सतीश के शर्मा
मुंबई।इन आतंकवादियों के शवों को मुंबई के कब्रिस्तान में कोई जगह नहीं देने का मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट ने जो फैसला लिया वह किसी के भी शव के अंतिम संस्कार करने के बुनियादी सिद्धांत के पूरी तरह खिलाफ है। सर्व विदित है कि जो आतंकवादी मुंबई में अनगिनत निर्दोष और निहत्थे लोगों की निर्ममतापूर्वक हत्या और राष्ट्रीय धरोहरों को नेस्तनाबूद करने के जिम्मेदार हैं, वह कोई अपनी मर्जी से इस दहशतगर्दी को अंजाम देने नहीं आए थे, बल्कि उनके पीछे, उनके पाकिस्तान के विध्वंस और विघटनकारी सरगना थे, जिन्होंने उन्हें खास मकसद के लिए खास प्रकार की ट्रेनिंग देकर मुंबई भेजा था। उनमें से ये नौ अपने आकाओं के आदेश को अंजाम देते हुए भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों मारे गए जबकि एक अजमल कसाब उनके हत्थे चढ़ गया। ऐसे अभियान पर निकलने के बाद वे यहां नहीं तो किसी अन्य मुल्क में मारे जाते या मकसद पूरा करके भाग जाते। वे मुंबई में मारे गए और अब देश के कुछ उत्साही मुसलमान अगर यह कह रहे हैं कि इन्हें हिंदुस्तान की सरज़मीं पर न दफनाया जाये तो यह कतई मुनासिब नहीं कहा जा सकता है।
मर्यादा पुरूषोत्तम राम का युद्ध क्षेत्र में शत्रु के शव के प्रति व्यवहार का एक उच्च आदर्श यहां काफी प्रासंगिक है। यह दृष्टांत उन राम ने प्रतिपादित किया जिनकी नगरी अयोध्या में उन्हें सम्मान से एक गज जमीन भी नहीं दी जा रही है और जिनके जन्म स्थान को लेकर देश भर में सांप्रदायिक लड़ाईयां लड़ी जा रही हैं। उस स्थान पर हमले किए जा रहें हैं जहां कहा जाता है कि राम का जन्म हुआ था। उस पर मुकद्मेंबाज़ी की जा रही है। उन्हीं राम के आदर्श का एक उदाहरण उन मुसलमानों के मुंह पर एक तमाचा है जो मुंबई में निर्दोष और निहत्थे लोगों की हत्या करने के जिम्मेदार और बाद में भारतीय सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए मुसलमान आतंकवादियों के शवों को मुंबई के कब्रिस्तान में दफनाने का विरोध कर रहे हैं।
जिस समय रावण का पुत्र मेघनाथ युद्ध भूमि में लक्ष्मण के हाथों मारा गया तो वानर सेना ने राम से आग्रह किया कि चूंकि मेघनाथ ने युद्धनीति से हटकर कपटयुद्ध किया है और उसने आपको एवं वानर सेना को छद्म युद्ध से अनेक बार भारी क्षति पहुंचाई है, और यहां तक कि धोखे से आपको नागपाश में भी फंसाया है तो वानरसेना की इच्छा है कि मेघनाथ के शव की दुर्गति की जाए ताकि उसके पिता और लंका के राजा रावण को भी एहसास हो कि कपट युद्ध लड़ने का क्या परिणाम होता है। राम ने वानरों के विचारों और वरिष्ठ सैनिक जामवंत की बात को सुना और उन्हें क्या उत्तर दिया यह देखिए!
