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Monday 20 May 2019 01:47:54 PM
गुंटूर (आंध्र प्रदेश)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आत्मनिर्भरता अर्जित करने के लिए दलहन का रकबा और उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया है और कृषि विश्वविद्यालयों से उनकी उपज में सुधार लाने पर अनुसंधानों में तेजी लाने का आग्रह किया है। उपराष्ट्रपति ने आंध्र प्रदेश के गुंटूर में मुलार्प एवं शुष्क फली कार्यशाला पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान समूह की वार्षिक समूह बैठक के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि आज उच्च उपज वाली, रोग एवं कीटनाशक अनुकूलन बीज किस्मों के उपयोग की जरूरत है। उन्होंने कहा कि फसल उत्पादन तकनीकों में भी सुधार लाने एवं दलहन उत्पादन के तहत अतिरिक्त अजोत भूमि को लाने की जरूरत है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि दलहन लोगों के लिए पादप आधारित प्रोटीनों, विटामिनों एवं खनिज अव्यवों का एक सस्ता स्रोत है, इससे पशुओं के लिए भी हरित, पोषक चारा उपलब्ध होता है और जैवकीय नाईट्रोजन निर्धारण के जरिए वे मृदा को भी समृद्ध बनाते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ फलियों में औषधीय एवं उपचारात्मक गुण भी पाए जाते हैं, इस प्रकार उन्हें भारतीय फसल पशुपालन के अनूठे रत्न की संज्ञा दी जाती है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि फलियां भारतीय फसलीकरण प्रणाली विशेष रूपसे शुष्क भूमि खेती में एक अनिवार्य तत्व हैं, भारत विश्व में इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जहां क्षेत्र के लिहाज से इसकी हिस्सेदारी 34 प्रतिशत और उत्पादन के मामले में 24 प्रतिशत है, इसके बाद म्यांमार, कनाड़ा, चीन, नाइजीरिया, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया का स्थान आता है। वियतनाम की अपनी हाल की यात्रा का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने भारत और वियतनाम के बीच फसल उत्पादन विशेषकों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वियतनाम प्रति हेक्टेयर पांच टन चावल और प्रति हेक्टेयर 1.5 टन सोयाबीन का उत्पादन करता है, जबकि भारत केवल प्रत्येक हेक्टेयर तीन टन चावल और मात्र एक टन सोयाबीन का उत्पादन करता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हालांकि दलहन की औसत उत्पादकता बढ़कर 841 किलो/ हेक्टेयर तक पहुंच गई है, फिर भी वैश्विक औसत की तुलना में यह काफी कम है और कुछ राज्यों में अन्य राज्यों की अपेक्षा उपज काफी अधिक है। उन्होंने कहा कि उत्पादकता में सुधार लाने के लिए दुनियाभर से और देश के भीतर से भी सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों से सीखने की जरूरत है।
वेंकैया नायडू ने कहा कि विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों एवं सरकार को अनिवार्य रूपसे नई उच्च उपज किस्मों के उत्पादन के लिए दीर्घकालिक कार्य नीतियों का साथ मिलकर अनुसरण करना चाहिए, जो रोगों और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हों। उन्होंने कहा कि दलहन के लिए मूल्य संवर्धन तथा उचित विपणन सुविधाओं को भी सृजित करने की आवश्यकता है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि आर्द्रता और तापमान क्षेत्रों में बदलाव के कारण शुष्क भूमि क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन सीमांत लोगों को प्रतिकूल रूपसे प्रभावित कर रहा है। उन्होंने कृषि अनुसंधान क्षेत्र में एक नए बदलाव की अपील की, जो जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने तथा खाद्य एवं पोषण सुरक्षा अर्जित करने के लिए पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का पूर्ण उपयोग करे। वेंकैया नायडू ने कहा कि जल की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है और जनसंख्या में वृद्धि तथा जलवायु परिर्वतन के कारण यह और विकराल होती जा रही है। उन्होंने ऐसी फसलें विकसित करने की अपील की जिनमें कम पानी की आवश्यकता होती है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि कृषि फसलों की उत्पादकता में सुधार लाने के लिए नए ज्ञान, वैकल्पिक नीतियों और संस्थागत परिवर्तनों की तात्कालिक आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालयों को दलहनों की उपज में सुधार लाने पर अधिक फोकस करने की आवश्यकता है, जबकि केवीके को वैज्ञानिकों, सरकारों एवं किसानों के बीच एक सत्य के रूपमें कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवीके को किसानों के मित्र और परामर्शदाता के रूपमें कार्य करना चाहिए। एक स्वस्थ आहार में दलहन की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने लोगों और विशेष रूपसे युवाओं को गैर संक्रमणीय रोगों को देखते हुए जंक फूड के खिलाफ सावधान किया। तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त रूपसे आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने किया था। कार्यक्रम में आईसीएआर के डीडीजी डॉ एके सिंह, एएनजीआरएयू के कुलपति डॉ वी दामोदर नायडू, आईसीएआर-भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान कानपुर के निदेशक डॉ एनपी सिंह, एएनजीआरएयू के अनुसंधान के निदेशक डॉ वीएन नायडू एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।