स्वतंत्र आवाज़
word map

देखो अपना देश में 'नाड़ी विज्ञान' पर जागरुकता

'नाड़ी विज्ञान: रीढ़ की हड्डी विकारों का एक संपूर्ण समाधान' प्रस्तुति

भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की स्वास्थ्य पर भी वेबिनार श्रृंखला

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 14 July 2020 01:46:51 PM

vascular science

देहरादून/ नई दिल्ली। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने स्वास्थ्य विज्ञान के प्राचीन रूप-नाड़ी विज्ञान एवं विभिन्न प्रकार के रीढ़ की हड्डी से संबंधित विकारों के उपचार में इसके सार्थक लाभों के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए देखो अपना देश श्रृंखला के तहत 'नाड़ी विज्ञान: रीढ़ की हड्डी से संबंधित विकारों का एक संपूर्ण समाधान' पर वेबिनार प्रस्तुत किया। यह असामान्य शीर्षक हमारी संस्कृति और विरासत का एक हिस्सा है और पर्यटन किसी देश की इन विशेषताओं को प्रदर्शित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। स्वास्थ्य विज्ञान का प्राचीन रूप नाड़ी विज्ञान स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है कि यात्रा गंतव्यों के अतिरिक्त हमारा देश विभिन्न चिकित्सा पहलुओं में कितना अद्भुत है।
देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला के 41वें सत्र का संचालन पर्यटन मंत्रालय की अपर महानिदेशक रुपिंदर बरार ने किया तथा इसे उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के यौगिक विज्ञान विभाग संस्थापक एवं संकाय प्रमुख तथा छात्र कल्याण के डीन डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी ने प्रस्तुत किया। उनका साथ दिया योग अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर तथा शिमला के हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के आईसीडीईओएल में समन्वयक डॉ अर्पिता नेगी ने। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है तथा यह वर्चुअल मंच के जरिये एक भारत श्रेष्ठ भारत की भावना को लगातार विस्तारित कर रही है। डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी ने यौगिक विज्ञान के विषय-नाड़ी विज्ञान के बारे में दर्शकों को जानकारी देने के द्वारा वेबीनार का उद्घाटन किया। आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर के तीन दोष या आंतरिक विकार होते हैं जिनके नाम हैं वात (वायु + इथर), पित्त (अग्नि + जल) तथा कफ (पृथ्वी + जल)। डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी ने व्याख्या की कि किस प्रकार शरीर में इन तत्वों का कोई भी असंतुलन बहुत तीव्र विकारों को जन्म दे देता है।
डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी ने बताया कि किस प्रकार वात तत्व का असंतुलन मानव शरीर में 80 प्रकार के विकारों का कारण बन सकता है, पित्त तत्व का असंतुलन मानव शरीर में 40 प्रकार के विकारों का कारण बन सकता है, कफ तत्व का असंतुलन मानव शरीर में 20 प्रकार के विकारों का कारण बन सकता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में बताया गया है कि किसी की आहार योजना इन तत्वों के अनुरूप शरीर के प्रकार पर विचार करने के जरिए बनाई जानी चाहिए, उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति हाईपर एसिडिटी से ग्रस्त है तो फिर मानिए कि इसकी वजह शरीर में पित्त का असंतुलन या उसकी अत्यधिक मात्रा है, इसलिए उसे अपने आहार में अल्कालाइन भोजन लेना चाहिए, जो एसिडिटी को बेअसर कर देता है तथा शरीर में पित्त तत्व को