सैय्यद मजहर हुसैन
सिद्धार्थनगर [उप्र]। बौद्ध धर्म और भीम राव अंबेडकर का राजनीतिक इस्तेमाल तो खूब होता रहे, मगर बसपा के नेता कपिलवस्तु पिपरहवा का विकास नहीं चाहते। कपिलवस्तु पिपरहवा भगवान बुद्ध की जन्मस्थली है। यहां 22 मई 1997 को बसपा अध्यक्ष मायावती ने अपने प्रथम मुख्यमंत्रित्व में यहां आधा दर्जन परियोजनाओं के निर्माण की आधारशिला रखी थी और कपिलवस्तु के सर्वांगीण विकास का वायदा किया था लेकिन 11 वर्षों के बाद भी ये परियोजनाएं शुरू नहीं हो सकी हैं।
सच्चाई तो यह है कि कपिलवस्तु विकास प्राधिकरण में 11 वर्षों के अंतराल में एक लिपिक अथवा स्टॉफ तक की तैनाती नहीं की गई है।वर्तमान में विनियमित क्षेत्र नौगढ़ का एक जेई हायर करके 'कपिलवस्तु महोत्सव-2008' के मंचन को अंजाम दिया गया। जिलाधिकारी सिद्धार्थनगर डा रमाकांत शुक्ल ने शुभारंभ के दिन 'स्तूप पूजन' के दौरान कहा था कि उन्होंने कपिलवस्तु के विकास के लिए सरकार से काफी पत्र व्यवहार किया है। उन्होंने यह घोषणा भी की थी कि यथाशीघ्र सुलभ-शौचालय बनवा दिया जाएगा, मगर सब हवाबाज़ी ही रही।
उप्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने उस अवसर पर कहा था कि यदि यहां शिलान्यास के बाद परियोजना निर्मित हो जाती है तो राष्ट्रीय संग्रहालय, कोलकाता में रखा भगवान बुद्ध का अस्थि कलश तथा कपिलवस्तु पिपरहा की खोदाई में मिली अन्य सामग्री भी यहीं रखी जा सकती थी, जिसकी मांग बौद्ध धर्माचार्य प्राय: कपिलवस्तु महोत्सव के दौरान करते रहते हैं। इस अवसर पर बसपा के जिला अध्यक्ष पट्टराम आजाद ने भी कहा था कि वे मुख्यमंत्री का ध्यान विलम्बित शिलान्यास शुदा परियोजनाओं के निर्माण की तरफ आकृष्ट करने का प्रयास करेंगे मगर कुछ नहीं हुआ। स्तूप पूजन के बाद बसपा के राज्य सभा सदस्य बलिहारी बाबू ने तो यहां तक भी कहा था कि वह यहां श्रद्धा के तहत आए हैं, इसलिए वह किसी प्रेस प्रतिनिधि से यहां के विकास के मुद्दों पर कोई बात नहीं करेंगे, मगर क्या हुआ?
श्रावस्ती के बौद्ध भिक्षु करुणा सागर और सीतापुर के बौद्ध भिक्षु कीर्ति रतन ने जिला प्रशासन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इस बात का खुलासा किया कि यहां जितने भी भिक्षु व भक्तगण बौद्ध तीर्थों से आए हैं उनके रहने खाने आदि का कोई प्रबंध नहीं है। उन्होंने दो तीन रातें इस ठंड में पेड़ के नीचे अथवा पास पड़ोस के गांव में भिक्षाटन से काटी है। इन सभी ने कपिलवस्तु के धर्मप्रिय महातेरा पर आरोप लगाया है कि उनका इस्तेमाल धर्म के नाम पर बिचौलिया के तौर पर जिला प्रशासन कर रहा है। बौद्ध भिक्षुओं ने कहा यदि उनके रहने खाने का इंतजाम सरकारी तौर पर है तो वह व्यवस्था पारदर्शी होनी चाहिए। यहां महोत्सव के दौरान पधारे भिक्षुओं ने भी मुख्यमंत्री से घोषित योजनाओं को धरातल पर उतारे जाने की मांग इस बार दोहराई।
कपिलवस्तु विकास प्राधिकरण की नियमावली में मंडलायुक्त बस्ती उसके चेयरमैन और एसडीएम नौगढ़ सचिव हैं। जबकि उसके सभी सदस्य प्राय: संबंधित विभागों के सचिव अथवा प्रमुख सचिव हैं। जिलाधिकारी अपनी स्थिति उपाध्यक्ष की बनाए हुए हैं। फिर पत्राचार और विधिक औपचारिकता कौन पूरी करता होगा? जब प्राधिकरण के पास लिपिकीय स्टॉफ तक नहीं है। पर्यटन विभाग के अनुसार स्तूप के प्रांगण का रखरखाव राष्ट्रीय पुरातत्व के पास है। पर्यटन विभाग ने 15 लाख रूपये इसके प्रांगण के सुन्दरीकरण के लिए दिए थे, इसमें 3 एकड़, होटल शाक्य और 12 एकड़, बौद्ध मॉनेस्टी के लिए सुरक्षित किया गया था। पर्यटन ने 24 लाख 17 हजार की लागत से होटल शाक्य बनाया। इसे अभी तक रहने योग्य इसलिए नहीं बनाया जा सका क्योंकि इसकी फिनीशिंग के लिए 8 लाख रुपए की और जरूरत है।
इम्पोरियम बनाने का कार्य भी धनाभाव के कारण शुरू नहीं किया जा सका है। संस्कृति विभाग भी आवंटित भूमि पर अपनी एक भी योजना को धनाभाव में शुरू नहीं कर सका है। पर्यटन विभाग का मानना है कि कपिलवस्तु शिलान्यास के बाद अधिगृहित भूमि पर आज तक कोई निर्माण नहीं हो सका। इसके कारण यहां बौद्ध मॉनेस्टी द्वारा उनके नाम सुरक्षित 12 एकड़ भूमि का उपयोग नहीं किया गया। अन्यथा कपिलवस्तु भी कुशीनगर व अन्य विकसित बौद्ध तीर्थों के दर्जे में होता। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने यहां आकर कपिलवस्तु की अधिगृहित भूमि पर घोषणा की थी कि 180 फीट की बुद्ध प्रतिमा यहां स्थापित की जाएगी, जो कहीं और परिवर्तित कर दी गई। यहां श्रीलंका का मंदिर स्थापित हुए चार दशक हो रहे हैं। यहां के मुख्य प्रबंधक टी जिना रात्ना महाथेरो का कहना है कि इस बार कपिलवस्तु महोत्सव में उन्हें भी निमंत्रण नहीं दिया गया। उसके सामने मजबूरी है कि श्रीलंका के बौद्ध श्रद्धालुओं की मदद से वह स्वयं अब यहां एक गेस्ट हाउस मंदिर में बनवा रहे हैं।