इफ्तिखार चौधरी
ढाका / नई दिल्ली। बांग्लादेश राइफल्स के जवानों की बगावत की आग ने राजधानी के बाहर, देश के अन्य हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। पाकिस्तान की खुफिया एजंसी आईएसआई के इशारे पर वेतन विवाद के बहाने प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलटने की सुनियोजित साजिश से हुई इस कार्रवाई में मरने वाले अधिकारियों की संख्या करीब डेढ़ सौ तक पहुंच गई है। मरने वालों में ज्यादातर सेना और बीडीआर के अधिकारी हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस संकट से पार पाना वाकई मुश्किल हो रहा है। हालात को और ज्यादा बिगड़ने से रोकने के लिए भारतीय सीमा पर बीडीआर की जगह बांग्लादेशी सेना तैनात की गई है जबकि देश में बाहरी और खासतौर से भारतीय मीडिया को आने की इजाजत नहीं है। भारत से बांग्लादेश जाना चाह रहे पत्रकारों को बांग्लादेश का उच्चायोग वीजा ही नहीं दे रहा है। बांग्लादेश सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि राइफल्स के जवानों की बगावत की सूचनाएं देश के बाहर न जाने पाएं।
बांग्लादेश के विधि मंत्री कमरूल इस्लाम का दावा है कि यहां स्थित बीडीआर मुख्यालय में संघर्ष में करीब 70 लोग मारे गए हैं जबकि गैर सरकारी सूत्र इसकी दुगने से भी ज्यादा संख्या बता रहे हैं। हालांकि कमरूल इस्लाम यह नहीं बता सके हैं कि इस संघर्ष में सेना के कितने अधिकारी और कितने अर्द्धसैनिक बल के जवान मारे गए हैं। लेकिन सूत्रों ने बताया है कि कि बीडीआर प्रमुख मेजर जनरल शकील अहमद समेत 35 सेना अधिकारियों का इसमें निश्चित रूप से सफाया हो चुका है और अभी भी लाशें मिलनी बंद नहीं हुई हैं। सेना के लोग बीडीआर में तदर्थ नियुक्ति पर सेवारत थे। शेख हसीना स्थिति पर विचार विमर्श के लिए अपने वरिष्ठ पार्टी नेताओं, वफादार सैनिक अफसरों तथा कैबिनेट मंत्रियों के साथ लगातार संपर्क में हैं।
इस विद्रोह का घटनाक्रम बड़ा ही विचित्र है और संकेत आईएसआई की ओर ले जाता है। सरकार की ओर से आम माफी की घोषणा किए जाने के बाद कुछ विद्रोही जवानों ने हथियार डालने शुरू किए, तभी और खबरें भी आईं कि दूरस्थ प्रांतों के बीडीआर जवान भी विद्रोह में शामिल हो गए हैं। देशभर में 64 बीडीआर शिविरों में 40 हजार से अधिक जवान हैं। टीवी चैनलों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ढाका के सीमावर्ती 12 जिलों में विद्रोह की आग फैली है, जहां से सेना के अधिकतर अधिकारी भाग गए थे। पुलिस के अनुसार जोयपुरघाट जिले के बीडीआर कर्मचारियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की। विधि मंत्री कमरूल इस्लाम के अनुसार बांग्लादेश के गृह मंत्री सहारा खातून के नेतृत्व में एक सरकारी प्रतिनिधिमंडल विद्रोही सैनिकों के आत्मसमर्पण की रातभर निगरानी करता रहा, उसके बाद वह मुख्यालय से बाहर आया।
