Sunday 24 June 2018 03:54:38 PM
हिसाम सिद्दीक़ी
नई दिल्ली। कश्मीर मामलात में नरेंद्र मोदी और उनकी हुकूमत पूरी तरह नाकाम हो गई है। बकौल गुलाम नबी आजाद जमकर पैसा कमाने, फौजी जवानों और अफसरान को दहशतगर्दों के हाथों मरवाने के बाद बीजेपी सरकार भाग खड़ी हुई है और अब ख़बरें यह हैं कि वहां किसी सख्त रिटायर फौजी को भेजकर आम कश्मीरियों को बडे़ पैमाने पर ‘ठीक किया जाएगा’ यानि गोली बंदूक का राज चलेगा।वहां एनएसजी तैनात भी कर दी गई है। खुद बीजेपी के कई लीडरान ने कहा कि महबूबा मुफ्ती की वजह से मुल्क के दुश्मनों और पत्थरबाजों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जा पा रही थी। अब रास्ता साफ हो गया है। राम माधव ने बड़ी सफाई से कहा कि तीन साल में कश्मीर में कट्टरपन में बडे़ पैमाने पर इजाफा हुआ है।
एनडीए पार्टनर्स के साथ दग़ाबाजी करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने महबूबा मुफ्ती के साथ जम्मू-कश्मीर हुकूमत में साझेदारी करके पहले मुल्क, कश्मीर और फौजियों की हर तरह से तौहीन कराई, फिर बड़ी चालाकी के साथ महबूबा सरकार से अपना हाथ खींच लिया। बीजेपी में इतनी भी नैतिकता नहीं रही कि सरकार से अलग होने से पहले तीन साल तक साथ निभाने वाली महबूबा मुफ्ती को यह बताते कि अब हम उनके साथ सरकार नहीं चला सकते। महबूबा तो दूर बीजेपी ने अपने असम्बली स्पीकर, डिप्टी चीफ मिनिस्टर और दीगर वजीरों तक को यह भनक नहीं लगने दी कि वह महबूबा सरकार गिरा रही है। इस 19 जून को दोपहर में बीजेपी ने गवर्नर के जरिए महबूबा को उस वक्त इसकी इत्तेला दी, जब पार्टी जनरल सेक्रेटरी राम माधव मीडिया नुमाइंदों को बुलाकर यह एलान करने जा रहे थे कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर सरकार से अलग हो रही है, तब जम्मू-कश्मीर सरकार में शामिल सभी वजीरों और स्पीकर को अमित शाह अपने आफिस में लिए बैठे थे, दूसरी तरफ राम माधव मीडिया से मुखातिब होकर सरकार से हटने का ऐलान कर रहे थे।
बीजेपी ने कश्मीर के सिलसिले में मोदी सरकार की तमाम नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए नाकामियों का पूरा ठीकरा वजीर-ए-आला रहीं महबूबा मुफ्ती के सर फोड़ दिया। बीजेपी सदर अमित शाह चंद रोज पहले तक दावा कर रहे थे कि कश्मीर में दहशतगर्दी के वाक्यात में बहुत बड़ी कमी आई है। सरकार गिराते वक्त राम माधव ने कहा कि महबूबा मुफ्ती की वजह से दहशतगर्दों पर काबू नहीं पाया जा सका और वादी में कट्टरपन में इजाफा हो गया तो फिर इन दोनों में झूंठ कौन बोल रहा है? कश्मीर जैसा हस्सास यानी संवेदनशील मसला सरकार के हाथ से निकल गया है और तीन साल की लूट-खसोट के बाद अपनी नाकामियों का बोझ सर पर उठाए बीजेपी कश्मीर से भाग खड़ी हुई।
अहम वाकए पर भी वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी के मुंह से एक लफ्ज नहीं निकला, जबकि वह छोटी-छोटी बातों में भी लम्बी-लम्बी तकरीरें करते रहते हैं। कश्मीर में मोदी और महबूबा की मिली जुली सरकार के दौरान तीन सौ से ज्यादा भारतीय बहादुर फौजियों की जान गई है। जम्मू बार्डर के गांवों में रहने वाले सैकड़ों लोग मारे गए हैं, हजारों लोगों को अपना गांव छोड़ कर दूसरी जगह मुंतकिल होना पड़ा है, काश्तकारों की आमदनी का जरिया यानि उनके बड़ी तादाद में मवेशी भी मारे गए। वजीर-ए-आजम नरेंद्र मोदी, डिफेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण और होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह बार-बार घिसा-पिटा बयान देते हैं कि हम फौजियों की कुर्बानी को जाया नहीं जाने देंगे, दहशतगर्दों और दहशतगर्द भेजने वाले पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देंगे, लेकिन जवाब देते हुए सरकार कभी दिखाई नहीं दी। दूसरी तरफ महबूबा सरकार में शामिल बीजेपी वजीर और मेम्बरान असम्बली तक ने जमकर लूट मचाई, सरकारी और फौजी जमीनों पर कब्जे किए।
जम्मू-कश्मीर में किसी दौर में इतने बड़े पैमाने पर बदउनवानी यानी भ्रष्टाचार नहीं हुआ। हद यह है कि मामूली रेवेन्यू अफसर से आईएएस अफसर तक के तबादलो में पैसा खाया गया है। भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा एलेक्शन के पेशेनज़र महबूबा मुफ्ती से अपना दामन बचाने का काम किया है यह पूरा मुल्क जानता है। इस सवाल पर हर तरफ पार्टी की थू-थू तो होही रही थी, मोदी के हिंदुत्ववादी हामी भी अवाम को जवाब नहीं दे पा रहे थे। हुकूमत किसी भी तरह दहशतगर्दी पर काबू नहीं कर पा रही थी। तीन साल की महबूबा-बीजेपी सरकार में सबसे ख़तरनाक काम यह हुआ कि हजारों कश्मीरी नौजवानों ने पाकिस्तान के इशारे पर रायफलें थाम लीं, मकामी तौरपर इतने दहशतगर्द पैदा हो चुके हैं कि अब पाकिस्तान को अपने यहां से दहशतगर्द भेजने की जरूरत ही नहीं है। इन तीन साल में दूसरा ख़तरनाक काम यह हुआ है कि जम्मू और कश्मीर वादी दोनों ही इलाकों के लोगों के दरम्यान जो भाईचारा था, वह नफरत में तब्दील हो गया है।
जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से रिश्ता तोड़ने के बाद तमाम सियासी पार्टियां और सियासी तर्जियानिगार यही कह रहे हैं कि यह एक बेमेल शादी थी और यह तो होना ही था, मगर भारतीय जनता पार्टी ने सरकार में पार्टनर पीडीपी को बगैर कुछ बताए ही सरकार से अलग होने का जो फैसला किया वह न सिर्फ जम्हूरी कद्रों के मनाफी है, बल्कि सीधे-सीधे गद्दारी के जुमरे में आता है और हर किसी को हैरान करने वाला है। सबसे बड़ी बात यह है कि मार्च 2015 में जब हुकूमतसाजी के लिए यह गठजोड़ हुआ था, तब यह कहा गया था कि यह गठजोड़ मुल्क के मफाद में है और जब रिश्ता तोड़ने का फैसला किया गया तो यही कहा जा रहा है कि बीजेपी के लिए एक्तेदार कोई मायने नहीं रखता बल्कि मुल्क का मफाद पहले है। ऐसा कहकर यह तास्सुर देने की कोशिश है कि मुल्क में सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही ऐसी सियासी पार्टी है जो मुल्क के मफाद में अपने को वक्फ किए हुए बाकी तमाम सियासी पार्टियां खुदग़रज, मौका परस्त और एक्तेदार की लालची हैं।
भारतीय जनता पार्टी के सरकार से हिमायत लेने के फैसले का एलान करने के बाद जनरल सेक्रेटरी राम माधव ने जो वजूह बयान कीं, वह सीधे-सीधे बीजेपी को कठघरे में खड़ी करने वाली हैं। उन्होंने कहा कि मरकज़ ने हर तरह की मदद की, लेकिन महबूबा मुफ्ती रियासत में हालात पर काबू पाने में नाकाम साबित हुईं। पीडीपी से गठजोड़ का मकसद रियासत जम्मू कश्मीर की तरक्की करना था, लेकिन महबूबा मुफ्ती ने जम्मू और लद्दाख को नज़रअदांज किया। रमजान के दौरान फौजी आपरेशन रोका गया, जिससे उम्मीद थी कि इसका मुसबत यानी सकारात्मक असर होगा, मगर न तो दहशतगर्दों पर असर पड़ा और न हुर्रियत लीडरों पर असर पड़ा, बल्कि हिंसक वारदातों में इजाफा हुआ, हम भले ही सरकार में थे, लेकिन कयादत महबूबा मुफ्ती के हाथों में थी, पुलिस, इंतजामिया उनके मातहत थे, रियासत में हालात को संभालने में वह नाकाम रहीं, कश्मीर हिन्दुस्तान का अटूट हिस्सा है और सूबे के एत्तेहाद और सालमियत से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता है, कश्मीर के हालात पर काबू पाने के लिए हमने सरकार से अलग होने का फैसला किया।
उन्होंने सरकार से नाता तोड़ने की जो ये वजूह बताई हैं, उनमें एक भी वजह ऐसी नहीं है जो अचानक पैदा हुई हो। राम माधव ने जो वजहें तफसील से बताईं वह तो हुकूमतसाजी के वक्त से बदस्तूर पाई जा रही थीं हां एक वजह का एहसास हाल ही में बीजेपी को हुआ था कि अगर 2019 तक यह गठजोड़ बरकरार रहा तो लोक सभा एलक्शन में शदीद दुश्वारियों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि पीडीपी के साथ रहते हुए अवाम का सामना आसान न होगा। एक बीजेपी लीडर के मुताबिक जम्मू कश्मीर में जो सूरतेहाल पैदा हो गई थीं और जिस तरह हमारे वोटर हमसे नाराज़ होते जा रहे थे, खुसूसन जम्मू और लद्दाख में तो हमारे पास पीडीपी का साथ छोड़ने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था।
तर्जियानिगार अब यह कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर हुकूमत में शामिल एक धड़े ने खुद अपनी ही सरकार से गवर्नर राज की सिफारिश करके अपनी नाकामी को तस्लीम कर लिया है तो इसका जवाब सुब्रमण्यम स्वामी ने बेहतर तरीके से दिया है। उन्होंने इसका एतराफ किया कि महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाना एक जुआ था, मगर यह बाजी बीजेपी हार गई। उन्होंने साफ लफ्जों में कहा कि डोगरा समाज हमारे खिलाफ हो गया है। हम अगर अब भी सरकार में शामिल रहते तो सारी सीटें हार जाते। सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने ट्वीट में यह भी कहा कि राम माधव ने बीजेपी-पीडीपी सरकार की नाकामी का एतराफ किया है। इसके लिए राम माधव और डोभाल के सिवा कौन जिम्मेदार है? (हिसाम सिद्दीक़ी वरिष्ठ पत्रकार हैं और उनका यह राजनीतिक विश्लेषण सोशल मीडिया से साभार है)।