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पाकिस्तान का जासूस कबूतर !

लिमटी खरे

लिमटी खरे

कबूतर

हिन्दुस्तान को हर तरह से अस्थिर करने की कोशिश में लगे पाकिस्तान ने अब जासूस कबूतर भेजना आरंभ कर दिया है। पिछले दिनों त्रिकुटा पर्वत पर वैष्णो देवी के बेस कैम्प कटड़ा में पकडे गए एक कबूतर के पैर पर कुछ संदिग्ध टेलीफोन नंबर और संदेश दर्ज था। इसी तरह का एक कूबतर पाकिस्तान सीमा पर ततेयाल गांव के करीब भी पकड़ा गया है। पिछले साल भी इसी तरह का एक कबूतर आरएसपुरा के पास सुचैतगढ़ में पकड़ा गया था। भारतीय सतर्कता एवं सुरक्षा बलों ने इन कबूतरों पर लिखे संदेशों की डिकोडिंग आरंभ कर दी है। हो सकता है कि इन कबूतरों के माध्यम से कैमरा चिप आदि के माध्यम से चित्र वीडियो फुटेज आदि जुटाए जा रहे हों। यह भी हो सकता है कि इस तरह से 'कबूतर हमला' करके भारत पर आक्रमण की नई रणनीति तैयार की जा रही हो। आमतौर पर इस तरह के खास कबूतरों को संदेश लाने ले जाने के काम में इस्तेमाल किया जाता है। ये कबूतर लगातार लंबी उड़ान भर सकते हैं और बिना रास्ता भटके अपने घर मुकाम पर लौट सकते हैं। उड़ान के पहले इन्हें बादाम, काले चने और दूध पिलाया जाता है। भारत के लिए तो कबूतरों की चुनौती भी कोई कम नही है क्योंकि यहां का खुफियातंत्र भगवान भरोसे चलता आ रहा है।

 

वे नक्सली नहीं तो और क्या बनेंगे ?

आदिवासियों के बच्चों को अगर नहीं पढ़ाया गया तो वे नक्सली नहीं तो और क्या बनेंगे? यह बात संसद की आदिवासी मामलों की सलाहकार समिति में सांसदों ने कही है। उनकी सलाह है कि केंद्र सरकार को चाहिए कि आदिवासी बच्चों की स्कॉलरशिप को बढ़ाया जाए और उन्हें पढ़ने के लिए उत्तम माहौल मुहैया करवाया जाए। यह सुनकर आदिवासी विकास मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया के चेहरे पर बेचारगी के भाव साफ तौर पर दिख रहे थे। उत्तर में उन्होंने कहा कि इस मामले में उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से संरक्षण चाहा है। सवाल उठा है कि इसमें भी केंद्र सरकार के मंत्रियों को कांग्रेस अध्यक्ष का मुंह ताकना पड़े तो यह तो आश्चर्य की ही बात कही जा सकती है। मंत्री महोदय साफ-साफ बताएं कि किस माह से केंद्र सरकार आदिवासी बच्चों की स्कॉलरशिप बढ़ाने जा रही है? सांसदों के इस सवाल पर आदिवासी विकास मंत्री बगलें झांकते ही नज़र आए। एक तरफ तो नक्सलवाद को लेकर कांग्रेस के महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह अपनी ही सरकार के गृह मंत्री की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नक्सलवाद के समाधान की रणनीति पर कांग्रेस के ही मंत्री की लाचारगी आश्चर्यजनक लगती है।