संतुलित करता है, उम्र के साथ भी इन तत्वों में परेशानी आ सकती है। उन्होंने कहा कि नाड़ी परीक्षण वात, पित्त और कफ के असंतुलन के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं या विकारों के निर्धारण में सहायता करता है, नाड़ी के उद्गम बिंदु को कंदस्थान कहा जाता है, जो मानव शरीर की नाभि है, क्योंकि नाभि शरीर की केंद्रीय शक्ति होती है, मां के गर्भ में शिशु को गर्भनाल से भी पोषण मिलता है, जो बच्चे की नाभि से भी जुड़ा होता है। उन्होंने बताया कि हमारा शरीर 72,000 नाड़ियों से बना होता है, 72,000 नाड़ियां तीन मूलभूत नाड़ियों-बाएं, दाएं एवं मध्य-इडा, पिंगला और सुषुम्ना से उत्पन्न होती हैं।
डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी बताते हैं कि नाड़ी शब्द का अर्थ धमनी नहीं होता, बल्कि नाड़ियां प्राण का रास्ता या माध्यम होती हैं, ये 72,000 होती हैं और इनकी कोई शारीरिक अभिव्यंजना नहीं होती, ये 72,000 विभिन्न मार्ग होती हैं, जिनमें ऊर्जा या प्राण का संचरण होता है, अगर प्राणिक ऊर्जा बाईं नासिका मार्ग अर्थात इडा नाड़ी से गुजरती है तो शरीर योग जैसे महीन व्यायाम करने के लिए अधिक उपयुक्त होगा, इसी प्रकार अगर प्राणिक ऊर्जा दाईं नासिका मार्ग अर्थात पिंगला नाड़ी से गुजरती है तो शरीर ऊर्जाशील व्यायाम करने के लिए अधिक उपयुक्त होगा और अगर प्राणिक ऊर्जा मध्य नासिका मार्ग अर्थात सुषुम्ना नाड़ी होकर गुजरती है तो शरीर आध्यात्मिक व्यायाम करने के लिए अधिक उपयुक्त होगा। वे बताते हैं कि ये तीनों नाड़ियां शरीर की रीढ़ की हड्डी से जुड़ी हुई हैं, रीढ़ की हड्डी के विकार अनियमित शरीर संरेखण के कारण पैदा होते हैं और ये शरीर के अन्य अंगों की कार्यप्रणाली में भी उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि उनमें से अधिकांश रीढ़ की हड्डी से जुड़े होते हैं। डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी ने तकनीक बताई कि किस प्रकार वह तुरंत अपने मरीजों को उनकी कमर के निचले हिस्से के दर्द का तथा पीठ से जुड़ी अन्य समस्याओं का उपचार कर देते हैं।
डॉ लक्ष्मीनारायण जोशी ने बताया कि योग का अभ्यास नाड़ी के भीतर ऊर्जा के मुक्त प्रवाह को सक्षम बनाता है तथा उनमें विषैले तत्वों को हटाने में सहायता करता है। उन्होंने बताया कि हठ योग के अनुसार हम कुछ आसनों के अभ्यास के जरिये विशिष्ट नाड़ियों के जरिये रक्त प्रवाह को बनाये रख सकते हैं। डॉ लक्ष्मीनारायणन जोशी ने दर्शकों को नाड़ी विज्ञान तथा स्वास्थ्य विज्ञान के अन्य रूपों के बारे में और अधिक खोज करने तथा चमत्कृत कर देने वाले उत्तराखंड राज्य का समग्र अनुभव प्राप्त करने के लिए अगले वर्ष इस समारोह में आने का आमंत्रण दिया। डॉ अर्पिता नेगी ने बताया कि किस प्रकार मकरासन, भुजंगासन, शवासन और भुजंग शवासन जैसे विभिन्न आसनों के अभ्यास के जरिए विभिन्न प्रकार की रीढ़ की हड्डियों के विकार एवं समस्याओं के उपचार में सहायता कर सकते हैं। उत्तराखंड सरकार तथा उत्तराखंड पर्यटन बोर्ड प्रत्येक वर्ष 1 से 7 मार्च तक अंतरराष्ट्रीय योग सप्ताह मनाते हैं। इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सृजित नेशनल ई-गवर्नेंस प्रभाग पेशवर टीम के साथ प्रत्यक्ष रूपसे डिजिटल अनुभव मंच का उपयोग करके हितधारकों के साथ प्रभावी नागरिक भागीदारी तथा संवाद सुनिश्चित करता है। वेबिनारों के सत्र भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के सभी सोशल मीडिया हैंडलों पर भी उपलब्ध हैं।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]