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Tuesday 25 August 2020 02:42:50 PM
हैदराबाद/ नई दिल्ली। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश वेबिनार सीरीज में 'कल्चरल हेरिटेज ऑफ हैदराबाद' शीर्षक से 50वें वेबिनार सत्र का आयोजन किया। पर्यटन मंत्रालय कम चर्चित और लोकप्रिय स्थलों के कम चर्चित पहलुओं सहित भारत के विभिन्न पर्यटन स्थलों के बारे में जागरुकता फैलाने और प्रचार के उद्देश्य से देखो अपना देश वेबिनारों का आयोजन करता आ रहा है, जो ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को भी बढ़ावा देते हैं। हैदराबाद की सांस्कृतिक विरासत पर इस वेबिनार को विरासत शिक्षा सलाहकार, लेखक और संरक्षण वास्तुकार मधु वोतेरी ने प्रस्तुत किया, जिसमें हैदराबाद की संस्कृति को प्रदर्शित किया गया, जो निजाम के शासन के दौर से विरासत में मिले इस्लामिक प्रभावों के चलते बाकी तेलंगाना से काफी अलग है। यह अंतर हैदराबाद की वास्तुकला, खानपान, जीवनशैली और विशेष रूपसे पुराने शहर की भाषा में स्पष्ट दिखाई देता है। प्रस्तोता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नया शहर किस तरह से महानगरीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। हैदराबादी विरासत के प्रदर्शन के लिए समर्पित कई संग्रहालयों, कला दीर्घाओं और प्रदर्शनियों के साथ हैदराबाद में साहित्य और ललित कलाओं की एक समृद्ध परंपरा है।
प्रस्तोता मधु वोतेरी ने बताया कि कैसे हैदराबाद मोतियों के शहर और निजाम के शहर के रूपमें लोकप्रिय हुआ है तथा कुतुबशाही राजवंश की स्थापना के बाद से एक जीवंत ऐतिहासिक विरासत का केंद्र रहा है, बाद में शहर पर मुगल साम्राज्य का आधिपत्य हो गया और आखिर में यह आसफ जाही राजवंश के हाथ में चला गया। प्रस्तोता ने बताया कि कैसे खानपान और चारमीनार एवं गोलकुंडा किला जैसी वास्तुकला की प्रतिष्ठित इमारतों के रूपमें हैदराबाद की संस्कृति में आज भी शाही अतीत दिखाई देता है, जो शहर के स्वर्णिम इतिहास के प्रमाण हैं। हैदराबाद शहर के इतिहास को याद करते हुए प्रस्तोता ने इससे जुड़ीं प्रमुख शख्सियतों की जानकारियां दीं। मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने गोलगुंडा किले से आगे राजधानी के विस्तार के लिए 1591 में हैदराबाद की स्थापना की थी, 1687 में शहर पर मुगलों का कब्जा हो गया, 1724 में मुगल शासक निजाम आसफ जाह-1 ने अपनी सम्प्रभुता का ऐलान किया और आसफ जाही राजवंश की स्थापना की, जिसे निजाम के नाम से भी जाना जाता है। हैदराबाद 1769 से 1948 के बीच आसफ जाही की शाही राजधानी रहा। वर्ष 1947 में भारत के आजाद होने से पहले तक हैदराबाद, रियासत की राजधानी के रूप में शहर में ब्रिटिश रेजिडेंसी और कैंटोनमेंट भी था।