प्लेटफार्म पर 'चढ़ावा'?
दिल्ली में प्लेटफार्म पर हुई भगदड़ से संबंधित नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं। कहा जा रहा है कि इसके पीछे वैंडर्स का खेल है, जिससे उच्चाधिकारी भी भली भांति परिचित हैं। अजीब सी चर्चा है कि कौन सी रेलगाडी किस प्लेटफार्म पर आएगी इसको तय करता है, 'चढ़ावा'? यानि रेलवे स्टेशन पर खानपान और अन्य सामग्रियां बेचने वाले वेंडर्स के 'चढ़ावे' पर तय होता है कि कौन सी रेलगाडी किस प्लेटफार्म पर आएगी। ये वेंडर्स पहले से ही उस प्लेटफार्म पर अपनी ट्राली लगा लेते हैं, और आरंभ होता है चढ़ावे का खेल। दिल्ली में बीते दिनों हुई भगदड़ पर अगर नजर डाली जाए तो प्लेटफार्म नंबर 2 पर सात, छः और सात पर अस्सी, 8 और 9 पर सत्तर, 10 और 11 पर साठ, 12 और 13 पर एक सौ पच्चीस, 14 और 15 प्लेटफार्म नंबर पर पचास अवैध वेंडर्स ने अपना डेरा जमा रखा था। गौरतलब है कि प्लेटफार्म 15 गाड़ी 13, तेरह को 12 पर स्थानांतरित किया गया था। अब क्या समझा जाए? कि रेलवे के कण कण में भ्रष्टाचार समा चुका है, जिसे निकाल पाना शायद किसी के वश की बात नहीं है।

आप भी दे सकते हैं कसाब को फांसी
देश की व्यवसायिक नगरी मुंबई पर 2008 में हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के इकलौते जिंदा दोषी अजमल कसाब के नृशंस कारनामे पर हर भारतीय का मन होता होगा कि कसाब की गर्दन हाथ में आ जाए तो उसे फांसी पर चढ़ा दिया जाए। अब वास्तविकता में तो आप ऐसा नहीं कर सकते किंतु अगर आप चाहें तो इंटरनेट पर कसाब पर अपनी खीज उतारते हुए उसको फांसी पर चढ़ा सकते हैं। नेट पर 'आनलाईन रियल गेम्स डॉट कॉम' पर 'हेंग कसाब' नाम का खेल मौजूद है। इस पर आप जितनी बार चाहें कसाब को फांसी पर चढ़ा सकते हैं। हर बार सफलता पूर्वक फांसी देने पर आपको बाकायदा 100 प्वाईंट भी मिलेंगे। एक मिनिट के इस खेल में कसाब बचने की हर संभव कोशिश करता है। हिंदुस्तान में यह खेल इतना लोकप्रिय हो गया है कि रोजाना एक लाख लोग कसाब को फांसी पर चढ़ा रहे हैं।

उर्दू अकादमी का यह कैसा पुरस्कार ?
अल्पसंख्यक वोट बैंक मजबूत करने के जुगाड़ में हर सरकार में उर्दू भाषा को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता रहा है और इस मामले में कांग्रेस का तो कोई सानी नहीं है। उर्दू को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार में करोड़ों रूपए फूंके जाते हैं मगर दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की उर्दू अकादमी की कार्यशैली देखिए जहां उर्दू जुबान के साहित्यकारों का सरेआम मखौल उड़ाया जा रहा है। वर्ष 2009-2010 के लिए अकादमी पुरस्कारों की घोषणा की गई। चयन समिति ने विभिन्न स्तरों पर पुरस्कारों के लिए देश भर से ग्यारह लोगों का चयन किया था। उर्दू अकादमी के बुलावे का चयनित लोगों को बेसब्री से इंतजार था। इन्हें पुरस्कार लेने आने का बुलावा तो नहीं आया पर पुरस्कार राशि और प्रशस्ति पत्र डाक एवं तार विभाग के सौजन्य से उनके घर पहुंचा दिए गए। उर्दू साहित्यकारों को बड़ी बेज्जती महसूस हुई। उनकी बात और आपत्ति वाजिब है। उनका कहना है कि यह सम्मान बाकायदा सम्मान समारोह आयोजित कर किया जाना चाहिए था, और महामहिम राज्यपाल उन्हें पुरस्कृत करते लेकिन यह परंपरा भी तोड़ दी गई। ऐसे पुरस्कार का क्या लाभ?

