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क्षय रोग से बचें और दूसरों को भी बचाएं

विश्व क्षय रोग दिवस पर टीबी मुक्त समाज कार्यक्रम

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Monday 25 March 2013 09:41:48 AM

world tuberculosis day

लखनऊ। विश्व भर में 24 मार्च का दिन विश्व क्षय रोग दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस परिप्रेक्ष्य की अक्षय परियोजना के अंतर्गत होटल दीप अवध में ‘टीबी मुक्त’ समाज कार्यक्रम हुआ। इसमें आह्वान किया गया कि सभी क्षय रोग और उसके बैक्टीरिया से बचें और सुरक्षित उपाय अपना कर दूसरों को भी टीबी से बचाएं। उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों में पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष विश्व भर में लगभग 15 लाख लोगों की क्षय (टीबी) से मृत्यु हो जाती है, जो मुख्यतः विकासशील देशों में रहते हैं।
कार्यक्रम में पुलिस अधीक्षक रूल्स एंड मैनुअल अमिताभ ठाकुर भाग लिया और क्षय रोग के प्रति जागरूकता पैदा की। उन्होंने कहा कि इस रोग से मुक्ति का यह एक विशेष प्रयास है, जिससे समाज को लाभ मिल रहा है, उन्होंने इस प्रकार के कार्यक्रमों को पुलिस विभाग से भी साझा करने की सलाह दी। कार्यक्रम में उपस्थित उनकी पत्नी और सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने कहा कि अक्षय परियोजना का महिलाओं को भी लाभ मिल रहा है। राज्य सह क्षय रोग अधिकारी डॉ बाजपेयी ने कहा कि क्षय रोग मिटाने का यह एक सार्थक प्रयास है, जिसमें सरकार एवं समाजसेवी संगठन मिलकर गंभीर बीमारी से लड़ते हैं, इसमें राज्य सरकार का हर सहयोग है। उन्होंने बताया कि टीबी किसी को भी हो सकती है, क्योंकि एक टीबी मरीज एक साल में 10 से 15 व्यक्तियों को टीबी से ग्रसित करता है।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ सुशील चतुर्वेदी ने लखनऊ की स्थिति पर कहा कि वर्तमान समय में लखनऊ का कार्य सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है। भारत में प्रत्येक 3 मिनट में दो लोगों की मृत्यु क्षय रोग से हो जाती हैं, इस मृत्यु को तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक समाज के विभिन्न सामाजिक संगठनों को टीबी निरोधक कार्यक्रमों से न जोड़ा जाए। टीबी एक संक्रामक रोग है, जो कि माइक्रोबैक्टीरियन ट्यूबरक्यूलोसिस नामक बैक्टीरिया से होता है, चूंकि यह बैक्टीरिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हवा के माध्यम से चला जाता है, इसलिए संक्रमण की सुगमता एवं भयावता हमेशा बनी रहती है।
टीबी का बैक्टीरिया मुख्यतः फेफड़े को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभारित कर सकता है। फेफड़े की टीबी से ग्रसित व्यक्ति ही एक दूसरे व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है, इसलिए इनको सही जानकारी और इलाज उचित समय पर दिया जाना चाहिए। टीबी का इलाज संभव है, अगर मरीज को लगातार 6 से 8 महीने का डाट्स से इलाज किया जाए। ऐसे लोग जिन्हें दो या दो हफ्ते से ज्यादा खाँसी आ रही है, तो उसे अपने बलगम (खखार) की जांच अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र (डीएमसी) में करानी चाहिए। अगर जांच में टीबी के कीटाणु मिलते हैं तो उस व्यक्ति का इलाज तुरंत शुरू किया जाना चाहिए। टीबी की जांच और इलाज सरकारी दवाखाने (डीएमसी) में मुफ्त में किया जाता है।
पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में सन् 1998 में शुरू हुआ और लखनऊ में इसे एक ‘पायलट डिस्ट्रिक्ट’ के रूप में शुरू किया गया। सन् 2005 के अंत तक यह कार्यक्रम प्रदेश के सभी जिलों तक पहुंचाया गया। प्रदेश में डाट्स प्लस सेवा भी 24 मार्च 2011 को शुरू की गई। औसतन 60 हजार से अधिक नए (नोटिफिकेशन) केसेस तक प्रतिवर्ष पहुंच हो पाई है, जो कि देश में सर्वोच्चतम है। डॉ बाजपेयी ने इस बात पर बल दिया कि मरीज का डाट्स के तहत ही इलाज हो जो कि उसके संपूर्ण इलाज का वादा करता है।
गजाधर मलिक ने अक्षय परियोजना के बारे में कहा कि इसे अप्रैल 2010 में ग्लोबल फंड राउंड नाईन के वित्तीय सहयोग से एक सिविल सोसाइटी के रूप में शुरू किया गया। इस परियोजना की अवधि पांच सालों के लिए अनुमन्य है। यह टीबी की जानकारी पहुंचाने का एक प्रयास है, जिससे टीबी मरीजों की देखभाल, बचाव एवं इलाज को मजबूत किया जा सके। इस कार्यक्रम में द यूनियन और इसकी 6 मुख्य सहयोगी संस्थाओं ममता, सीबीसीआई-कार्ड, चाई, बीहाई, ईएचए एवं ममता सामाजिक संस्थान ने विश्व क्षय रोग दिवस को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई है। कार्यक्रम का संचालन सीबीसीआई-कार्ड के जिला समन्वयक अभिषेक पाठक ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से मोहम्मद उवैद, डॉ कविता, दीपक रंजन,जेए शर्मा, डॉ आलोक कुमार सिंह, आरिफ, विभिन्न समाजसेवी संगठनों के प्रतिभागी एवं मरीजों ने भाग लिया।

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