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भुवनेश्वर। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार यहां भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 99वें वार्षिक अधिवेशन का उद्घाटन किया और कहा कि भारतीय विज्ञान का विकास हमारे पूर्व के राष्ट्र निर्माताओं की दूरदृष्टि की देन है, जिन्होंने हमारी विकास योजना की प्रक्रियाओं में विज्ञान को महत्वपूर्ण स्थान दिया। प्रधानमंत्री ने प्रोफेसर गीता बाली को इस बात के लिए बधाई दी कि उन्होंने इस कांग्रेस के लिए-महिलाओं की भूमिका के विशेष संदर्भ में समग्र नवीकरण के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का महत्व-जैसे विषय को चुना। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नवीकरण परिषद का, भारत समग्र नवीकरण कोष स्थापित करने का प्रस्ताव है, जिससे उद्यमों, उद्यमशीलता और उद्यम पूंजी को प्रोत्साहन मिलेगा और साथ ही समाज के निचले वर्गों की समस्याओं के हल भी ढूंढे जाएंगे।
उन्होंने कहा कि ओड़ीशा में इस अधिवेशन का होना बहुत ही उचित है, क्योंकि इस वर्ष हम बीजू पटनायक के स्थापित यूनेस्को-कलिंग पुरस्कार की 60वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। सौ वर्ष पहले 20वीं शताब्दी की सबसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों में से एक मैडम मेरी क्यूरी ने अपना पहला नोबेल पुरस्कार जीता, उनकी उपलब्धियों के सम्मान में पिछले वर्ष को अंतर्राष्ट्रीय रसायन वर्ष घोषित किया गया। मैडम मेरी क्यूरी ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिए एक ज्योति जगाई, लेकिन उनके कार्य ने उनके इस विश्वास को भी उजागर किया कि अंतत: विज्ञान को सामाजिक कल्याण के लिए योगदान देना चाहिए। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक्सरे केंद्र स्थापित करने में सहायता की और क्यूरी फाउंडेशन की स्थापना की, जो बाद में भंयकर कैंसर रोग के उपचार में बहुत बड़ा संबल बना।
मनमोहन सिंह ने कहा कि देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। नई संस्थाओं की स्थापना करके विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए उच्च शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं का काफी विस्तार किया है, ग्यारहवीं पंच वर्षीय योजना से अनुसंधान और विकास में सार्वजनिक निवेश प्रति वर्ष 20 से 25 प्रतिशत बढ़ा है, विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहन देने के लिए कई परियोजनाओं के लिए धन दिया गया है, बड़ी संख्या में छात्रवृत्तियां शुरू की हैं, इनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है-निर्दिष्ट अनुसंधान के लिए विज्ञान में नवीकरण की योजना ‘इंसपायर’ के लिए दस लाख विज्ञान छात्रों को पुरस्कार।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों के प्रकाशित वैज्ञानिक आलेखों की संख्या में वैश्विक औसत 4 प्रतिशत के मुकाबले प्रति वर्ष 12 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि हुई है। पत्रिकाओं में वैज्ञानिक आलेखों की संख्या की दृष्टि से 2003 में भारत का स्थान 15वां था, जो 2010 में 9वां हो गया है। विश्वविद्यालय अनुसंधान प्रणाली भी आगे बढ़ रही है। वर्ष 2008 में विश्वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्कृष्टता प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 14 विश्वविद्यालयों को पुरस्कार दिये गए थे, उसी कसौटी पर 2010 में 30 और विश्वविद्यालय खरे उतरे हैं। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अंतर्गत प्रति पत्र प्रशस्तियों में 50 शीर्ष भारतीय वैज्ञानिक संस्थाओं में से राजस्थान विश्वविद्यालय सबसे आगे है।