शेखावत के खाते में एक रूपये नौ पैसे !
देश के पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत के एक बैंक खाते में महज एक रूपए नौ पैसे ही जमा हैं। जीहां, आपको यह जानकर अश्चर्य हुआ होगा कि शेखावत के राजस्थान के उदयपुर स्थित महिला समृद्धि बैंक के खाते में महज एक रूपए नौ पैसे ही जमा हैं। इस खाते के खुलने के उपरांत से ही इसमें कोई लेन देन नहीं हुआ है। दरअसल 1995 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इस बैंक का उद्घाटन किया था। उस समय बैंक के अनुरोध पर भैरो सिंह शेखावत ने महिला समृद्धि बैंक में खाता खुलवाया था। कहते हैं कि उस समय शेखावत की जेब में महज बीस रूपए ही थे। गनीमत रही कि उस समय वहां उपस्थित एक बैंक कर्मी ने शेखावत के खाते को खोलने के लिए अपने पास से दो रूपए मिलाए तब जाकर बाईस रूपए में उनका खाता खुल सका था। इस खाते में सालाना ब्याज जुड़कर 2002 तक यह रकम 35 रूपए तक पहुंच गई थी। इसके उपरांत न्यूनतम बैलेंस 500 रूपए न रख पाने से बैंक उनके खाते से निर्धारित राशि का आहरण लगातार करता रहा है, जिससे अब उनके खाते की रकम घटकर एक रूपये नौ पैसे ही बची है।

छत्तीसगढ़ से घबराए आईएएस !

छत्तीसगढ़ सूबे से अफसरशाही यानि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का क्यों मोह भंग होता जा रहा है? कॉडर बेस्ड अधिकारियों की तैनाती में अहम भूमिका निभाने वाले डीओपीटी मंत्रालय के अनुसार वह विभिन्न राज्यों में अधिकारियों की तैनाती में कॉडर रिव्यू में जुटा है। छत्तीसगढ़ में नक्सलवादी समस्या को देखकर लगता था कि केंद्र सरकार राज्य में आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की अधिक तैनाती में अपनी सहमति दे देगी लेकिन वास्तव में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। छत्तीसगढ़ ने केंद्र सरकार से 111 आईएएस अधिकारी मांगे थे, पर उसे मिले महज 103 ही। वर्तमान में इनकी संख्या यहां 81 ही है। छत्तीसगढ़ के अस्तित्व में आने के उपरांत वहां भेजे गए आईएएस अधिकारियों में से मोहम्मद सुलेमान, आईबी चहल, विनय शुक्ला, एसके राजू ने अपना कॉडर बदलवा लिया था। इस कॉडर की एम गीता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है कि जब इनका कॉडर बदला जा सकता है तो फिर इसी आधार पर उनका क्यों नहीं? यूं तो देशभर के आईएएस अधिकारियों में कॉडर बदलवाने की कोशिशों से केंद्र परेशान है लेकिन छत्तीसगढ़ का मामला नक्सलवाद से जोड़ा जा रहा है। कहा जा रहा है कि यहां की नक्सल समस्या और भौगोलिक परिस्थितियों से घबराकर आईएएस अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ न जाने के जुगाड़ फिट कर रखे हैं और बहुत से तो अपना कॉडर ही बदलवा रहे हैं। अब यदि आईएएस ही भागने लगेंगे तो दूसरे सेवाओं के अधिकारियों और कर्मचारियों के मनोबल पर क्या असर होगा?

