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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के इस्तीफे से रिक्त पद का कार्यभार संभालने के बाद वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को संबोधित करते हुए यह क्या कह दिया? क्या वित्त मंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी विफल रहे हैं? प्रधानमंत्री के संबोधन के अंश तो अत्यंत आश्यर्चजनक चौकाने और स्तब्ध कर देने वाले ही हैं। उनके हिसाब से देश का वित्त मंत्रालय ठीक से काम नहीं कर रहा था, जिससे अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में बड़ा काम करना होगा, निवेशकों के विश्वास को बहाल करना होगा, उनके बयान से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि वे भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में अनभिज्ञ चल रहे थे और उन्हें नहीं पता था कि क्या हो रहा है। उन्होंने तो खुलकर बोला है कि देश में मुद्रास्फीति की समस्या जारी है, हमें जल्द ही इन सबका हल निकालना होगा, हमें अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना होगा। यानि प्रणब मुखर्जी पर निशाना? क्या प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में निवेशकों का विश्वास टूटा हुआ था? प्रधानमंत्री के संबोधन का सार अगर यह नहीं है तो फिर क्या है?
पढ़िए! प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात में क्या-क्या कहा, प्रेस को जारी किए गए उसके अनूदित अंश इस प्रकार हैं-
‘वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद आप सभी से एक नए परिप्रेक्ष्य में मुलाकात करते हुए मुझे काफी खुशी है, वर्ष 2008 में कुछ समय के लिए वित्त मंत्रालय से जुड़ने के अलावा काफी समय से मैं वित्त मंत्रालय के ब्यौरों और बारीकियों से दूर रहा हूं, इसलिए न केवल वित्त मंत्रालय बल्कि संपूर्ण रूप से सरकार और अर्थव्यवस्था के हर आयाम से जुड़े मुद्दों के संबंध में, मैं आपसे उपयुक्त सलाह की आशा करता हूं। प्रधानमंत्री ने कहा है कि वित्त मंत्रालय स्वयं में काफी व्यापक है, जिसकी पहुंच सरकार और राष्ट्र के सभी कोनों तक है, इसके कामकाज का तरीका हमारे देश के असंख्य नागरिकों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए आर्थिक विकास तथा देश के संपूर्ण कल्याण के लिए हितकर आर्थिक नीतियों को तैयार करने में वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण भूमिका है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि वर्तमान में हम आर्थिक रुप से चुनौतिपूर्ण समय से गुज़र रहे हैं, वृद्धि दर में गिरावट आई है, औद्योगिक प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है, निवेश के संदर्भ में भी चीजें अनुकूल नहीं हैं और मुद्रास्फीति की समस्या जारी है, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में, मैं विनिमय दर की स्थिति के बारे में चिंतित हूं, निवेशकों के विश्वास में कमी है और पूंजी प्रवाह कम हो रहा है, इन सब के पीछे कुछ अंतरराष्ट्रीय कारण भी है और हमें इन चुनौतियों से निपटने की दिशा मे काम करना होगा, हालांकि इसके साथ ही कुछ घरेलू कारण भी हैं, हमें जल्द ही इन सबका हल निकालना होगा, हमें अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना होगा।
प्रधानमंत्री ने आगे क्या कहा जानिए-हमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही स्तरों पर निवेशकों के भरोसे को बहाल करना होगा, आम तौर पर निराशाजनक माहौल के कई कारण है, कर के क्षेत्र में समस्याएं हैं, जिन्हें संबोधित करना होगा वित्तीय क्षेत्र की ओर से हमें यह देखना होगा कि चीजों को किस तरह ठीक किया जाए, म्यूचुयल फंड उद्योग में भी कुछ समस्याएं हैं, जिन्हें हल करना होगा। बीमा क्षेत्र में भी गिरावट आ रही है, जो कि हमारे जैसे देश के लिए सामान्य बात नहीं है, इसपर ध्यान देने की ज़रुरत है। कुछ ऐसे मुद्दें हैं, जिन्हें हमें जल्दी से जल्दी ‘संबोधित’ करना होगा और कुछ चीजों में हम समय के साथ-साथ सुधार करेंगे, मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोग दोनों ही तरह के कामों को बखूबी अंजाम देंगे, उत्कृष्ट कार्य करने की वित्त मंत्रालय की गौरवशाली परंपरा रही है और आप सभी से मैं इसकी ही अपेक्षा करता हूं।’
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस संबोधन में पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की प्रशंसा में एक भी शब्द कहीं नहीं है, जबकि उनका पूरा संबोधन अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता से ग्रस्त है। इसी से यह संदेश जाता है कि प्रधानमंत्री, प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल से संतुष्ट नहीं हैं, और यह उनको देश की अर्थव्यवस्था के बारे में भी कोई ज्यादा जानकारी नहीं है, कदाचित प्रणब मुखर्जी के कालखंड में वे वित्त मंत्रालय की जानकारियों से अनभिज्ञ रहे। एक प्रधानमंत्री के रूप में उनका यह संबोधन उनको स्वयं को भी कटघरे में खड़ा करता है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ कौशिक बसु, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पुलोक चटर्जी, वित्त मंत्रालय में सचिव आर गोपालन, आरएस गुजराल, सुमित बोस, डीके मित्तल, मोहम्मद हलीम खान और प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारी इस बैठक में उपस्थित थे।