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Saturday 5 November 2016 01:11:40 AM
शिलांग। केंद्रीय जनजातीय कार्यमंत्री जुएल ओराम ने शिलांग में ‘एशिया की जनजातियों को भलीभांति जानने’ पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा है कि एशिया की जनजातियों को भलीभांति जानने की जरूरत शुरू से ही महसूस की जाती रही है। उन्होंने जनजातीय मुद्दों पर इतनी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित करने के लिए इसके आयोजकों के प्रयासों की सराहना की। उनका भाषण ‘पूर्वोत्तर भारत के आरंभिक आदिवासी समाज’ पर केंद्रित था। उन्होंने कहा कि ऐसी संगोष्ठी से जनजातीय अध्ययन एवं अनुसंधान को मजबूत करने में सहायक सर्वोत्तम प्रथाओं और रणनीतियों को एकजुट करने में मदद मिलेगी।
जनजातीय कार्यमंत्री जुएल ओराम ने कहा कि एशिया की जनजातियों के लिए विशिष्ट लोगों के रूप में अपने अधिकारों को मान्यता देने के लिए वकालत करना एक मुश्किल कार्य है, अनेक जनजातियों को अपना अस्तित्व बरकरार रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और इस प्रक्रिया में अनेक बोलियां भी विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। उन्होंने यह उम्मीद जताई कि इस संगोष्ठी से समुदायों के लागों को और ज्यादा सूचनाएं हासिल करने में मदद मिलेगी, इसके साथ ही एशिया की जनजातियों से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में भी सहायता मिलेगी। उन्होंने इस अवसर पर एक पुस्तक का विमोचन किया, जिसमें शिलांग के सिनॉद कॉलेज में वर्ष 2015 में आयोजित की गई राष्ट्रीय संगोष्ठी से जुड़ी सामग्री भी शामिल है।
जुएल ओराम ने संवाददाताओं के साथ बातचीत के दौरान असम की छह जनजातियों को एसटी का दर्जा देने से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि गृह मंत्रालय में विशेष सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति इस मसले पर गौर कर रही है, समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही सरकार इस दिशा में आगे बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट अतिशीघ्र पेश किए जाने की आशा है। दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन शिलांग स्थित सिनॉद कॉलेज ने पीए संगमा फाउंडेशन के सहयोग से किया था। विश्व के विभिन्न हिस्सों के विद्वानों ने इस संगोष्ठी में हिस्सा लिया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य भाषण पश्चिम बंगाल के बर्दवान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफसर स्मृति कुमार सरकार ने दिया। लोकसभा सदस्य कॉनरड के संगमा ने भी उद्घाटन सत्र में शिरकत की।