआ और फिर दंगे। कहना न होगा कि एक चाणक्य की तरह मोदी ने गोधरा कांड से बने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का फायदा उठाने के लिए विधानसभा चुनाव जल्दी करवा लिए। दिसंबर-2002 में हुए विधानसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व का राष्ट्रीय स्तर पर जबर्दस्त विरोध हुआ, लेकिन मोदी थे जो बाज़ी मार ले गए। मोदी ने फिर जो विकास की धुन छेड़ी, जिस पर न केवल पूरा गुजरात नाचने लगा, अपितु उसकी गूंज देशभर में है, अमेरिका और यूरोपीय देश भी आज मोदी का लोहा मान रहे हैं। अमेरिका तो मोदी को भारत के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देख ही रहा है। मोदी पर विकास की धुन सवार हुई तो गुजरात भी मोदी के पीछे आंखें मूंदे चल पड़ा है।
मोदी ने 2007 में दूसरी बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की तो इस जीत के पीछे न तो कोई गोधरा कांड था और न ही कोई सांप्रदायिक ध्रुवीकरण। इस जीत को विकास की जीत बता कर मोदी आगे बढ़ते ही गए। ये भी सही है कि यदि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका कद बढ़ता जा रहा है तो उनका विरोध भी कोई कम नहीं हो रहा है। गुजरात में कहा करते हैं कि मोदी ने ‘हाथी की चाल अपनाई और उनकी सफलताओं ने उनके विरोधियों को खुद-ब-खुद ‘भौंकने वाला कुत्ता’ बना डाला है। मोदी ने गुजरात में अंतर्विरोध पर सफलता जो पाई है। वर्ष 2007 की जीत से पहले मोदी ने गुजरात में जबर्दस्त अंतर्विरोध भी बहुत झेला।
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में पार्टी के कमजोर प्रदर्शन ने उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े किए। गुजरात की राजनीति खासकर पटेल समुदाय में भारी पैठ रखने वाले केशूभाई पटेल समेत कई आला नेता और अनेक विधायक मोदी के खिलाफ आ गए। वर्ष 2004 में उनके नेतृत्व के खिलाफ गुजरात में खोला गया मोर्चा दिल्ली दरबार तक पहुंचा, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं को भी मोदी के बारे में बोल कर अपने असहज बयान से मुकरना पड़ा। सिंहासन डोलता रहा, लेकिन मोदी विचलित नहीं हुए। वर्ष 2007 में उन्होंने बाहरी और आंतरिक सभी विरोधियों को जब धूल चटा दी, तो गुजरात में उनका नेतृत्व निर्बाध हो गया। आज मोदी फिर एक बार राष्ट्रीय राजनीति में दखल दे रहे हैं। उनके नेतृत्व को लेकर किसी में कोई संदेह नहीं है, वरना गुजरात के विकास की गूंज अमरीका तक नहीं होती। टाइम मैगजीन अगर उन्हें अपने कवर पेज पर जगह देती है, तो जरूर यह मोदी के नेतृत्व की सफलता का ही परिणाम है।
संघ ने अपनी इच्छा प्रकट कर भाजपा में दूसरी पंक्ति के नेताओं के सामने परेशानियां खड़ी कर दी हैं, जहां तक उन पर लगे आरोपों और भाजपा के बाहर और प्रतिपक्ष में उनके खिलाफ अनवरत अभियान का प्रश्न है तो उसके लिए एसआईटी की ओर से उन्हें मिली क्लीनचिट ही काफी है। अब अगर भीतर की बात करें, तो संघ का मजबूत समर्थन मोदी के लिए काफी माना जाता है। नरेंद्र मोदी को अभी दिसंबर 2012 के विधानसभा चुनाव में भी जाना है जो उनके लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण चुनाव है, क्योंकि जिस नेतृत्व क्षमता को लेकर संघ को उन पर नाज़ है, उसकी अंतिम परीक्षा गुजरात में दिसंबर-2012 के विधानसभा चुनाव में ही होनी है। नरेंद्र मोदी यदि तीसरी बार बाज़ी मार लेते हैं, तो केंद्र की ओर बढ़ते उनके कदम की एक बड़ी बाधा भी खत्म हो जाएगी। ऐसे में 2014 का लोकसभा चुनाव निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो जाएगा।
नरेंद्र मोदी के सद्भावना मिशन और उपवास का देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षियों में भले ही उपहास किया गया हो या आज भी किया जा रहा हो, गुजरात में इसका संदेश सभी को भाया है। इसी के दम पर वे चुनाव जीतते आए हैं। उनके तर्कों से कोई सहमत हों या न हों, गुजरात हमेशा सहमत पाया गया है। कांग्रेस और उसके युवराज राहुल गांधी की धर्मनिरपेक्षता उनको उनके निर्वाचन क्षेत्र अमेठी और रायबरेली में विधानसभा चुनाव नहीं जिता पाई, उत्तर प्रदेश और बाकी चार राज्यों में भी उनको करारी हार का सामना करना पड़ा, यह देश-दुनिया ने भी देख लिया है। कुछ भी हो, गुजरात में हिंदू हों या मुसलमान, सभी से मोदी के सद्भावना मिशन को खासा समर्थन मिला है, इससे मोदी की छवि को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है।

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