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नई दिल्ली। तीन जलवायु संरक्षण कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली में पश्चिम मार्ग पर सऊदी अरब के दूतावास पर एक बैनर फहराया जिसमें लिखा था,'सऊदी अरब तेल व्यापार के लिए कोपेनहेगन में हमारी जलवायु का सौदागर मत बनें!' नई दिल्ली में हुआ यह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन दुनिया के 15 विकासशील देशों में एक समय में हो रहे विरोध प्रदर्शन में से एक था। इस मौके पर दुनिया भर के देश बार्सिलोना में एक नए वैश्विक जलवायु समझौते पर बातचीत शुरु कर रहे हैं।
कार्यकर्ताओं में से एक,तसलीम हुसैन ने कहा कि 'मैं इसके लिए सऊदी अरब से आग्रह करता हूं कि मौजूदा बातचीत के माहौल में वह एक रुकावट की भूमिका खेलना बंद करे और सबसे गरीब और सबसे कमजोर देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने में समर्थन दे।' गौरतलब है कि सऊदी अरब एक महत्वाकांक्षी जलवायु समझौते को तेल के व्यापार के लिए खतरा मानता है। ऐतिहासिक दृष्टि से वह पहले भी दुनिया के सभी देशों को इस तरह के किसी समझौते तक पहुंचने से रोकने की कोशिश कर चुका है। अनेक गैर सरकारी संगठन, बातचीत की इस प्रक्रिया में सऊदी अरब की रणनीति को लेकर चिंतित हैं। उसके इस रवैये के कारण गरीब और कमजोर समुदायों की तत्काल जरूरतें प्रभावित हो रही हैं।
अभी पिछले बातचीत के बान और बैंकाक सत्रों मे सऊदी अरब, कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर आम सहमति बनने में रुकावट डालने में कामयाब रहा है। यह मुद्दे विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से गरीब और कमजोर देशों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इससे अनुकूलन पर चर्चा की प्रगति में देरी हो रही है। यह एकमात्र ऐसा देश है जिसने एक अतिरिक्त सत्र में बातचीत करने पर सहमति बनने की प्रक्रिया को रोका। सऊदी अरब वैश्विक उत्सर्जन में कमी के लिए एक संख्यात्मक लक्ष्य पर आम सहमति बनाये जाने में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
ज्ञात हो कि एक नई जलवायु समझौते के लिए बातचीत का अंत इस दिसम्बर के करीब आ रहा है। सभी सरकारों के लिए यह जरूरी है कि इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के अवसर का लाभ उठाएं जबकि सऊदी अरब, जी77 में नकारात्मक भूमिका निभा कर कोपेनहेगन में एक समझौता होने की प्रक्रिया को कमजोर कर रहा है। सऊदी अरब सबसे सक्रिय विकासशील देशों में से है। पैट्रोलियिम देशों के अपने प्रतिनिधिमंडल का उसे कुशल और अच्छा अनुभव है। अरब जलवायु एलायंस के संस्थापक वाइल हामदीन जो बार्सिलोना में बातचीत सत्र में मौजूद हैं, ने कहा है कि सऊदी अरब एक औद्योगिक धनी देश है और जलवायु परिवर्तन का सामना करने में कुछ अपना तेल राजस्व जरूर खो सकता है,जबकि गरीब समुदाय जलवायु परिवर्तन से तबाह हो जाएंगे।