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Monday 15 June 2020 01:20:38 PM
नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एंटामोइबा हिस्टोलिटिका मनुष्यों में परजीवी बीमारी के कारण अस्वस्थता और मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है। इसमें अमीबायसिस या अमीबा पेचिश होती है, जो विकासशील देशों में आम तौरपर प्रचलन में है। दावा है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अमीबायसिस की वजह बने प्रोटोजोआ के खिलाफ नई दवा के अणु विकसित किए हैं। यह प्रोटोजोआ प्रकृति में अवायवीय या कम हवा में जीवित रहने वाला है, जो ऑक्सीजन की अधिकता में जीवित नहीं रह सकता है। हालांकि संक्रमण के दौरान यह मानव शरीर के अंदर ऑक्सीजन की तेज बढ़ोतरी का सामना करता है। यह जीव ऑक्सीजन की अधिकता से उत्पन्न तनाव का मुकाबला करने के लिए बड़ी मात्रा में सिस्टीन का निर्माण करता है।
नई दवा प्रोटोजोआ रोगाणु सिस्टीन को ऑक्सीजन के उच्चस्तर के खिलाफ अपने रक्षा तंत्र में आवश्यक अणुओं में से एक के रूपमें तैनात करती है, एंटामोइबा सिस्टीन को संश्लेषित करने के लिए दो महत्वपूर्ण एंजाइमों का इस्तेमाल करती है। जेएनयू के शोधकर्ताओं ने इन दोनों अहम एंजाइमों की आणविक संरचनाओं की विशेषता बताई और उन्हें निर्धारित किया है। इंडिया साइंस वायर के साथ बातचीत करते हुए जेएनयू में स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर समुद्राल गौरीनाथ ने बताया कि उन्होंने भी दोनों एंजाइमों में से एक ओ-एसिटाइल एल-सेरीन सल्फहाइड्रिलेज के संभावित अवरोधकों की सफलतापूर्वक जांच की है और इनमें से कुछ अवरोधक अपनी पूरी क्षमता से इस जीव के विकास को रोक सकते हैं।
सिस्टीन बायोसिंथेसिस ई. हिस्टोलिटिका के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है और यह समान प्रोटोजोआ परजीवी हो सकता है। प्रोफेसर समुद्राल गौरीनाथ ने कहा कि उनका रास्ता बाधित करते हुए उन्हें साधा जा सकता है, जिसे हमने सफलतापूर्वक किया है। उन्होंने कहा कि पहचाने गए अणु दवा के अणुओं का विकास करने में मदद कर सकते हैं। प्रोटोजोआ के खिलाफ नई दवा के शोध दल में सुधाकर धरावत, रामचंद्रन विजयन, खुशबू कुमारी और प्रिया तोमर शामिल हैं। शोध अध्ययन को यूरोपियन जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।