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Wednesday 20 November 2019 03:04:26 PM
नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में पढ़ाई के नाम पर क्या-क्या होता है और वहां पर कितने पढ़ने वाले हैं, कितने देश विरोधी और विघटनकारी हैं, कितने ग़ुंडे हैं, देश के लोगों को यह सच हाल के वर्षों और महीनों में देखने को मिला है और जेएनयू में इस समय के हालात यह हैं कि जो लड़के-लड़कियां वहां पढ़कर अपने उज्जवल भविष्य के सपने देखने-बुनने गए हैं, यहां के विघटनकारी घुसपैंठियों और छंटे-छटाए ग़ुंडों ने उनकी पढ़ाई चौपट कर दी है। जेएनयू में छात्र नेतागिरी के नामपर ग़ुंडागर्दी का बोलबाला है और पढ़ाई का वातावरण खत्म हो चुका है। जेएनयू परिसर और उसके बाहर जो ख़तरनाक आवाज़ें सुनने को मिलती हैं और जो आग़जनी देखी जाती है, उससे तो यहां कहीं नहीं लगता कि यह वही विश्वविद्यालय है, जिसने देश को नामचीन हस्तियां दी हैं, जिसका नाम भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर है। जेएनयू परिसर में प्रवेश करते ही एक दहशत सी होती है कि यहां देश और सरकार विरोधी तख्तियां हाथ में लहराता हुआ बदहवास ग़ुंडा कब क्या न कर जाए। यहां करियरिस्ट छात्र-छात्राओं का बुरा हाल है, उन्हें यहां के ग़ुंडे छात्रावासों से जबरन निकालकर आगजनी करने वाले समूह में धकेलने और देश विरोधी नारे लगाने को मजबूर करते हैं।
जेएनयू को सरकार से छात्रों की पढ़ाई और शोधकार्य, छात्र-छात्राओं के विभिन्न कल्याणकारी कार्यों और योजनाओं के लिए प्रतिवर्ष करीब 360 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिलती है। यहां पढ़ने और रहने का खर्चा बरायनाम और सभी वर्गों के लिए सुविधाजनक है। जेएनयू प्रशासन ने इसबार जेएनयू के फीस फॉर्मेट में कुछ बढ़ोतरी क्या कर दी है, वहां जैसे आग लग गई हो और जेएनयू में अराजकतत्वों को पढ़ाईकार्य चौपट करके वहां अराजकता फैलाने का मौका मिल गया है। फीस फॉर्मेट में बढ़ोतरी का फैसला जेएनयू प्रशासन का है और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और कुछ मीडिया संस्थानों एवं पत्रकारों के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक नारों एवं भाषा से ज़हर उगला जा रहा है। जेएनयू परिसर और आसपास धारा 144 लगी है, पुलिस काफी संयम बरते हुए है, किंतु जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35ए के हटाए जाने से बौखलाए और पगलाए कांग्रेस के नेता गुलामनबी आजाद यहां के ग़ुंडों और अलगाववादियों के समर्थन में उतरे हैं और फीस बढ़ोतरी के विरोध के नामपर मोदी सरकार को टारगेट कर रहे हैं। अगर देखा जाए तो यहां ऐसा लगता है कि जैसे जेएनयू एक पाकिस्तान है, जहां भारत विरोधी इस्लामिक ज़ेहाद और आतंकवाद अपने चरम पर है।
जेएनयू दिल्ली में ऐसा लग ही नहीं रहा है कि वह भारत का विश्वविद्यालय है या भारत का कोई हिस्सा है। यहां के प्रदर्शनकारी और विघटनकारी तत्व बेखौफ हैं, जिन्हें जेएनयू और पढ़ाई से कोई मतलब नहीं है, अगर मतलब है तो देश विरोधी मंसूबों से है, उन्हें मतलब है तो भाजपा और आरएसएस के खिलाफ ज़हरीली उल्टियां करने से है। जेएनयू में लंबे समय से यही अराजकता है। इस पर काबू पाने के लिए जबसे कुछ सख्ती की गई है, टुकड़े-टुकड़े गैंग और मानवाधिकार के लंबरदार छाती पीट-पीटकर रो रहे हैं एवं फीस बढ़ोतरी के विरोध के नामपर देश के दूसरे विश्वविद्यालयों और छात्र संगठनों को अपने साथ जोड़ने की मुहिम पर हैं। सोशल मीडिया पर भारत विरोधी पोस्टे डाली जा रही हैं, खुलेआम अराजकता है। इनके समर्थन में कांग्रेस, लेफ्ट के एवं और भी कई ऐसे छुपेरूस्तम नेता खड़े हैं, जिनका इतिहास छात्र राजनीति के नाम पर केवल विघटन, आगजनी और गुंडागर्दी को समर्थन करने का है। सवाल है कि जेएनयू में ये कैसे स्टूडेंट हैं जो अपने ही 'घर' को अराजकता में धकेले हुए हैं। जेएनयू में पुलिस की बैरीकेटिंग को तोड़कर वे क्या करना चाहते हैं? ये टीचरों और जेएनयू कर्मचारियों को भी बंधक बना रहे हैं। जेएनयू प्रशासन और पुलिस फिरभी काफी संयम बरत रही है।
जेएनयू दिल्ली में फ्री फंड में रहकर पूरी मौज मस्ती मारने वाले ये गुंडे, जिन्हें छात्र कहा जा रहा है, पूरी बदतमीजी पर उतारू हैं। दिल्ली का एक समाचार चैनल तो इन्हें बेचारे बताकर कुछ तथाकथित गरीब छात्रों की गरीबी दिखा रहा है। देश में यह तो सामने आ ही गया है कि जेएनयू में आजकल कैसी पढ़ाई होती है, वहां पर छात्रों के नामपर छात्रावासों पर किनका कब्ज़ा है और कौन-कौन लोग एवं संगठन उनकी पैरोकारी कर रहे हैं। कई लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय है या देशद्रोही गद्दार पैदा करने वाली यूनिवर्सिटी? यहां के छात्र कल्याण के लिए सरकार की उदारता का संज्ञान लिया जा सकता है, छात्र-छात्राओं के कल्याण के नाम पर सरकार कितना खर्च कर रही है, इसका पता चलेगा, जिसे जानकर आप हैरत में पड़ जाएंगे। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी दिल्ली में कुल 1019 एकड़ में फैली हुई है। अभीतक जेएनयू में छात्र की वार्षिक फीस तक़रीबन 300 रुपये है। जेएनयू के हॉस्टल में रूम का किराया मात्र 11 रुपये प्रति माह है। जेएनयू के हॉस्टल की मेस में खाना ज्यादातर फ्री है। जेएनयू में हर 16 छात्र पर 1 प्रोफेसर है। जेएनयू में सन् 1990 में 11 हॉस्टल थे, जिनकी संख्या अब 22 हो चुकी है। जेएनयू में एक छात्र पर साल में तक़रीबन तीन लाख रुपये से भी ज्यादा खर्च होता है। केंद्र सरकार 2014-15 में जेएनयू को 42 करोड़ की सब्सिडी दे चुकी है। इतना कुछ होने के बावजूद जेएनयू में होता है-भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह। अफ़ज़ल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं। लड़कर लेंगे आजादी, कश्मीर मांगे आजादी। पाकिस्तान जिंदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद।