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मुंबई। दार्शनिकों का अभिमत है कि भावुकता से कर्तव्य बड़ा होता है। मगर भारतीय दर्शन में अगर आप व्यवहारिक स्तर पर जाएं तो आप पाएंगे कि यहां कर्तव्य पर भावुकता ज्यादा भारी है। यह विशिष्ट संदर्भ देश की क्रिकेट टीम के स्टार बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर की उपलब्धियों को रेखांकित करता है जिसमें कुल उपलब्धि सचिन तेंदुलकर के नाम है और बची-खुची पर ही भारत संतोष करता है। इस सच को स्वीकार करना ही होगा कि सचिन तेंदुलकर ने दुनिया में अपना नाम कमाया रन कमाए और अपने बुढ़ापे के लिए भी बढ़-चढ़कर इंतजाम कर लिए हैं लेकिन भारत ने क्या पाया? क्रिकेट ने क्या पाया? सब कुछ तो सचिन तेंदुलकर ने पाया है, इसलिए इस प्रश्न का उत्तर ईमानदारी के साथ आना चाहिए कि भारत को क्या मिला? यह प्रश्न सचिन तेंदुलकर और उनके उन पैरोकारों से है जो केवल सचिन तेंदुलकर की उपलब्धि के नाम पर नाच रहे हैं और वह उस सच्चाई से दूर भाग रहे हैं जिसमें भारत का खाता खाली पड़ा हुआ है।
देखा गया है कि जब भी किसी प्रतिष्ठापूर्ण मैच में भारत फंसा है तब तेंदुलकर साहब एक रन बनाकर या जीरो पर आउट होकर पेवेलियन पर आकर बैठ गए और उस फंसे हुए मैच को अंतिम तीन चार विकटों के साझेदारों ने निकाला। ऐसे कितने उदाहरण हैं जिनका उल्लेख यहां किया जा सकता है। जब अकेले सनत जयसूर्या के बल्ले के दम पर श्रीलंका विश्वकप का सिरमौर हो सकता है तो भारत, क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर के बल्ले के दम पर विश्वकप का सिरमौर क्यों नहीं हो पाया? दुनिया में इन दो दशकों में तेंदुलकर क्रिकेट जगत पर सूर्य के प्रकाश के भांति चमका है क्रिकेट खिलाडि़यों और क्रिकेट के पंडितों ने तेंदुलकर की महिमा का बखान करने में बड़े-बड़े ग्रंथों को पीछे छोड़ दिया है लेकिन भारतीय क्रिकेट पर किसी ने नहीं लिखा। किसी दूसरे देश की धरती पर जब भारतीय क्रिकेटर खेलते हैं तो वह तेंदुलकर, जडेजा, गांगुली, सहवाग, धोनी या सिद्धू नहीं खेलते हैं तब भारत खेलता है। जब भारत जीतता है तो कहते हैं कि तेंदुलकर की बदौलत जीत गया और जब भारत हारता है तो उसकी जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं होता। यहां तेंदुलकर जीतता है और भारत हारता है। तेंदुलकर ने दोहरा शतक लगाया पर भारत के काम न आया यह एक अपवाद है लेकिन अधिकांशतया तेंदुलकर की क्रिकेटरी उपलब्धियां भारत के काम न आ सकीं। हर एक महत्वपूर्ण अवसरों पर इस खिलाड़ी ने भारतीय जनमानस को भारी निराश किया है इसलिए वह बारह हजार रन बना ले बारह हजार शतक बना ले इससे क्या हुआ भारत तो नहीं जीता।
भारतीय मीडिया धन्य है। भारत में आस्ट्रेलिया और भारत के मैच के दौरान एक इलेक्ट्रानिक चैनल पर आ रहा था कि कंगारूओं को कुचल दीजिए। अगर आप कंगारूओं को कुचल रहे हैं तो कंगारू वाले भी कह रहे होंगे कि इनको कसकर मारिए। ध्यान रहे कि दूसरे देशों में आज भी भारतीयों को अभी एक गाली से अभी मुक्ति नहीं मिली है, भले ही पूरा हिंदुस्तान दुनिया में अपनी उपलब्धियों का डंका बजाता हुआ घूम रहा हो। मीडिया ने इसी प्रकार क्रिकेट खिलाडि़यों को भी महिमामंडित करके ऐसे उपनामों से नवाजा है कि जिसमें तेंदुलकर जैसे क्रिकेट खिलाड़ी अपने देश को भूलकर रनो के पीछे दौड़ने लगे और भारत रनआउट हो गया। मीडिया ने तेंदुलकर को अनेक बार क्रिकेट का भगवान कहा है पर खेद है कि ये भगवान आज तक एक भी विश्वकप नहीं जितवा पाए, और आने वाले विश्वकप में बने रहने के लिए जोर-शोर से