बताया गया कि सैनिकों ने आधी रात के बाद हथियार डालना शुरू कर दिया था, जबकि पता चला कि उस वक्त विद्रोह अपने चरम पर था और तब तक काफी खून खराबा हो चुका था। टीवी चैनलों में जो दिखाया गया है कि सैनिक एक-एक कर इमारतों से निकलकर परिसर में हथियार डाल रहे हैं, वह बहुत बाद की कहानी है। बीडीआर मुख्यालय में कई सेक्टरों तथा बटालियनों से ताजा हिंसा की लगातार खबरें मिलती रहीं। मेजर जनरल अहमद का कुछ पता ही नहीं चला है। प्रथम आलों समाचार पत्र ने बताया है कि अहमद मारे गए हैं। सेना के सूत्रों ने शुरू में बताया था कि कम से कम छह लोग मारे गए जिसमें उसने केवल तीन नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की थी। लेकिन पुलिस ने बताया कि पिलखाना के समीप नबावगंज एमबेंकमेंट इलाके से और बहुत से शव बरामद किए गए हैं जो संभवत: बीडीआर अधिकारियों के हैं। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि अधिकतर विद्रोही सैनिक अभी भी युद्ध के मूड में हैं क्योंकि बीडीआर मुख्यालय परिसर की घेराबंदी किए जाने से उन्हें सेना की ओर से हमले की आशंका है। विद्रोही विभिन्न समूहों में बंट गए हैं और उनके पास कोई नियोजित कमान नहीं है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा है कि उन्हें विश्वास है कि वहां की सरकार इस स्थिति का सौहार्दपूर्ण समाधान निकाल लेगी। भारत-बांग्लादेश सीमा की स्थिति के बारे में प्रवक्ता ने कहाकि इलाका सुरक्षित है। दूसरी ओर शिलांग से प्राप्त जानकारी के अनुसार बीडीआर में हुए विद्रोह की ज्वाला ढाका से बाहर फैलने की खबरों के बीच ऐसी सूचना मिली है कि बांग्लादेशी सेना के जवानों को कुछ स्थानों पर भारतीय सीमा पर देखा गया है। स्थिति का जायजा ले रहे एक अधिकारी ने बताया कि बांग्लादेशी सेना के जवानों को मेघालय और असम की सीमा से लगे नेत्रकोना मैमनसिंह और कुछ अन्य स्थानों पर देखा गया है। बीएसएफ ने पाया है कि बीडीआर में विद्रोह के बाद अर्द्धसैनिक बल के जवानों को नियमित गश्त और निगरानी गतिविधियों से हटा लिया गया है। अधिकारी ने बतायाकि बीडीआर जवानों को सीमा पर नहीं देखा गया है।
उधर भारत में इस विद्रोह की व्यापक प्रतिक्रिया हो रही है। डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट के प्रधान संपादक प्रभात रंजन दीन ने अपने यहां एक विशेष लेख में इस घटना पर विस्तार से मंथन किया है। उन्होंने लिखा है कि बांग्लादेश में सैन्य विद्रोह कोई मामूली घटना नहीं है। उत्तर भारत से छपने वाले अखबारों और टीवी पर दिखने वाले समाचार चैनल वालों ने इस घटना के साथ जिस तरह नेताओं जैसा सलूक किया, वह भारी निराशाजनक है। विचार के दरिद्र जैसे हमारे नेता वैसा ही विचारहीन मीडिया होता जा रहा है। बांग्लादेश में सैन्य विद्रोह की घटना को उत्तर भारतीय मीडिया ने गंभीरता से नहीं लिया, जबकि पश्चिम बंगाल से निकलने वाले तमाम अखबारों, चाहे वह अंग्रेजी हो या बंगाली या हिंदी, सभी ने सैन्य विद्रोह की खबर को प्रमुखता से छापा। अपनी अस्मिता की हिफाजत से जुड़े मुद्दे पर नेता और मीडिया इतना कैजुअल और लापरवाह है, यह बहुत दुखद है!
इस घटना को भारत की चिंता से जोड़ते हुए वे लिखते हैं कि भारत देश को केवल पाकिस्तान से खतरा नहीं है कि हर बात में नेता और मीडिया पाकिस्तान पाकिस्तान की रट लगाता रहे। अधिक खतरा बांग्लादेश से है जो धीमी गति के जहर के मानिन्द देश की नसों में भीतर तक घुलता जा रहा है। खतरा नेपाल से है जहां बदले हुए राजनीतिक दौर में नक्सलवाद और माओवाद के नाम पर अपराध और आतंकवाद का ताकतवर गलियारा स्थापित करने के तमाम प्रयास चल रहे हैं। बांग्लादेश और नेपाल में ऐसी किसी गतिविधि या घटना के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया अख्तियार करें तो यह मान लेना चाहिए कि हम अकल से पैदल हैं। पूरा देश बांग्लादेशी घुसपैठियों से आक्रांत है। बांग्लादेशी घुसपैठिये भारतीय व्यवस्था में जिस तरह घुस बस गए हैं कि उनकी पहचान मुश्किल हो गई है। अधिक मुश्किल उनका यहां से वापस खदेड़ा जाना हो गया है। वोट के लिए देश को गिरवी रख देने में शर्म नहीं करने वाले नेताओं ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के बबूल के जंगल उगाए हैं अपने देश में।
उन्होंने लिखा है कि नेताओं के कारण ही मणिपुर, असम, त्रिपुरा से गुजरात और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बांग्लादेशी घुसपैठियों का भारतीयकरण हो गया है। उनके वोट के बूते जीत कर नेता सत्ता-सुख भोगते हैं, लेकिन देश को इसका कितना दुख भोगना पड़ेगा, वह आगे पता चलेगा। इसे लेकर सतर्कता बनाए रखने, देश के नागरिकों को खबर से परिचित कराए रखने और खबरदार करते रहने की जिम्मेदारी मीडिया की है! क्या लोगों को मीडिया से यह उम्मीद नहीं थी कि वे पड़ोसी मुल्क की इस गंभीर घटना के बारे में तफसील से जानना चाहेंगे? दिन भर अंट-शंट दिखाने वाले समाचार चैनेलों और अखबार वालों ने खुद को बुद्धिमान और आम लोगों को बेवकूफ और कूप मंडूक मान रखा है।
प्रभात रंजन दीन ने आगे लिखा है कि यह गंभीरता से सोचने की बात है कि बांग्लादेश राइफल्स के जवानों ने विद्रोह कर दिया है तो हजारों किलोमीटर की भारतीय सीमा पर किस तरह की अफरातफरी और घुसपैठ की भागा दौड़ी मची होगी। उधर बीडीआर और इधर बीएसएफ के होते हुए जब बांग्लादेशी घुसपैठ को हम संभाल नहीं पा रहे हैं तो बीडीआर के सीमा छोड़ देने पर क्या हालत हुई होगी? सोचें। भारत के नेता जिस तरह के प्रदूषक और विदूषक चरित्र के हैं, उसी तरह मीडिया भी हो जाए तो बंटाधार सुनिश्चित मानिए। हमारे खुफिया तंत्र को भी नहीं मालूम कि बीडीआर के विद्रोह से कुछ समय के लिए खाली हो गई बांग्लादेश सीमा पर क्या हालत हुई होगी। यह वही देश है जहां बीएसएफ के जवानों की हत्या कर बांग्लादेश राइफल्स के जवान उनकी झुलसी हुई लाशें जानवरों की तरह बांस पर टांगे प्रदर्शन करते हैं और भारतीय सत्ता अलमबरदार कूटनीति के नाम पर किन्नरी-चुप्पी साधे रहते हैं। ऐसी घोर घटनाएं भी मीडिया के लिए 'ईश्यू’ नहीं बनतीं। पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ पत्रकार जीबानंद बसु से बांग्लादेश के ताजा घटनाक्रम को लेकर बात हो रही थी, तब यह अहसास हुआ कि वहां के पत्रकार देश के सरोकारों को लेकर कितने चिंतित हैं।