कुतुबशाही और निजाम शासन के निशान आज भी यहां स्पष्ट दिखाई देते हैं। चारमीनार इस शहर की पहचान बन गई है। प्रारंभिक आधुनिक युग के अंत तक मुगल साम्राज्य दक्षिण तक सिमटकर रह गया और निजाम के संरक्षण ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों के विद्वानों को आकर्षित किया। स्थानीय और प्रवासी कारीगरों के संयोजन से एक विशेष संस्कृति का निर्माण हुआ और शहर प्राचीन संस्कति के एक प्रमुख केंद्र के रूपमें उभरा। यहां की चित्रकला, हस्तशिल्प, आभूषण, साहित्य, बोली और परिधान आज भी विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां का तेलुगू फिल्म उद्योग देश में फिल्मों का दूसरा बड़ा निर्माण केंद्र है। हैदराबाद को यूनेस्को ने पाक कला की श्रेणी में एक रचनात्मक शहर के रूपमें चुना है। वेबिनार सत्र में हैदराबाद के प्रमुख सांस्कृतिक स्थलों का उल्लेख किया गया, जिनमें गोलकुंडा किला एक भव्य किला है, जिसके अवशेष आज भी शान से खड़े हैं और खुद-ब-खुद अपनी समृद्ध विरासत व शहर के इतिहास की अनसुनी कहानियां बयान करते हैं। हैदराबाद के इस आकर्षक स्थल की जरूर यात्रा करनी चाहिए। मोहम्मद कुली एक नए शहर की आवश्यकता समझते थे और उन्होंने अपनी प्रियतमा के नाम बसाए भागनगर में चारमीनार स्थापित की थी।
आसफ जाही राजवंश की गद्दी रहे चौमहला पैलेस का निर्माण हैदराबाद में किया गया था और यह प्रसिद्ध स्मारक चारमीनार और लाड बाज़ार के पास है। इस महल का डिजाइन खासा जटिल था, इसमें नवाबी आकर्षण स्पष्ट दिखाई देता है। चौमहला पैलेस निजामों का सिंहासन हुआ करता था, जिसे सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को एशिया-पैसिफिक हेरिटेज मेरिट पुरस्कार मिल चुका है। कुली कुतुब शाह ने जब गोलकुंडा की जगह हैदराबाद को अपनी राजधानी बनाया तो चारमीनार स्मारक का निर्माण किया गया था। इस स्मारक को अपनी संरचना के कारण यह नाम मिला, क्योंकि इसमें चार ऊंची-ऊंची मीनारें हैं। हैदराबाद के स्वर्णिम दौर के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में से एक है पुरानी हवेली। इस इमारत को आज उसकी बेहतरीन कलाकृतियों और प्रतिभा के लिए जाना जाता है। यह बेहद सुंदर इमारत इतिहास के प्रेमियों के लिए एक महान आश्चर्य के समान है। मक्का मस्जिद भारत की सबसे पुरानी और बड़ी मस्जिदों में से एक और हैदराबाद के भव्य ऐतिहासिक स्थलों में से एक है, जिसका निर्माण 1693 में औरंगजेब ने पूरा कराया था। माना जाता है कि यहां इस्तेमाल की गई ईंटें मक्का से आई थीं और इसीलिए उसका यह नाम पड़ा।
इब्राहिम बाग में कुतुबशाही मकबरा छोटी और बड़ी मस्जिदों तथा मकबरों का समूह है, जिनका निर्माण कुतुब शाह राजवंश के शासकों ने कराया था। मकबरे एक ऊंचे स्थान पर बनाए गए हैं और उन्हें गुम्बद का आकार दिया गया है। हैदराबाद में छोटे ऐतिहासिक स्थल एक मंजिला हैं, जबकि बड़े स्थल दो मंजिला हैं। इस स्थल को मुगल फौज द्वारा गोलकुंडा किला को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। मकबरे की छोटी मंजिल को मुगल सेना के घोड़ों के लिए अस्तबल के रूपमें इस्तेमाल किया जाता था। हैदराबाद में पिसल बांदा उपनगरीय इलाके में पैगाह मकबरा, पैगाल शाही परिवार के मकबरों का एक समूह है। भले ही वर्तमान में यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, लेकिन मकबरे में आज भी शानदार वास्तुकला और नक्काशीदार संगमरमर के पैनल मौजूद हैं। हैदराबाद के इस ऐतिहासिक स्थल का प्रबंधन रखवालों के एक परिवार के पास है, जो परिसर में ही रहता है। सालार जंग संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1951 में की गई थी और यह हैदराबाद शहर में मूसी नदी के दक्षिणी किनारे पर दार-उल-शिफा में स्थित है। सालार जंग परिवार ने दुनियाभर से इन दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रह किया था। यह परिवार दक्षिण भारत के इतिहास के सबसे ज्यादा प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है, जिनमें से पांच हैदराबाद के पूर्ववर्ती निजाम शासन डेक्कन में प्रधानमंत्री रहे थे।
वारंगल किला 12वीं सदी से अस्तित्व में है, जब यह काकतीय राजवंश की राजधानी हुआ करता था। किले में चार भव्य द्वार हैं, जिन्हें काकतीय कला थोरनम के रूपमें जाना जाता है, जो मूल रूपसे जीर्ण शीर्ष हो चुके महान शिवमंदिर के प्रवेश द्वार के रूपमें बनाए गए थे। कुतुबशाही लकड़ी का महल व्यापार मार्ग में भी पड़ता है। इस व्यापारिक मार्ग की अहमियत इसके इर्दगिर्द बनाए गए ढांचों से भी प्रदर्शित होती है। गोलकुंडा-पुल-ई-नरवा नई राजधानी को किले से जोड़ता है। सिकंदराबाद के जुड़वां शहर के बारे में मधु वोतेरी ने बताया कि 1798 में दूसरे निजाम और अंग्रेजों के बीच एक सहायक गठबंधन बनाया गया था। चारमीनार से उत्तर की तरफ शहर के इस हिस्से को कैंटोनमेंट के रूपमें स्थापित किया गया था और इसे तीसरे निजाम नवाब सिकंदर जाह के नाम पर सिकंदराबाद के नाम से जाना जाता था। इसका निर्माण यूरोपीय शैली में हुआ था। पुरानी विरासत संरचना और आधुनिक इमारतों के संयोजन के साथ ही हैदराबाद लाड बाजार की लाख की चूड़ियों, कांच की चूड़ियों, पाथर घट्टी के मोतियों और आभूषणों, लाड बाजार व पाथर घट्टी के इथनिक परिधानों तथा छाता बाजार की कालिग्राफी के लिए भी प्रसिद्ध है। यह शहर इडिबल सिल्वर फॉइल, जरदोजी कार्य, कालिग्राफी आदि के लिए प्रसिद्ध है।
प्रस्तोता मधु वोतेरी ने तेलंगाना राज्य सरकार के वाकिंग टूर्स पर भी बात की, जिसके माध्यम से राज्य की विरासत और संस्कृति का प्रदर्शन किया जाता है। राज्य सरकार का हैदराबाद नाम का एक ऐप भी है। सत्र का समापन करते हुए अतिरिक्त महानिदेशक रूपिंदर बरार ने हैदराबाद के सड़क, रेल और वायु संपर्क के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि शहर का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा यूरोप, मध्यपूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हैदराबाद हवाईअड्डे को परिचालन, स्वच्छता और उत्कृष्ट ऊर्जा कुशल इकाई के लिए कई पुरस्कार हासिल हो चुके हैं। उन्होंने पर्यटन मंत्रालय के अतुल्य भारत पर्यटक सुविधा प्रमाणन कार्यक्रम के बारे में भी बात की, जो गंतव्य, यात्रा और उत्पाद एक ऑनलाइन शिक्षण कार्यक्रम है। यह पर्यटकों को स्टोरी टेलिंग और अतीत की ऐतिहासिक व विरासत को साझा करने की कुशलता में सुधार के लिहाज से अहम है। इससे नागरिकों को स्थानीय संस्कृति के महत्व को समझने और यात्रियों के सामने एक विशेष प्रकार से इनके प्रदर्शन में सहायता मिलेगी। इसका लिंक https://www.youtube.com/channel/UCbzIbBmMvtvH7d6Zo_ZEHDA/featured पर उपलब्ध है। वेबिनारों के ये सत्र पर्यटन मंत्रालय की वेबसाइट incredibleindia.org और tourism.gov.in पर भी उपलब्ध हैं।