राजनीतिज्ञ भी हुईं जया
फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन की अर्धांग्नी जया बच्चन ने कभी गुड्डी का किरदार बहुत ही करीने से निभाया था, पर राजनैतिक बिसात पर वे गुड्डी नहीं रहीं बल्कि शतरंज की माहिर खिलाड़ी सी हो चुकी हैं। अमिताभ बच्चन को तो राजनीति रास नहीं आई पर उनकी पत्नि जया बच्चन ने गजब की राजनीति सीख ली है। अमर प्रेम से दबे-झुके बच्चन परिवार बड़ा सोच-विचार कर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की राज्य सभा की पेशकश को ठुकराया है। वैसे भी दो नाव पर सवार होने के जोखिम हैं। अमिताभ बच्चन की भाजपा के स्टार राजनेता नरेंद्र मोदी से बढ़ती नजदीकियों से कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में जया बच्चन कहीं 'कमल' पर न बैठी दिखाई दें।

एमपी में प्रोटोकॉल पर बवाल
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने समस्त जिला कलेक्टर्स को एक परिपत्र भेजकर निर्देश दिए थे कि जो भी मंत्री पहले से सूचना देकर आएं उनके लिए प्रोटोकाल का पालन किया जाए। उनकी खातिर तवज्जो में कोई कोर कसर नहीं रखी जाए। बहुतों ने इसका अर्थ यह भी लगाया कि अगर कोई बिना सूचना के आता है तो उसकी परवाह न की जाए। मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले चार में से तीन मंत्री कांति लाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरूण यादव ने शिवराज सिंह चौहान के इस आदेश पर अपनी गहरी नाराजगी जताई, पर कमल नाथ ने अपनी चिरपरिचित शांति का ही परिचय दिया। तीनों मंत्रियों ने पलटवार करते हुए कहा कि सूचना देने पर भी समीक्षा बैठकों में राज्य के आला अधिकारी नदारत ही रहते हैं। कांतिलाल भूरिया ने तो प्रधानमंत्री से यहां तक सिफारिश कर डाली कि अगर शिवराज सिंह चौहान इससे बाज न आएं तो केंद्रीय मदद को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। इस मसले पर दूसरे लोग कमल नाथ की शांति के अर्थ अपने अपने ही ढंग से खोज रहे हैं।

सुरक्षित भारत
हिंदुस्तान में विदेशी सैलानियों की आवाजाही काफी हद तक कम हो चुकी है। विशेषकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को हिन्दुस्तान न जाने या सोच-समझकर जाने का मशविरा दिया हुआ है। कारण सभी मालूम है यानि हिंदुस्तान आतंकवादी गतिविधियों से महफूज नहीं है। केंद्र सरकार हरकत में आ गई है और केंद्रीय पर्यटन सचिव सुजीत बनर्जी ने टोरंटो में एक कार्यक्रम में जोर देकर कहा भी कि भारत पूरे एशिया में विदेशी पर्यटकों के लिए न केवल सुरक्षित स्थान है वरन् यह ध्यान, योग, चिकित्सा के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है। भारत सरकार अगर वास्तव में विदेशी सैलानियों को आकर्षित करना चाह रही है तो उसे चाहिए कि वह आंतरिक और बाहरी सुरक्षा की दीवारें अभेद्य करे, ताकि 'अतिथि देवो भव' को साकार करने के लिए कम से कम उसे पर्यटक तो मिल सकें और वे निर्बाध रूप से भारत के प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कर सकें।

न्यायाधीशों की जवाबदेही !
न्यायाधीशों की जवाबदेही से संबंधित विधेयक को संसद में अगले सत्र में पेश किया जा सकता है। उक्ताशय की बात केंद्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोईली ने वैकल्पिक व्यापारिक मध्यस्थता एवं समाधान के एक अंतर्राट्रीय केंद्र के शिलान्यास के मौके पर कही। मोईली ने कहा कि न्यायाधीश जवाबदेही बिल पर मंत्रियों के समूह अर्थात जीएमओ ने अपनी सहमति प्रदान कर दी है। न्यायाधीशों की उम्र बढ़ाने पर भी केंद्र सरकार विचार कर रही है, पर यह विचार सिर्फ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर ही होगा। वर्तमान में न्यायाधीशों की सेवानिवृति की आयु 62 वर्ष है। न्यायालयों में मुकदमों के बोझ को देखकर केंद्र सरकार ने विचार किया है कि न्यायाधीशों की सेवानिवृति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी जाए।

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