लाबिंग कर रहे हैं। इनके साथ के कई खिलाड़ी क्रिकेट से सन्यास ले चुके हैं-मसलन सौरव गांगुली, अनिल कुंबले इत्यादि। मगर कुछ क्रिकेट के लिक्खड़ों से लिखवाया जा रहा हैं कि तेंदुलकर अभी एक और विश्वकप खेलेंगे। मगर दूसरी तरफ इनके समकालीन भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ वरिष्ठ खिलाड़ी जब सन्यास ले रहे हों तब इस लाबिंग का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। अब तेंदुलकर की अगले विश्वकप की तैयारियां हो ही रही हैं तो इसके साथ एक चुनौती भी उसका सामना कर रही है कि उन्हें करो या मरो की तरह ही खेलना होगा अन्यथा क्रिकेट से जीवन में जो हासिल किया है उसे गंवाने के लिए तैयार रहें। उन्हें आने वाले वश्वकप में खेलने के लिए ईमानदारी से अपनी सार्थकता सिद्ध करनी होगी नहीं तो इज्जत इसी में है कि वह चुपचाप क्रिकेट की भावी पीढ़ी के लिए मार्ग प्रशस्त करें। शायद यह हिम्मत तेंदुलकर नहीं करेंगे क्योंकि भारतीय क्रिकेटरों में एक यह अवगुण छिपा है कि जब तक उनको कोई लात मारके बाहर न निकाले तब तक वह वहीं पड़े रहेंगे चाहे क्रिकेट रहे या क्रिकेट जाए।
मोहाली में बारह हजार रन पूरे करने के बाद भारतीय मीडिया जगत फिर से तेंदुलकर के कसीदे पढ़ने लग गया है। दिग्गज विश्लेषक फिर से तेंदुलकर चालीसा पढ़ने लगे हैं, कारण कि उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में बारह हजार रन का रिकार्ड पार कर लिया है और दिग्विजयी शतक की ओर बढ़ रहे हैं। जब तेंदुलकर के बारह हजार रन पूरे हुए तो खबर आई कि दिवाली आज ही है। तेंदुलकर के शुभचिंतकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी और देश के मीडिया ने तेंदुलकर की जमकर आरती उतारी क्योंकि उसने बारह हजार रन बना लिए हैं। जब तेंदुलकर अपना कोई निजी रिकार्ड बनाते हैं तो देश विदेश की खबरें अखबारों और टीवी चैनलों में नंबर दो और तीन पर चली जाती हैं। भारत की दूसरे क्षेत्रों की सारी उपलब्धियां 18 अक्टूबर के अखबारों में अंदर के पन्नों पर थीं, जबकि तेंदुलकर पूरे अखबार पर छाए हुए होते हैं। लोग कहते हैं कि ओल्ड इज गोल्ड, यह फार्मूला इसमें कहां फिट बैठा, कुछ समझ में नहीं आता। भारतीय क्रिकेट ने दुनिया में अपनी एक पहचान तो बनाई है लेकिन देश के लिए उसकी उपयोगिता कहीं नजर नहीं आती। अखबार सचिन तेंदुलकर की उपलब्धियों से भरे रहते हैं। नागपुर में जब तेंदुलकर ने सैंकड़ा लगाया तब भी अखबार तेंदुलकर की ही जय बोल रहे थे।
यहां किसी की नाहक ही आलोचना का उद्देश्य नहीं है अपितु यह उन क्रिकेट प्रेमियों की आवाज़ है जो कि तेंदुलकर से निर्णायक खेल की इसलिए उम्मीद करते हैं क्योंकि उन्हें क्रिकेट में सर्वाधिक लोकप्रियता हासिल हुई है और लोकप्रियता का सीधा मतलब किसी प्रतियोगिता में विजय होकर निकलना। भारत के साथ ऐसा बहुत कम बार हुआ है। श्रीलंका के स्टार बल्लेबाज सनत जयसूर्या उतने लोकप्रिय नहीं माने जाते हैं जितने कि सचिन तेंदुलकर की मान्यता है। मगर सनत जयसूर्या ने श्रीलंका के लिए वर्ल्डकप पर विजय पाई और क्रिकेट का जो कर्ज था वह चुकता किया। तेंदुलकर भारत के इस कर्ज को चुकाने में बहुत पीछे हैं और दुनिया के लिए ऐसे विख्यात खिलाड़ी माने जाएंगे जो खुद तो महानता का तमगा लिए घूमते हैं मगर उसका भारतीय क्रिकेट को कोई लाभ नहीं मिल सका। बच्चों में अमिताभ बच्चन जैसी लोकप्रियता को उन्होंने हासिल किया हैं। अब उन्हें जब एक और वर्ल्डकप खेलना है तो यह सिद्घ करना होगा कि बुढ़ापे में ही सही उन्होंने देश को क्रिकेट का वर्ल्ड कप तो जितवाया।