स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद राजनीतिक कोहरा छट गया है। प्रणब मुखर्जी के नाम पर विपक्ष में भी सहमति की कोशिशें जारी हैं, इसे लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में बड़ी उथल-पुथल भी देखी जा रही है, क्योंकि उसके कई घटक प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी से सहानुभूति रखते हैं। राष्ट्रपति चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बन जाने से प्रफुल्लित जो मुलायम सिंह यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर उकसाकर सबसे ज्यादा दबाव की राजनीति कर रहे थे, उन्होंने एपीजे कलाम और साथ ही ममता बनर्जी का भी सबसे पहले साथ छोड़ा और बिना शर्त प्रणब मुखर्जी का समर्थन कर दिया। इस चुनाव का दूसरा पक्ष यह है कि विपक्ष की ओर से ही यह बात उठी है कि केवल विरोध करने के नाम पर राष्ट्रपति के पद पर विपक्ष अपना प्रत्याशी खड़ा करे, यह उचित नहीं है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में ऐसे विचारों का उठना काफी महत्वपूर्ण बात है और प्रणब मुखर्जी के लिए इससे ज्यादा सम्मानजनक अवसर और क्या हो सकता है? दादा यूं तो अभी सक्रिय राजनीति में बने रहना चाहते थे, लेकिन उन्हें देश के सर्वोच्च पद पर आसीन किया जा रहा है, जिससे वह बहुत खुश हैं। याद कीजिए! एक समय यही प्रणब मुखर्जी कांग्रेस से किस तरह बाहर हुए थे और एक तरह से राजनीतिक निर्वासन की स्थिति का उन्होंने सामना किया। उनकी गलती केवल यह थी कि उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात देश का प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा प्रकट कर दी थी। उनका यह दावा इसलिए था कि वे इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री थे और इस नाते उनकी प्रधानमंत्री बनाने की चर्चा चरम पर पहुंच गई थी, जबकि कांग्रेस में यह सर्वानुमति हो गई थी कि राजीव गांधी को विदेश से लौटने दीजिए, उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। उन्हें उस समय कांग्रेस से हाथ धोना पड़ा था, आज वही प्रणब मुखर्जी हैं और वही कांग्रेस है, वही इंदिरा गांधी परिवार है, जो उन्हें देश के राष्ट्रपति के पद पर पदस्थापित करने जा रहा है।
देश के इस सर्वोच्च राजनीतिक घटनाक्रम में राजनीतिक दलों को इस अवसर पर अपनी नीति और प्रतिबद्धताएं खुलकर प्रकट करनी हैं, यह उनकी मजबूरी भी है। पिछले बीस-पच्चीस दिन से घमासान सा मचा था और अपने राज्य के आर्थिक पैकेज हासिल करने के लिए कुछ राज्यों में सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों के नेता केंद्र सरकार पर आंखे तरेर रहे थे और अपने-अपने प्रत्याशियों के नाम उछाल कर अच्छी खासी राजनीतिक सनसनी भी फैला रहे थे। इनमें मुलायम सिंह यादव ने यूपीए का घटक होकर भी खुलकर कांग्रेस और केंद्र सरकार पर दबाव बनाया। उन्होंने ममता बनर्जी को भी जमकर उकसाया, लेकिन मुलायम और ममता के किसी दबाव में यूपीए नहीं आया, जिसके परिणामस्वरूप इन दोनों के और बाकी विपक्ष के भी तेवर ढीले पड़ गए हैं। हालात देखकर कलाम ने भी कह दिया है कि वे राष्ट्रपति के चुनाव में नहीं खड़े होंगे। एनडीए के पास भी कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं है, जिसे प्रणब मुखर्जी के मुकाबले खड़ा किया जा सके। विरोध की परंपरा के नाम पर यदि विपक्ष अपना कोई प्रत्याशी लाता भी है, तो वह एक विरोध की औपचारिकता भर है, लेकिन इस पर भी एनडीए में मतभेद हैं।
प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाए जाने पर आमतौर पर देश के सभी राजनीतिक दलों, विचारकों एवं विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट लोगों ने प्रसन्नता व्यक्त की है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी प्रणब मुखर्जी के लिए छिट-पुट प्रतिक्रियाओं और चुटकियों के साथ अनुकूलता बनी हुई है। शायद यही कारण है कि मुलायम और ममता अकेले पड़ गए हैं, जिनमें मुलायम सिंह यादव ने तो यूटर्न लेकर अपनी इज्जत बचा ली है, मगर ममता बनर्जी बुरी फंस गई हैं। प्रणब मुखर्जी उन्हीं के बंगाल के रहने वाले हैं, वह उन्हें अपनी बहन कहते हैं और ममता के बारे में अच्छी धारणा भी रखते हैं, लेकिन राजनीतिक विडंबना देखिए कि ममता को बंगाल की राजनीति में अपना नफा-नुकसान देखना पड़ रहा है, वह इस घटनाक्रम से डरी हुई हैं और अपने दादा के समर्थन में अभी तक नहीं आई हैं, जबकि सारा पश्चिम बंगाल अपने धरती पुत्र के राष्ट्रपति होने का जश्न अभी से मना रहा है। हालांकि ममता बनर्जी भी देर-सवेर प्रणब मुखर्जी के साथ आएंगी, लेकिन यदि वे मुलायम सिंह यादव के यूटर्न लेने के पहले ही प्रणब मुखर्जी का समर्थन कर देतीं, तो शायद मुलायम सिंह यादव को उनकी यह शानदार पटकनी होती, विशेष आर्थिक पैकेज भी मिलता और पश्चिम बंगाल में भी उनकी राजनीति के और ज्यादा कसीदे पढ़े जाते, मगर ममता यह सब हासिल करने में काफी पीछे चली गई हैं। यूं तो राजनीतिक रूप से राष्ट्रपति की भूमिका काफी सीमित है, लेकिन देश के बाह्य और आंतरिक हालात देखते हुए प्रणब मुखर्जी जैसे राष्ट्रपति की आवश्यकता थी। अब देखना है कि प्रणब मुखर्जी किस प्रकार के राष्ट्रपति बनेंगे।
प्रणब मुखर्जी को बधाई देने वालों का तांता लगा है। देश-विदेश से बधाईयों के संदेश आ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने आभार व्यक्त किया है तथा राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर प्रणब मुखर्जी का स्वागत किया है। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि मुखर्जी को संप्रग के अन्य घटक दलों के साथ ही सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव एवं बसपा अध्यक्ष मायावती के समर्थन देने पर कांग्रेस पार्टी ने यादव एवं मायावती को धन्यवाद ज्ञापित किया है। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता द्विजेंद्र त्रिपाठी ने कहा कि अनुभवी एवं वरिष्ठ राजनेता प्रणब मुखर्जी को जिस प्रकार संप्रग गठबंधन ने देश के सर्वोच्च पद के लिए उम्मीदवार बनाया है, उससे निश्चित तौर पर न सिर्फ हिंदुस्तान में लोकतंत्र और अधिक सशक्त होगा बल्कि सम्पूर्ण विश्व में हिंदुस्तान का मान-सम्मान बढ़ेगा और देश भी निरंतर विकास की ओर अग्रसर होगा। त्रिपाठी ने आशा व्यक्त की है कि राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार सर्वसम्मति से चुना जाएगा, राष्ट्रपति पद की गरिमा को देखते हुए अन्य दल भी उन्हें अपना समर्थन देंगे।