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Friday 31 May 2019 10:31:21 PM
लखनऊ। मीडिया की विश्वसनीयता मीडिया ही खो रहा है, यदि यह कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। गुटों और फिरकापरस्ती में बंटे पत्रकारों ने अपने-अपने बैनरतले कल हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया और अपने कर्तव्यों एवं नैतिकता की दुहाई दी। हिंदी पत्रकारिता दिवस पर लखनऊ में कई मेगा शो हुए, जिनमें पत्रकारों ने कहीं मीडिया की विश्वसनीयता पर और कहीं पत्रकारों की समस्याओं पर तो कहीं पत्रकारों के लिए सुविधाओं और मीडिया संस्थानों में उनके अधिकारों पर पाठ किया। पत्रकार नेताओं ने मीडिया की विश्वसनीयता को लेकर अनेक सवाल खड़े किए, लेकिन वे पत्रकारिता पर खड़े इस संकट का समाधान प्रस्तुत नहीं कर सके। वे कुछ मीडिया संस्थानों की कार्यप्रणाली पर खामोश रहे, जिनके कारण मीडिया की साख संकट में है। हिंदी पत्रकारिता दिवस की रस्म अदायगी में पत्रकारिता के बाहर के उपदेशकों ने भी भाग लिया और जैसे किसी कठघरे में सामने बैठे मीडिया को उपदेश दिए।
यूपी प्रेस क्लब लखनऊ एवं लखनऊ में और भी जगहों पर हिंदी पत्रकारिता दिवस एक शो और एक रस्म से ऊपर नहीं जा पाया। ऐसा हर साल होता है, जिसमें सरकार से और पत्रकारिता समाज से अतिथियों को बुलाकर और विषय को चुनकर खासतौर से हिंदी पत्रकारिता को भलाबुरा कहा जाता है। प्रेस क्लब लखनऊ में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर उत्तर प्रदेश के जन सूचना आयुक्त सुभाष सिंह कह रहे थे कि राजनीति में सेक्युलरिज्म और मीडिया में निष्पक्षता नियाहत ढोंग है और इस हक़ीक़त को हम जितनी जल्दी समझ लें उतना ही अच्छा रहेगा। उपदेशक कह रहे थे कि रेंगने की प्रवृत्ति ही हमारी सबसे बड़ी आत्म प्रवंचना है, हमें ख़ुद तय करना होगा कि हम सत्तापक्ष के हिसाब से कितना झुकने को तैयार हैं, हमारी अतिवादिता किसी मायने में ठीक नहीं है। हिंदी पत्रकारिता दिवस कार्यक्रम के अध्यक्ष और आईएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष के विक्रम राव ने बताया कि हिंदी वाले क्यों पिछड़े हैं? उन्होंने सवाल किया कि आज हिंदी अखबारों के कितने पत्रकार हैं, जो अपने आत्मसम्मान को जिंदा रखते हुए निष्पक्ष पत्रकारिता को जिंदा रखे हुए हैं?
के विक्रम राव एक जानेमाने पत्रकार हैं, लिखने में उनका कोई मुकाबला नहीं है, वे कह रहे हैं कि पत्रकारिता में क्षद्मवेषी पत्रकारों की जांच होनी चाहिए। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि जिन्हें हिंदी वर्तनी भी नहीं आती है वो कैसे हिंदी पत्रकारिता कर रहे है? जिन्हें पत्रिकारिता के मानदंडों का ज्ञान नहीं है वो कैसे पत्रकार की मान्यता प्राप्त किए हुए हैं, इसकी जांच होनी चाहिए, नए पत्रकारों की ट्रेनिंग होनी चाहिए, उन्हें मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान से कहा कि थ्योरी और प्रैक्टिकल का समन्वय होना चाहिए। के विक्रम राव ने पत्रकारों को जो पेशेवर शिक्षा दी उसका स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन यह सवाल उनका भी पीछा कर रहा है कि पत्रकारिता में घुसपैठियों को रास्ते किन्होंने दिखाए। उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख पत्रकार संगठन के एक सदस्य का परिचय पत्र देखकर हैरानी हुई कि अकेले लखनऊ में चार हजार से ऊपर पत्रकार हैं, क्योंकि लखनऊ में उसके परिचय पत्र की सदस्य संख्या चार हजार तीन सौ थी।
लखनऊ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के तत्वावधान में यूपी प्रेस क्लब में हिंदी पत्रकारिता दिवस पर यह संगोष्ठी हुई थी। पत्रकारिता दिवस पर कुछ पत्रकारों को पत्रकारिता क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान पर सम्मानित भी किया गया। संबोधन के लिए अपनी बारी पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह ने जानकारी दी कि लखनऊ के पत्रकारों को जो आवासीय सुविधा मिली है, उसकी शुरुआत हसीब सिद्दीकी अध्यक्ष यूपीडब्लूजेयू के समय शुरु हुई थी। कल्याण सिंह और मायावती के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में पत्रकारों के साथ हुए अभद्र व्यवहार का मुद्दा भी उठाया गया। चिंता जताई गई कि उस समय पत्रकारों ने जो एकजुटता दिखाई थी, वह आज नहीं दिखती है, जबकि पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए नैतिक साहस रखना चाहिए। सुरेश बहादुर सिंह कह रहे थे कि विचारधारा और पत्रकारीय गुण में अंतर बनाए रखना पड़ेगा, दूसरों को ठीक करने से बेहतर है अपने आपको ठीक रखना और अतीत की बुनियाद पर हमें अपने भविष्य को बेहतर करना चाहिए।