राम ने जामवंत से कहा कि मेघनाथ जब तक हमसे युद्ध लड़ रहा था, तब तक वह हमारा शत्रु था, रणभूमि में युद्ध लड़ते हुए उसकी मौत होने के साथ ही उससे हमारी शत्रुता समाप्त हो गई। मेघनाथ ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए उनके दिशा-निर्देश पर ही हर प्रकार से और हर युक्ति से युद्ध लड़ा। उसने अपने पिता की इच्छा के लिए अपने प्राण गंवाए, इसने घोर युद्ध लड़ा, इसके शव के साथ अनादर का भाव प्रकट नहीं किया जाए, इस वीर का शव इसके माता-पिता के सामने भी अनादर से नहीं जाना चाहिए। राम के यह आदर्श वचन सुनकर वानरसेना और समस्त सेनाधिकारी राम के सामने नतमस्तक हो गए।
राधेश्याम कृत रामायण में यह बात इस प्रकार से कही गई है -
एक राजपुत्र एक परमवीर एक तेजवान कहला के,
गया परमवीर की भांति, वीर के हाथ वीरगति पा के,
रघुवर ने उसे सम्मान सहित भेजा निज वस्त्र उढ़ा के,
लंका का वीर लंका के द्वार हनुमान ने रख दिया ला के।।
इसलिए भारत जैसे देश में जहां इस प्रकार के आदर्श दृष्टांत मौजूद हों तो वहां पर मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट का फैसला कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। इन हमलावरों ने वही काम किया जिसका कि उन्हें दिशा-निर्देश मिला था या मिल रहा था। किसी भी प्रकार के युद्ध के अलग-अलग नियम-सिद्धांत हो सकते हैं, किंतु शव के प्रति व्यवहार का एक ही सिद्धांत है कि हर संभव उसको उसके धार्मिक रीति-रिवाजों की गत मिले। जब किसी को फांसी पर चढ़ाया जाता है तो उसके बाद उसके शव का उसके धर्म एवं रीति के मुताबिक अंतिम संस्कार किया जाता है। सामाजिक मामलों में भारत की पूरे विश्व में जो ख्याति है वह ही भारत को कभी मिटने नहीं देती है। यहां पर सभी का मान-सम्मान होता है, चाहे वह कोई भी हो। यहां मेहमान को भगवान समझा जाता है और शत्रु से भी तभी उसकी भाषा में निपटा जाता है कि जब उससे निपटने का कोई रास्ता ही नहीं बचता।
इसलिए मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट के इन आतंकवादियों को मुंबई में दफन के लिए कोई जगह नहीं देने के फैसले का समर्थन नहीं किया जा सकता है। उनके शव को उनके रीति-रिवाज के मुताबिक दफनाने की परंपरा का पालन होना उचित कहा जा सकेगा क्योंकि उनकी मौत के साथ ही उनसे शत्रुता समाप्त हो गई। भले ही उन्होंने बासठ घंटे तक मुंबई की सुरक्षा को झकझोरते हुए निर्दोष लोगों की हत्याएं कीं और बाद में भारतीय सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए। इसकी उन्हें सजा भी मिल गई है।
खबर आई थीकि मुंबई के मुस्लिम काउंसिल ट्रस्ट ने मुंबई की सभी कब्रिस्तान कमेटियों से पत्र लिखकर आग्रह किया है कि किसी भी आतंकी के शव को अपने इलाके के कब्रिस्तान में दफन न करने दें। इस आशय का एक पत्र मुंबई के बड़ा कब्रिस्तान के मैनेजर शकील शाहबाज को भी मिला। पत्र में लिखा हैकि जो काम इन आतंकियों ने किया है, वह इस्लाम के खिलाफ है। इस्लाम में आतंकवाद का पूरी तरह निषेध है, इसलिए इन आतंकियों को किसी भी कब्रिस्तान में दफना कर उसे नापाक न किया जाए। उल्लेखनीय है कि मुंबई मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों का अंतिम संस्कार उनके धर्म के अनुसार होना है। चूंकि इन लाशों का कोई दावेदार नहीं है, इसलिए प्रशासन इन्हें किसी कब्रिस्तान के मैनेजर को सौंपने की योजना बना रहा है। इस प्रकरण पर बरेली में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां कहते हैं कि हमारे कब्रिस्तान में उनको दफन नहीं करना चाहिए। वैसे यह सरकार तय करे कि उनको कहां दफनाना चाहिए। हालांकि ये लोग इस्लाम और मुल्क के दुश्मन हैं। फिर भी हम लाशों से दुश्मनी नहीं करते। दूसरी ओर, देवबंद में दारूल उलूम के नायब मौलाना खालिक मद्रासी ने कहा कि दहशतगर्द किसी भी मुल्क के हों उनका इरादा खूनखराबे का ही था। इसलिए उन्हें दफनाने पर मुल्क को कानून के हिसाब से ही फैसला लेना चाहिए। हालांकि आतंकियों के शवों को हिंदुस्तान में न दफनाने के फैसले से लखनऊ के उलेमा इत्तेफाक नहीं रखते। इसलामिक स्कालर डॉ आरिफ अय्यूबी कहते हैं कि अगर कोई मुसलमान है तो उसे दफनाना वाजिब है।