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में विज्ञान जगत में भारत की स्थिति अपेक्षतया नीचे चली गई है और चीन जैसे देश ऊपर आ गये हैं, अब स्थिति बदल रही है, लेकिन जो कुछ हमने प्राप्त किया है, हम उससे संतुष्ट नहीं हो सकते, भारतीय विज्ञान की छवि बदलने के लिए हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है, हमें अपने वैज्ञानिक कार्यों को अपने विकास के चरण के अधिक अनुकूल बनाना होगा, हम 12वीं पंच वर्षीय योजना शुरू करने जा रहे हैं, लिहाजा, कुछ ऐसे उद्देश्य हैं, जिन्हें विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में प्राप्त करने की हमें पूरी कोशिश करनी होगी। इनमें पहला-उद्योग और महत्वपूर्ण क्षेत्रों सहित अनुसंधान और विकास में निवेश को काफी बढ़ाना होगा। दूसरा-नवीकरण ईको प्रणाली के विकास को सुनिश्चित करना होगा। तीसरा-विज्ञान और प्रौद्योगिकी को देश की समग्र विकास की आवश्यकताओं के अधिक अनुरूप बनाना होगा। चौथा-वैज्ञानिक बुनियादी सुविधाओं का विकास करना होगा। पांचवां-विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के बीच अधिक अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देना होगा। इस उद्देश्य के लिए हम राष्ट्रीय नॉलेज नेटवर्क का उपयोग कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकारी विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थाओं और उद्योगों के बीच आदान-प्रदान में वृद्धि करनी होगी, यह विडंबना है कि ‘जनरल इलैक्ट्रिक एंड मोटोरोला’ ने भारत में वैश्विक श्रेणी के टैक्नोलोजी हब विकसित किये हैं, जबकि संभवत: औषधि उद्योग को छोड़कर हमारे अपने अन्य उद्योग ऐसा नहीं कर सके हैं, इसलिए हमें भारतीय परिस्थितियों में निजी अनुसंधान और विकास के निवेश को प्रोत्साहित करने के उपाय करने होंगे। इस समय सरकारी सहायता प्राप्त अनुसंधान और विकास कार्य मुख्य रूप से बुनियादी अनुसंधान के लिए किये जा रहे हैं, न कि प्रायोगिक अनुसंधान के लिए। प्रायोगिक अनुसंधान के क्षेत्र में उद्योगों से निवेश को, आकर्षित करना आसान है और हमें इसके लिए अनुकूल नियम बनाने होंगे, इसलिए अनुसंधान और विकास में सरकारी-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना होगा।
उन्होंने कहा कि सिंगापुर में बायोपोलीस, सामूहिक प्रयास का एक ऐसा दिलचस्प उदाहरण है, जिसने जैव-विज्ञानों के क्षेत्र में सरकारी प्रयोगशालाओं और गैर-सरकारी उद्योगों से 2 हजार वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं को एक ही स्थान पर आकर्षित किया है। भारत में हमारा ओपन सोर्स ड्रग डिस्कवरी प्रोजेक्ट, वास्तव में एक सामूहिक प्रयास है, जो उपयोगी और प्रभावी हल दे रहा है, जो केवल परंपरागत तरीके के प्रयोगशाला अनुसंधान से संभव नहीं हो पाता। राष्ट्रीय नवीकरण परिषद का, भारत समग्र नवीकरण कोष, स्थापित करने का प्रस्ताव है, जिससे उद्यमों, उद्यमशीलता और उद्यम पूंजी को प्रोत्साहन मिलेगा और साथ ही समाज के निचले वर्गों की समस्याओं के हल भी ढूंढे जाएंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हम कृषि, वास्तु कला, हस्तशिल्प और कपड़ा क्षेत्र जैसे क्षेत्रों में हमारे देश में उपलब्ध परम्परागत ज्ञान और पद्धतियों को खोंजे और उन्हें उन्नत करें, इसके लिए हमें बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, मयूरभंज के घने वन क्षेत्रों में खारिया, संथाल, गोंड और कोल्हा जाति के आदिवासी समुदाय रहते हैं, उनके पास स्थानीय तौर पर उपलब्ध जड़ी-बूटियों के उपयोग से उपचार के ज्ञान का भंडार है। उन्होंने कहा कि मैं कोरापुट के आदिवासी समुदाय को बधाई देता हूं, उन्हें जैव-विविधता को संरक्षित रखने में योगदान के लिए और जलवायु के अनुकूल कृषि पद्धतियां विकसित करने के लिए वैश्विक मान्यता मिली है। उन्होंने कहा कि हमें एक बुनियादी सवाल पूछना चाहिए कि भारत जैसे देश में विज्ञान की भूमिका क्या है? इसका कोई सरल उत्तर नहीं है, लेकिन जो देश गरीबी और विकास की चुनौतियों से जूझ रहा हो, उसके लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवीकरण की व्यापक और सुविचारित नीति का सबसे बड़ा उद्देश्य त्वरित सतत और समग्र विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोग होना चाहिए।
इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए वैज्ञानिक समुदाय बहुत कुछ कर सकता है। हमारे लोगों की खाद्य, ऊर्जा और जल सुरक्षा की समस्याओं के साधारण हल ढूंढना अनुसंधान का उद्देश्य होना चाहिए, विज्ञान से हमें यह समझने में मदद मिलनी चाहिए कि हम सतत विकास और हरित विकास की धारणा को मूर्त रूप कैसे दें, विज्ञान को हमारी सोच को बदलने में मददगार होना चाहिए, जिससे कि हम अपने संसाधनों को अधिक उपयोगी कार्य में लगा सकें, प्रौद्योगिकी और प्रोसेस इंजीनियरिंग से हमें मदद मिलनी चाहिए, जिससे कि विकास के लाभ उन तक पहुंच सके, जिन्हें इनकी सबसे ज्यादा जरूरत है। उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि वे अपने सम्मिलित ज्ञान और विवेक से इन महत्वपूर्ण मिशनों की सफलता में योगदान दें। खाद्य उत्पादन में वृद्धि और पौष्टिकता सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है और हमारे कृषि वैज्ञानिकों को ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल करनी चाहिए, जिससे दूसरी हरित क्रांति एक वास्तविकता बन सके। हम सुपर कंप्यूटर के क्षेत्र में राष्ट्रीय क्षमता और योग्यता के विकास के एक प्रस्ताव का अध्ययन कर रहे हैं, जिसे भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू मूर्त रूप देगा, इस पर पांच हजार करोड़ रूपये के खर्च का अनुमान है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु में थेनी ज़िले में एक न्युट्रीनो वेधशाला स्थापित करने के प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है, इस पर 1350 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है, भूविज्ञान विभाग ने भारतीय मॉनसून से संबंधित भविष्यवाणियों में सुधार के लिए एक मॉनसून मिशन की शुरूआत की है। इस वर्ष नोबेल पुरस्कार समिति ने तीन विशिष्ट महिलाओं के योगदान को मान्यता दी है, जो अपने-अपने देशों में शांति, लोकतंत्र और मानव गरिमा के लिए संघर्ष में परिवर्तन की प्रेरणादायक सूत्रधार बनी। भारत में भी परंपरागत पुरूष प्रधान समाज में महिलाएं आगे बढ़ रही हैं और निर्णायक भूमिकाएं निभा रही हैं। अग्नि मिसाइल कार्यक्रम की प्रोजेक्ट डायरेक्टर प्रतिभाशाली महिला वैज्ञानिक डॉ टेसी थॉमस हैं। पिछले वर्ष पहली बार तीन महिला वैज्ञानिकों को प्रतिष्ठित शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला, जबकि 1958 से लेकर पिछले वर्ष तक कुल 11 महिलाओं को पुरस्कार मिला।
उन्होंने कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ‘दिशा’ नाम से एक और योजना भी तैयार कर रहा है, जिससे महिला वैज्ञानिक एक से दूसरे शहर में स्थानांतरित होकर जा सकेंगी, विभाग इस उद्देश्य के लिए सरकारी सहायता प्राप्त संस्थाओं में अनुबंध के आधार पर एक हजार पद सृजित करेगा, एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर सेवारत महिला वैज्ञानिक को बराबर राशि की फेलोशिप दी जाएगी, लेकिन, हमें पिछले वर्ष प्रकाशित एक अध्ययन के परिणामों पर भी गौर करना चाहिए, जिसमें बताया गया है कि करीब 2 हजार भारतीय विज्ञान पीएचडी महिलाओं में से, जिनका सर्वेक्षण किया गया, 60 प्रतिशत बेरोजगार हैं। इसका मुख्य कारण रोजगार के अवसरों की कमी बताया गया। बहुत कम मामलों में इसके लिए पारिवारिक कारण बताए गए। इससे पता चलता है कि संस्थाओं में चुनाव प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है और स्त्री-पुरूष को बराबरी का दर्जा देना महत्वपूर्ण है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि एक और महान भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस का नाम उस ‘प्रारंभिक कण’ की खोज के साथ जुड़ा हुआ है, जो उप-परमाणु भौतिकी के बारे में हमारी समझ में क्रांति ला सकता है। अंतिम विश्लेषण के तौर पर कहा जा सकता है कि विज्ञान का ज्ञान पाने की प्रक्रिया मानव मस्तिष्क के खुलने की प्रक्रिया है, हम अपनी कल्पनाओं की सीमा को विस्तार देकर सृष्टि के रहस्य, सौंदर्य और पद्धति की खोज करते हैं, हमें अर्थशास्त्र और जीवन शैली के हर क्षेत्र में भी विज्ञान की शक्ति का उपयोग करने की आवश्यकता है, मैं इसाक असिमोव को उद्धृत करना चाहूंगा, जिसने कहा था–विज्ञान का केवल एक प्रकाश है, इसे कहीं भी प्रज्ज्वलित करना सभी स्थानों पर प्रज्ज्वलित करना है।