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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने गंगा पर प्रस्तावित कोटली-भेल परियोजनाओं पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन को नोटिस जारी किया। विमल भाई, राजेंद्र सिंह नेगी और त्रिलोक सिंह रावत माटू जनसंगठन और डॉ भरत झुनझुनवाला ने पर्यावरण स्वीकृति को चुनौती देने वाली याचिका पर न्यायाधीश डीके और अनिल आर दवे ने 27 जनवरी 2012 को यह नोटिस जारी किया।
चौदह सितंबर 2010 को राष्ट्रीय पर्यावरण अपीलीय प्राधिकरण ने कोटली-भेल ए 1 (195 मेवा) और कोटली भेल 2 (520 मेवा) की पर्यावरण स्वीकृति पर रोक की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि गंगा के प्रवाह पर बांधो से कोई फर्क नही पड़ेगा। वादियों ने प्राधिकरण के इसी निर्णय को चुनौती सर्वोच्च न्यायालय दी है।
वादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राज पंजवानी, अनिता शिनॉय, रित्विक दत्ता एवं राहुल चौधरी ने अदालत में पक्ष रखा। इन भीमकाय बांधों में जहां विभिन्न महत्व के पर्यावरणीय और सामाजिक विषयों के प्रश्न अनुत्तरित हैं, वहीं उत्तराखंड के सांस्कृतिक समृ़द्ध क्षेत्र पर भी डूब का खतरा मंडरा रहा है। भागीरथी पर प्रस्तावित कोटली-भेल 1 अ में 17 किलोमीटर जलाशय प्रस्तावित है, जो कि भागीरथी गंगा का आखिरी स्वतंत्र हिस्सा शेष है, इसके ऊपर मनेरी भाली चरण एक, मनेरी भाली चरण दो, टिहरी बांध, कोटेश्वर बांध कार्यरत है। यह पूरा क्षेत्र भूकंप प्रभावित है, वर्ष 2010 के मानसून में कोटली-भेल 1 अ के प्रस्तावित बांध स्थल के निकट ही स्थापित एनएचपीसी का दफ्तर धराशायी हो गया था।
प्रस्तावित कोटली भेल चरण 2 का 32 किलोमीटर जलाशय भागीरथी गंगा और अलकनंदा गंगा के आध्यात्मिक संगम देवप्रयाग जहां से गंगाजी पहाड़ो में पूर्ण होती है, उसको डूबायेगा। महत्वपूर्ण बद्रीनाथ धाम का प्राचीन ऐतिहासिक मार्ग और उससे जुड़े आध्यात्मिक स्थलों को भी डुबाने की तैयारी है। राष्ट्रीय नदी गंगा के प्रति अपना कर्तव्य निभाने के लिये सभी हर स्तर पर संघर्ष करेंगे, जमीनी स्तर से लेकर माननीय अदालत में भी।