स्वतंत्र आवाज़
word map

गणि विजय आदिवासी जीवन में रोशनी

अनुकरणीय कार्यों ने कर्मक्षेत्र में लोकप्रिय बनाया

आज 19 मई को गणि राजेंद्र विजय का जन्मदिन

Sunday 19 May 2019 02:42:25 PM

ललित गर्ग

ललित गर्ग

gani rajendra vijay in adivasi anchal

भारत भूमि विश्वभर में संबुद्ध महापुरुषों, साधु-संतों एवं संत मनीषियों की रत्नगर्भा मानी जाती है, जहां ऋषि-मुनियों ने अपनी गहन साधना और त्याग के बल पर सिद्धि एवं समाधि के स्वाद को चखा और उस अमृत रस को समस्त संसार में बांटा। कहीं बुद्ध बोधिवृक्ष तले बैठकर करुणा का उजियारा बांट रहे थे तो कहीं भगवान महावीर भी अहिंसा का पाठ पढ़ा रहे थे। यही नहीं नानकदेव जैसे संबुद्ध महापुरुष मुक्ति की मंजिल तक ले जाने वाले मील के पत्थर बने। भारत वह देश है, जहां वेद का आदिघोष हुआ, युद्ध के मैदान में भी गीता गाई गई और कपिल, कणाद, गौतम आदि ऋषि-मुनियों ने मानवजाति को अंधकार से प्रकाशपथ पर अग्रसर किया। यह देश योग दर्शन के महान आचार्य पतंजलि का देश है, जिन्होंने पतंजलि योगसूत्र रचा। हमने हर संस्कृति से सीखा, हर संस्कृति को सिखाया। प्राचीन से आधुनिक समय तक अनेक संत-मनीषियों, धर्मगुरुओं और ऋषियों ने अपने मूल्यवान अवदानों से भारत की आध्यात्मिक परम्परा को समृद्ध किया है।
हमारे महापुरुषों ने धर्मक्षेत्र में अनेक क्रांतिकारी स्वर बुलंद किए हैं, ऐसे ही विलक्षण एवं अलौकिक संतों में एक नाम है गणि राजेंद्र विजय। वे आदिवासी जनजाति के होकर भी जैन संत हैं और जैन संत होकर भी आदिवासी जनजीवन के मसीहा संतपुरुष हैं। इनदिनों वे गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में उनके अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। गणि राजेंद्र विजय 19 मई 2019 को अपने जीवन के 45वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। गणि राजेंद्र विजय एक ऐसा व्यक्तित्व है, जो आध्यात्मिक विकास और नैतिक उत्थान के प्रयत्न में तपकर और भी अधिक निखरा है। वे आदिवासी जनजीवन के उत्थान और उन्नयन के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं और विशेषत: आदिवासी जनजीवन में शिक्षा योजनाओं को लेकर जागरुक हैं, इसके लिए सर्वसुविधायुक्त एकलव्य आवासीय मॉडल विद्यालय का निर्माण उनके प्रयत्नों में से एक है, वहीं कन्या शिक्षा के लिए वे ब्राह्मी सुंदरी कन्या छात्रावास का संचालन कर रहे हैं।
भारत के आदिवासी अंचल में जहां जीवदया की दृष्टि से गौशालाएं संचालित हैं तो चिकित्सा सेवा केलिए चलायमान चिकित्सालय भी जनसामान्य को अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहा है। आदिवासी किसानों को समृद्ध बनाने एवं उनके जीवनस्तर को उन्नत बनाने के लिए उन्होंने आदिवासी क्षेत्र में सुखी परिवार ग्रामोद्योग स्थापित किया है। वे आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें संगठित कर रहे हैं, उनका आत्मसम्मान जगा रहे हैं। गणि राजेंद्र विजय के प्रोजेक्ट एवं सेवा कार्यों की सूची में मानवीय संवेदना की सौंधी-सौंधी महक फूट रही है। लोग गावों से शहरों की ओर पलायन रहे हैं, लेकिन गणि राजेंद्र विजय की प्रेरणा से कुछ जीवट वाले व्यक्तित्व शहरों से गावों की ओर जा रहे हैं, अपने मूल को पकड़ रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि भारत की आत्मा गावों में बसती है। शहरीकरण के इस युग में मनुष्य भूल गया है कि वह मूलत: आया कहां से है? जिस दिन उसे पता चलता है कि वह कहां से आया है तो वह लक्ष्मी मित्तल बनकर भी लंदन से आकर, करोड़ों की गाड़ी में बैठकर अपने गांव की कच्ची गलियों में शांति महसूस करता है। स्कूल, हॉस्पिटल और रोज़गार के केंद्र स्थापितकर सुख का अनुभव करता है।
गणि राजेंद्र विजय जब गरीब आदिवासी बस्तियों तक पहुंचते हैं तब उन्हें पता चलता है कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने के मायने क्या हैं? कहीं भूख मिटाने के लिए दो जून की रोटी जुटाना सपना है तो कहीं सर्दी, गर्मी और बरसात में सिर छुपाने के लिए झोपड़ी की जगह केवल नीले आकाश का घर उनका अपना है। कहीं दो औरतों के बीच बंटी हुई एक ही साड़ी से बारी-बारी तन ढककर औरत अपनी लाज बचाती है तो कहीं बीमारी की हालत में इलाज न होने पर जिंदगी मौत की ओर सरकती जाती है। कहीं जवान विधवा के पास दो बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी है पर कमाई का साधन न होने से जिल्लत की जिंदगी जीने को वह मजबूर होती है, कहीं सिर पर मर्द का साया होते हुए भी शराब और दुर्व्यसनों के शिकारी पति से बेवजह पीटी जाती है तो कहीं संतान की अभिलाषा में यातना और अपमान सहती है, इसलिए परिवार के भरण-पोषण के लिए मजबूरन सरकार के कानून को नज़रअंदाज करते हुए बाल श्रमिकों की संख्या चोरी छिपे बढ़ती ही जा रही है।
आदिवासियों के यहां कहीं कंठों में प्यास है पर पीने के लिए पानी नहीं, कहीं उपजाऊ खेत है पर बोने के लिए बीज नहीं, कहीं बच्चों में शिक्षा पाने की ललक है पर मां-बाप के पास फीस के पैसे नहीं हैं, कहीं प्रतिभा है पर उसके पनपने के लिए प्लेटफॉर्म नहीं। कैसी विडंबना है कि ऐसे आदिवासी गावों में न सरकारी सहायता पहुंच पाती है न मानवीय संवेदना। अक्सर गावों में बच्चे दुर्घटनाओं के शिकार होते ही रहते हैं पर उनका जीना और मरना राम भरोसे रहता है। पुकार किससे करें? माना कि हम किसी के भाग्य में आमूलचूल परिवर्तन नहीं ला सकते हैं, लेकिन यह संभव नहीं पर हमारी भावनाओं में सेवा व सहयोग की नमी हो और करुणा का रस हो तो निश्चित ही कुछ परिवर्तन घटित हो सकता है। गणि राजेंद्र विजय अपनी पदयात्राओं में आदिवासी लोगों के बीच शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार-नवनिर्माण, नशा मुक्ति उन्मूलन की अलख जगा रहे हैं। इन यात्राओं का उद्देश्य शिक्षा एवं पढ़ने की रूचि जागृत करने के साथ-साथ आदिवासी जनजीवन के मन में अहिंसा, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था जगाना है। त्याग, साधना, सादगी, प्रबुद्धता एवं करुणा से ओतप्रोत आदिवासी जाति की अस्मिता की सुरक्षा के लिए तथा मानवीय मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने के लिए वे सतत प्रयासरत हैं।
मानो कि गणि राजेंद्र विजय दांडी पकडे़ गुजरात के उभरते हुए 'गांधी' हैं। इसी आदिवासी माटी में 19 मई 1974 को एक आदिवासी परिवार में जन्मे गणि राजेंद्र विजय मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में जैन मुनि बन गए। इनके प्रयासों के सुपरिणाम देखना हो तो कवांट, बलद, रंगपुर, बोडेली आदि-आदि आदिवासी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। गणि राजेंद्र विजय गृहस्थ का मानना है कि व्यक्ति-व्यक्ति से जुड़कर ही स्वस्थ समाज एवं राष्ट्र की कल्पना आकार ले सकती है, क्योंकि स्वस्थ व्यक्तियों के निर्माण की प्रयोगशाला है परिवार। वे परिवार को सुदृढ़ बनाने के लिए ही सुखी परिवार अभियान लेकर सक्रिय हैं। भारत को आज सांस्कृतिक क्रांति का इंतजार है, यह कार्य सरकार तंत्र पर नहीं छोड़ा जा सकता है, सही शिक्षा और सही संस्कारों के निर्माण से ही परिवार, समाज और राष्ट्र को वास्तविक अर्थों में स्वतंत्र बनाया जा सकता है। इसी दृष्टि से हम सबको गणि राजेन्द्र विजय के मिशन से जुड़ना चाहिए एवं एक स्वस्थ समाज निर्माण का वाहक बनना चाहिए, इसलिए आओ हम सब एक उन्नत एवं आदर्श आदिवासी समाज की नींव रखें जो सबके लिये प्रेरक बने।
मेरी दृष्टि में गणि राजेंद्र विजय के उपक्रम एवं प्रयास आदिवासी अंचल में एक रोशनी का अवतरण हैं, यह ऐसी रोशनी है जो हिंसा, आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद जैसी समस्याओं का समाधान बन रही है। अक्सर हम राजनीति के माध्यम से इन समस्याओं का समाधन खोजते हैं, जबकि समाधान की अपेक्षा संकट गहराता हुआ प्रतीत होता है, क्योंकि राजनीतिक स्वार्थों के कारण इन उपेक्षित एवं अभावग्रस्त लोगों का शोषण ही होते हुए देखा गया है। गणि राजेंद्र विजय के नेतृत्व में आदिवासी समाज कृतसंकल्प हैं, रोशनी के साथ चलते हुए इस आदिवासी अंचल के जीवन को उन्नत बनाने एवं संपूर्ण मानवता को अभिप्रेरित करने के लिए। आदिवासी समुदाय के बीच अहिंसक समाज निर्माण की आधारभूमि गणि राजेंद्र विजय ने अपने आध्यात्मिक तेज से तैयार की है। अनेक बार उन्होंने खूनी संघर्ष को शांत किया है, बल्कि वे अलग-अलग विरोधी गुटों को एक मंच पर ले आए, जबकि गुट व्यापक हिंसा एवं जनहानि के लिये तरह-तरह के हथियार लिए एक दूसरे को मारने के लिये उतावले रहते थे। हिंसा की व्यापक संभावनाओं से घिरे इस अंचल को अहिंसक बनाना एक क्रांति एवं चमत्कार ही कहा जाएगा। सचमुच आदिवासी लोगों को प्यार, करूणा, स्नेह एवं संबल की जरूरत है, जो गणि राजेंद्र विजय जैसे संत एवं सुखी परिवार अभियान जैसे मानव कल्याणकारी उपक्रम से ही संभव है। सचमुच एक रोशनी का अवतरण हो रहा है, जो अन्य हिंसाग्रस्त क्षेत्रों के लिये भी अनुकरणीय है।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]