पिछले वर्ष ही एक निजी मामले में एक पड़ोसी दरोगा से भिड़कर उसे पत्रकारिता पर हमले का मुद्दा बनाकर और बाद में दरोगा से चुपचाप समझौता भी कर लेने वाले जनसंदेश टाइम्स के संपादक सुभाष राय क्या कह रहे थे जानिए! उनका कहना था कि संकट यह है कि आज कुछ भी लिख दो तो कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन यदि किसी विचारधारा से जुड़े हैं तो सही आंकलन में दिक्कत होगी। सुभाष राय ने सवाल था कि झूंठ कैसे पकड़ा जाए? उन्होंने शिक्षा दी कि ऐसी स्थिति में जरूरी है कि पत्रकार भौतिक सत्यापन कर सच्चाई सामने लाए। नवभारत टाइम्स के पत्रकार राजकुमार सिंह ने कहा कि विश्वसनीयता का संकट है और कोई भी निरपेक्ष नहीं हो सकता, लोकसभा चुनाव में भी मीडिया पूरी तरह से जनता के मूड को भांपने में सफल नहीं रही, उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में विश्वसनीयता का संकट हिंदीभाषी पत्रकारों में ज्यादा है, क्योंकि लोगों को ठीक से हिंदी भाषा की जानकारी या उतना ज्ञान नहीं होता, इसलिए जरूरी है कि हम भाषा पर मजबूत पकड़ रखें। पत्रकार वक्ताओं ने खुद सवाल उछाले और खुद ही उन सवालों से घिरे भी। सबसे बड़ी बात यह है कि पत्रकारिता की नैतिकता पर बोलने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी, जबकि पत्रकारिता की नैतिकता सभी के दबाव में देखी गई।
यूपी प्रेस क्लब के अध्यक्ष रविंद्र सिंह ने कहा कि पत्रकारिता का क्षरण हो रहा है, क्योंकि आज से चालीस साल पहले जब वे पत्रकारिता में आए थे तो उनके संस्थान में कहा जाता था कि आप किसी भी विचारधारा के हैं, मगर अपनी विचारधारा घरपर रखकर आएं, तभी निष्पक्ष और विश्वसनीय पत्रिकारिता कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज खोजी पत्रकारिता का ह्रास हुआ है, क्योंकि संस्थान के हितों के चलते खबरों पर अंकुश लगा दिया जाता है। रविंद्र सिंह के तर्कों को किसी ने माना तो किसी ने सिरे से खारिज किया और कहा कि यह उनके भी आत्ममंथन का मामला बनता है। यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी का दावा था कि वे पत्रकारों के हित के लिए हमेशा लड़ते रहे हैं और हमेशा लड़ते रहेंगे। उन्होंने तो बाबू विष्णुराव पराडकर जैसी पत्रकारिता की दुहाई दी। अनेक पत्रकारों ने इस मौके पर पत्रकारों के हितों के लिए अपनी लड़ाईयों का जिक्र किया, लेकिन बात वहीं की वहीं रही कि पत्रकारों के लिए उन लड़ाईयों का स्तर क्या था और उनका परिणाम क्या रहा? पत्रकार आज भी पिट रहे हैं, संस्थानों से निकाले जा रहे हैं, उनपर विज्ञापन लाने का लक्ष्य निर्धारित है, उनसे कारपोरेट में सरकार में दलाली और बेगारी कराई जा रही है, पत्रकार ही पत्रकार के पीछे पड़ा है और आज गुटों में पत्रकार और पत्रकार की मान्यता, सरकारी मकानों एवं लाइजनिंग की पत्रकारिता के अलावा और क्या है?
हिंदी पत्रकारिता दिवस कार्यक्रम में वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन लखनऊ मंडल के अध्यक्ष शिवशरण सिंह, ज्ञानेंद्र शुक्ला, मुकुल मिश्रा, राघवेंद्र सिंह, के विश्वदेव राव, शिवविजय सिंह, अमिताभ नीलम, मसूद हसन, हिमांशु सिंह चौहान, शशिनाथ दुबे, प्रमोद श्रीवास्तव, विनीता रानी विन्नी, अजय कुमार सिंह, ध्रुव पांडेय, अनिल सिंह, अजीत खरे, श्रीधर अग्निहोत्री, प्रद्युम्न तिवारी, आनंद श्रीवास्तव, आशीष सिंह, अभिषेक रंजन, आशीष श्रीवास्तव, शैलेश प्रताप सिंह, हर्षित त्रिपाठी, योगेश श्रीवास्तव, अजय कुमार श्रीवास्तव, अरशद आसिफ़, विवेक श्रीवास्तव, संतोष सिंह, सचिन श्रीवास्तव, सुरेश यादव, रजत मिश्र, अमरेंद्र सिंह, अविनाश शुक्ल, डीपी शुक्ल, देवराज सिंह, दुर्गेश दीक्षित, दिनेश त्रिपाठी, नैयर जैदी, शिकोह आज़ाद, सुजीत दिवेदी, सुशील सहाय, ऋषभ गुप्ता, अर्चना गुप्ता, प्रिया भट्टाचार्य, संगीता सिंह, नेहा सिंह, सतीश पांडेय, गंगेश मिश्र, विजय त्रिपाठी, मनीषा सिंह, मनीष श्रीवास्तव, राजेश जायसवाल, मोहम्मद काजिम जहीर, अनूप श्रीवास्तव, शिवसागर सिंह, जितेंद्र त्रिपाठी, संदीप मिश्र, अंटोनी सिंह, मनोज मिश्रा, अविनाश निगम, विजय त्रिपाठी, अखंड शाही उपस्थित थे। लखनऊ में और भी पत्रकार संगठनों ने हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जहां निराशाजनक स्थिति रही और कुछ के आगे भी पत्रकारिता दिवस कार्यक्रम प्रस्तावित हैं, उनकी स्थिति भी ऐसे ही सवालों से घिरी है।