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Saturday 1 August 2020 05:30:50 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की 100वीं पुण्यतिथि पर नई दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के ‘लोकमान्य तिलक-स्वराज से आत्मनिर्भर भारत’ विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का उद्घाटन किया। अमित शाह ने कहा कि बालगंगाधर तिलक ने ही वास्तव में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भारतीय आंदोलन बनाया, उन्होंने अपने जीवन का क्षण-क्षण राष्ट्र को समर्पित कर क्रांतिकारियों की एक वैचारिक पीढ़ी तैयार की। केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि बालगंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करके ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’ का जो नारा दिया था, वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आज यह बहुत सहज लगता है, लेकिन 19वीं शताब्दी में यह बोलना और उसे चरितार्थ करने के लिए अपना पूरा जीवन खपा देने का काम बहुत कम लोग ही कर सकते थे। गृहमंत्री ने कहा कि लोकमान्य के इस वाक्य ने भारतीय समाज को जनचेतना देने और स्वतंत्रता आंदोलन को लोक आंदोलन में बदलने का काम किया और इसी कारण से स्वतः ही लोकमान्य की उपाधि उनके नाम से जुड़ गई। गृहमंत्री ने कहा कि लोकमान्य से पूर्व ‘गीता’ के सन्यास भाव को लोग जानते थे, लेकिन जेल में रहते हुए उन्होंने ‘गीता रहस्य’ लिखकर गीता के अंदर के कर्मयोग को लोगों के सामने लाने का काम किया और लोकमान्य की पुस्तक ‘गीता रहस्य’ आज भी लोगों का मार्गदर्शन कर रही है। गृहमंत्री ने कहा कि वे मूर्धन्य चिंतक, दार्शनिक, पत्रकार, समाज सुधारक और बहुआयामी व्यक्तित्व थे, इतनी महान उपलब्धियां होते हुए भी जमीन से जुड़े रहने की कला उनसे सीखी जा सकती है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि भारत, भारतीय संस्कृति और भारतीय जनमानस को समझने वाले लोकमान्य बालगंगाधर तिलक आज भी हर पीढ़ी के लिए प्रासंगिक हैं। अमित शाह ने युवाओं से कहा कि यदि भारत और भारत के गरिमामय इतिहास को जानना है तो बालगंगाधर तिलक को बार-बार पढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि हरबार पढ़ने से लोकमान्य के महान व्यक्तित्व के बारे में कुछ नया ही ज्ञान प्राप्त होगा और उनसे प्रेरणा लेकर युवा जीवन में ऊंचाईयां हासिल कर सकेंगे। अमित शाह ने कहा कि लोकमान्य का स्वभाषा और स्वसंस्कृति का जो आग्रह था, उसे नरेंद्र मोदी सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल किया गया है। अमित शाह ने कहा कि लोकमान्य तिलक के विचारों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की न्यू इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना के माध्यम से आगे बढ़ाया जा रहा है।
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कहा था कि सच्चे राष्ट्रवाद का निर्माण पुरानी नींव के आधार पर ही हो सकता है और जो सुधार पुरातन के प्रति घोर असम्मान की भावना पर आधारित हैं, उसे सच्चा राष्ट्रवाद रचनात्मक कार्य नहीं समझता, उनके इस विज़न पर जोर देते हुए अमित शाह ने कहा कि हम अपनी संस्थाओं को ब्रिटिश ढांचे में नहीं ढालना चाहते, सामाजिक तथा राजनीतिक सुधार के नाम पर हम उनका अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं करना चाहते। अमित शाह ने कहा कि बालगंगाधर तिलक भारतीय संस्कृति के गौरव के आधार पर देशवासियों में राष्ट्रप्रेम उत्पन्न करना चाहते थे, इस संदर्भ में उन्होंने व्यायामशालाएं, अखाड़े, गौ-हत्या विरोधी संस्थाएं स्थापित कीं। उन्होंने कहा कि लोकमान्य अस्पृश्यता के प्रबल विरोधी थे, उन्होंने जाति और संप्रदायों में बंटे समाज को एक करने के लिए बड़ा आंदोलन चलाया, तिलकजी कहा करते थे कि यदि ईश्वर अस्पृश्यता को स्वीकार करते हैं तो फिर मैं ऐसे ईश्वर को स्वीकार नहीं करता।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मजदूर वर्ग को राष्ट्रीय आंदोलन में जोड़ने के लिए भी लोकमान्य ने महत्वपूर्ण काम किया, साथ ही लोगों को स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ने के लिए उन्होंने शिवाजी जयंती और सार्वजनिक गणेश उत्सवों को लोकउत्सव के रूपमें मनाने की शुरूआत की, जिससे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा और दशा दोनों बदल गईं। अमित शाह ने कहा कि मरण और स्मरण में आधे अक्षर का अंतर है, लेकिन यह आधा ‘स’ जोड़ने के लिए पूरे जीवन का त्याग करना पड़ता है और तिलकजी इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि लोकमान्य ने गांधी, वीर सावरकर और अनेक स्वाधीनता सेनानियों को प्रोत्साहित करने का काम किया, महात्मा गांधी नंगे पांव चलकर बालगंगाधर तिलक की अंतिम यात्रा में शामिल हुए। वेबिनार के उद्घाटन सत्र में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष और सांसद डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ के उपकुलपति दीपक तिलक, डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ शरद कुंटे एवं और भी कई गणमान्य नागरिक शामिल हुए।