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Saturday 21 March 2020 01:42:16 PM
गौरैया! भारतीयों की एक पारिवारिक और प्रिय चिड़िया। एक समय था जब गौरैया हमारे तत्कालीन पर्यावरण का अभिन्न अंग हुआ करती थी, लेकिन लगभग दो दशक पहले यह सभी जगहों से लगभग गायब हो चुकी है। बहुत कम जगह और घर बचे हैं, जहां इसका आवागमन है। आधुनिक आवासीय जीवनशैली ने इसके प्राकृतिक घर छीन लिए हैं। आम पक्षी जो हमारे घरों के क्षिद्रों में रहते थे, घरेलू श्रृंखला के पेड़ों पर झुंड के झुंड में बैठकर चहचहाया करते थे, हमारे बचे हुए भोजन को चट कर जाया करते थे, आज इनमें गौरैया इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन की सूची में एक लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल हो गई है। अनेक वैज्ञानिक अध्ययनों से यह प्रमाणित हुआ है कि हमारे घर-आंगन में रहने वाली गौरैया हमारी गतिविधियों का अनुसरण करती है और हम जहां पर नहीं रहते हैं, वह वहां नहीं रह सकती है।
बेथलहम की एक गुफा से गौरैया से जुड़े 4,00,000 साल पुराने जीवाश्म मिले हैं, जिनके अध्ययन से पता चलता है कि घरों में रहने वाली गौरैया ने प्रारंभिक मनुष्यों के परिवारों के साथ अपना स्थान साझा किया था। रॉयल सोसायटी ऑफ लंदन की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार इंसान और गौरैया के बीच का बंधन 11,000 साल पुरानी बात है और घरेलू गौरैया का स्टार्च फ्रेंडली होना हमें अपने विकास से जुड़ी कहानी को बताता है। अध्ययन में कहा गया कि कृषि के द्वारा तीन अलग-अलग प्रजातियों-कुत्तों, घरेलू गौरैयों और मनुष्यों में इसके अनुकूलन की शुरुआत हुई। कृषि के विकास की शुरुआत के आसपास शहरी घरेलू गौरैया अन्य जंगली पक्षियों से अलग हो गई। इसके पास जीन की एक जोड़ी है AMY2A, जो इसको जटिल कार्बोहाइड्रेट को पचाने में मदद करता है, यही कारण है कि यह स्टार्च गेहूं और चावल वाले हमारे प्यार को साझा करता है।
संरक्षणवादी हमारे घरों की प्रतिकूल वास्तुकला, हमारी फसलों में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, ध्वनि प्रदूषण जो ध्वनिक पारिस्थितिकी को बाधित करते हैं और वाहनों से निकले धुएं को घरेलू गौरैया की संख्या में गिरावट का बड़ा कारण माना जाता है। इस बारे में बहस है कि क्या डिजिटल क्रांति ने हवाई मार्गों को अवरुद्ध कर दिया है वह अनिर्णायक है, लेकिन आम लोगों का कहना है कि यह महज एक संयोग नहीं है कि 1990 के दशक के उत्तरार्ध में घरेलू गौरैया गायब होना शुरू हुई, जब मोबाइल फोन का भारत में आगमन में हुआ। गौरैया को वापस लाने की दिशा में ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। वैज्ञानिक-संरक्षणकर्ता मोहम्मद दिलावर के अनुसार वैज्ञानिकों में पहले घरेलू गौरैया और अन्य आम प्रजातियों को संरक्षण योग्य नहीं माना जाता था, जिससे आम लोग संरक्षण को एक विषय के रूपमें देखने से बहुत दूर हो गए थे।
नेचर फॉर एवर नामक संगठन द्वारा चलाए गए एक जोरदार अभियान के कारण 20 मार्च 'विश्व गौरैया दिवस' के रूपमें मनाया जाने लगा और 2012 में घरेलू गौरैया को दिल्ली का राजकीय पक्षी घोषित किया गया। मोहम्मद दिलावर कहते हैं कि विश्वस्तर पर एक उच्च प्रोफ़ाइल का आनंद ले रहा है, गौरैया का संरक्षण और लोगों का आंदोलन। हालांकि अभियान के प्रभाव का डेटा उपलब्ध नहीं है जो सरल, उल्लेखनीय और सस्ती चीजों पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसेकि बालकोनी में घोंसलों के लिए बक्सों और पानी एवं अनाज के कटोरे को रखना। यह बहुत हद तक माना जा रहा है कि घरेलू गौरैया धीरे-धीरे वापसी कर रही है। साठ वर्षीय पक्षी प्रहरी जैस्मीन लांबा कहते हैं कि उन पारदर्शी लोगों का शुक्रिया जो उन्हें अपने बचपन के साथ जोड़ते हैं और गौरैया को देखने के लिए तरस रहे हैं। दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर एक हाउसिंग सोसायटी में रहने वाले जैस्मीन लांबा कहते हैं कि पिछले बसंत में मेरे आसपास एक भी गौरैया नहीं थी, लेकिन इस बार उनका एक झुंड है।
वास्तव में इसके विपरीत सभी लोग गौरैया के शौकीन नहीं होते हैं, कुछ लोग गौरैया को एक आक्रामक कीट के रूपमें भी देखते हैं। जैसे भूरे पंखों वाला चूहा हमारे भोजन को चुरा लेता है। Smithsonianmagazine.com के एक लेख में जीव विज्ञानी और लेखक रॉब डन ने कहा कि पक्षी के साथ मानव का प्रेम-घृणा का संबंध रहा है, मैं आपको बता सकता हूं कि जब गौरैया दुर्लभ हो जाती हैं तो हम उसे पसंद करते हैं और जब वह आम हो जाती है तो हम उससे नफरत करते हैं, हमारा लगाव चंचल और अनुमानित है। गौरैया का संरक्षण और पोषण कीजिए। गौरैया हर घर आंगन की शोभा है, चहचहाहट है और हर मनुष्य की जीवनशैली के करीब है।