Tuesday 9 June 2020 01:17:04 PM
प्राची भटनागर
आप जरूर होशियार होंगे पर आपको बहुत सी बातों का कुछ नहीं पता है। आप कस्तूरी ढूंढने वाले हिरण की तरह हैं। पहले जब किसी के यहां मृत्यु होती थी, तब 13 दिन तक उस घर में कोई बाहरी स्त्री-पुरुष प्रवेश नहीं करता था। इसे ही एकांत अवधि (Isolation period) कहते हैं। मृत्यु या तो किसी बीमारी से होती है या वृद्धावस्था के कारण, जिसमें शरीर तमाम रोगों का घर होता है। यह रोग हर जगह न फैले इसलिए 14 दिन का एकांत वास बनाया गया है। उस समय जो व्यक्ति शव को अग्नि देता था, उसको 13 दिन तक घरवाले तक नहीं छू सकते थे। उसका खाना पीना, भोजन, बिस्तर, कपड़े सब अलग कर दिए जाते थे। तेरहवें दिन शुद्धिकरण के पश्चात सिर के बाल कटवाकर ही पूरा परिवार शुद्ध होता था। इसका मूर्ख भारतीय कहकर मजाक बनाया गया है।
रजस्वला स्त्री को 4 दिन एकांत में रखा जाता है, ताकि वह भी बीमारियों से बची रहे और आप भी बचे रहें। तब भी आपमें से कईयों ने पानी पी-पीकर गालियां दीं और नारीवादियों को कौन कहे, वो तो दिमागी तौर से अलग होती हैं। उन्होंने जो ज़हर बोया उसकी कीमत आज सभी स्त्रियां तमाम तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर चुका रही हैं। जब शवयात्रा से लोग वापस आते हैं तो उन्हें घर में प्रवेश नहीं मिलता है और बाहर ही हाथ-पैर धोकर स्नान करके, कपड़े वहीं निकालकर घर में आया जाता है, इसके भी मायने हैं, लेकिन इसका भी खूब मजाक उड़ाया गया है। आज भी गांवो में एक परंपरा है कि बाहर से कोई भी घर आता है तो उसके पैर धुलवाए जाते हैं। जब कोई भी बहू, लड़की या कोई भी दूरसे आता है तो उसे तबतक घर में प्रवेश नहीं मिलता है, जबतक घर की बड़ी बूढ़ी महिला लोटे में जल लेकर, उसमें हल्दी डालकर उसपर छिड़काव करके वहींपर वह जल नहीं बहाती हो। इस परंपरा का भी खूब मजाक बनाया गया है।
मांस और चमड़े का कार्य करने वाले लोगों को तबतक नहीं छूते थे, जबतक वह स्नान से शुद्ध न हो जाएं। ये वही लोग थे जो सुअर, भेड़, बकरी, मुर्गा, कुत्ता इत्यादि पालते थे और जो अनगिनत बीमारियां अपने साथ लाते थे। ये लोग जल्दी उनके हाथ का छुआ जल या भोजन नहीं ग्रहण करते थे, तब बड़ा हो हल्ला मचाया जाता था और इन लोगों को इतनी गालियां दी जाती थीं कि इन्हें भी अपने आप से घृणा होने लगे। यही वह गंदे कार्य करने वाले लोग थे जो प्लेग, टीबी, चिकन पॉक्स, छोटी माता, बड़ी माता जैसी जानलेवा बीमारियों के संवाहक थे और जब बोला गया कि बीमारियों से बचने के लिए आप इनसे दूर रहें तो आपने गालियों का मटका इनके सिर पर फोड़ दिया और इनको इतना अपमानित किया कि इन्होंने बोलना छोड़ दिया और समझाना छोड़ दिया। आज जब आपको किसी को छूने से मना किया जा रहा है तो आप इसे ही विज्ञान बोलकर अपना रहे हैं। एकांत किया जा रहा है तो आप खुश होकर इसको अपना रहे हैं।
शास्त्रों के इन वचनों को ब्राह्मणवाद/ मनुवाद कहकर गरियाया जाता और अपमानित किया जाता रहा है। यह उसी की परिणति है कि आज पूरा विश्व इससे जूझ रहा है। याद कीजिए कि पहले जब आप बाहर निकलते थे तो आपकी माँ आपकी जेब में कपूर या हल्दी की गाँठ इत्यादि रख देती थी। यह सब कीटाणु रोधी होते हैं। शरीर पर कपूर के पानी का लेप करते थे, ताकि सुगंधित भी रहें और रोगाणुओं से भी बचे रहें, लेकिन हमने ये सब भुला दिया है। हमें अपने शास्त्रों को गाली देने और ब्राह्मणों को अपमानित करने में जो आनंद आता है शायद वह परमानंद आपको कहीं नहीं मिलता है। समझिए अपने शास्त्रों को, जिस दिन तुम एक हो जाओगे तो यह देश विश्वगुरू कहलाएगा। तुम अपने शास्त्रों पर ऐसे ऊंगली उठाते हो जैसे कोई मूर्ख व्यक्ति इसरो के कार्यों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। अब भी कहती हूं कि अपने शास्त्रों का सम्मान करना सीखो। उनको मानो। उस व्यक्ति के पास जाओ जो तुम्हे शास्त्रों की बातों को सही ढंग से समझा सके, लेकिन उसको गाली मत दीजिए, जलाने का दुष्कृत्य मत कीजिए।
विज्ञान का गहन अध्ययन जिन्होंने भी किया होगा, वह शास्त्र, वेद, पुराण इत्यादि की बातों को बड़े ही आराम से समझ सकते हैं और समझा भी सकते हैं। मेरे शब्दों पर ध्यान दीजिए, पता नहीं कि आप इसे पढ़ेंगे या नहीं, लेकिन मेरा काम है आप लोगों को जगाना। जिसको जगना है, वह पढ़ लेगा। यह भी अनुरोध है कि आप भले ही किसी भी जाति, समाज से हों धर्म के नियमों का पालन कीजिए इससे इहलोक और परलोक दोनों सुधरेंगे। सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:॥ (यह प्राची भटनागर की फेसबुक पोस्ट से साभार लिया गया कमेंट है)।