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Monday 22 April 2013 09:00:58 AM
पासीघाट। जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय पासीघाट, अरुणाचल प्रदेश में डॉ रामविलास शर्मा की जन्मशती मनाई गई। इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य तायेक तालोम ने देश के कोने-कोने से आए विद्वानों का आभार प्रकट करके किया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रोफेसर टी मिबांग कुलपति राजीव गांधी विश्व विद्यालय ईटानगर, अतिथि सम्मान प्रोफेसर राजमणि शर्मा हिंदी विभाग काशी हिंदू विश्व विद्यालय तथा विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह अध्यक्ष हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय थे।
संगोष्ठी के बीज वक्ता सुप्रसिद्ध कथाकार प्रोफेसर काशीनाथ सिंह, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने बीज वक्तव्य में डॉ रामविलास शर्मा के जीवन और साहित्य के महत्वपूर्ण संदर्भों पर प्रकाश डाला और कहा कि पत्रकार, लेखक, कवि के रूप में डॉ शर्मा एक साधक थे। सन् 1975 के बाद उन्होंने साहित्यिक गोष्ठियों में जाना बंद कर दिया था, वह सिर्फ किताबों के बीच रहे, अगर उनकी सारी पुस्तकों को जोड़ दिया जाये तो यह एक आदमी के बस का नहीं, वह एक लड़ाकू, जुझारू और निर्भय व्यक्ति थे। काशीनाथ सिंह ने इस बात पर बल दिया कि डॉ शर्मा पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने हिंदी को भाषा नहीं जाति माना, जो हिंदी जाति सात राज्यों में बांट दी गई,उसे एक राज्य में होना चाहिए, जब तमिल जाति हो सकती है, तो हिंदी क्यों नहीं?
प्रोफेसर राजमणि शर्मा ने डॉ रामविलास शर्मा के भाषा चिंतन पर कहा कि हिंदी और ऊर्दू एक ही भाषा के दो रूप हैं, भाषा के आधार पर उन्होंने स्पष्ट किया कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता आर्यों की सभ्यता थी। प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह ने डॉ शर्मा के आलोचना पक्ष पर प्रकाश डाला और कहा कि डॉ शर्मा के सामने आलोचना की लंबी परंपरा थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी आलोचना को शास्त्रीय परंपरा से निकाल कर लोकमंगल की भूमि पर प्रतिष्ठित किया, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथों और सिद्धों के दायरे को स्वीकार किया। रामविलास शर्मा जनता के आलोचक हैं, उनके यहां साहित्यवाद का कोई दबाब नहीं है।
प्रोफेसर विनोद कुमार मिश्र, अध्यक्ष त्रिपुरा विश्वविद्यालय ने इस बात पर बल दिया कि डॉ रामविलास शर्मा के साहित्य और चिंतन को भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिये। डॉ संजय श्रीवास्तव, महासचिव प्रगतिशील लेखक संघ, उत्तर प्रदेश ने कहा कि रामविलास शर्मा ने विशद अध्ययन किया है और उन्होंने भारतीयता की अवधारणा को स्पष्ट किया है। संगोष्ठी की शुरुआत अध्यक्ष प्रोफेसर गोपेश्वर सिंह की प्रस्तावना के साथ हुई। उन्होंने शोधपत्र बाचकों की प्रस्तुति पर प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाओं के महत्व को रेखाँकित करते हुए जीवंत परिचर्चा का आग्रह किया।
डॉ अभिषेक यादव ने रामविलास शर्मा की ऐतिहासिक भौतिकवाद और द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांतों से पूरी परंपरा पर प्रकाश डाला। डॉ ओकेन लेगो ने यह प्रमाणित किया कि निराला की ‘राम की शक्ति पूजा’ के राम की शक्ति जितनी स्वामी विवेकानंद की काली से भिन्न है, उतनी कृत्तिवास की दुर्गा से। डॉ अरुण कुमार पांडेय के अनुसार रामविलास शर्मा ने हिंदी आलोचना को विगत छः दशकों से नई दिशा और दशा दी है। डॉ हरीश कुमार शर्मा ने रामविलास की हिंदी जाति संबंधी अवधारणा को स्पष्ट किया। डॉ विधान चंद्र राय ने कहा कि रामविलास शर्मा ने मार्क्सवाद का दार्शनिक आधार स्वीकार किया है। डॉ शिवानंद झा ने कहा कि मैथिल कोकिल विद्यापति और मिथिलांचल का विस्तृत विवरण रामविलास शर्मा के साहित्य में मिलता है। डॉ प्रदीप कुमार भारती ने कहा कि डॉ रामविलास शर्मा साहित्य में सर्वहारा वर्ग के चित्रण पर बल तो देते हैं, लेकिन उनकी दृष्टि संकीर्ण मनोवृत्तियों से अलग है। डॉ विजयशंकर मिश्र ने अपने शोधपत्र ‘रामविलास की दृष्टि में भक्ति आंदोलन और तुलसी की भक्ति भावना’ में उन्होंने तुलसी के सामंत विरोधी मूल्यों की चर्चा करते हुए यह स्पष्ट किया कि तुलसी सामंतवाद के पोशक और नारी विरोधी नहीं थे।
संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि राजेश कुमार मिश्र, उपायुक्त पूर्वी सियांग, अरुणाचल प्रदेश, अतिथि प्रोफेसर अजय कुमार पांडेय डीन, हार्टिकल्चर कॉलेज पासीघाट, (केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय) थे। संगोष्ठी का संचालन डॉ प्रसिद्ध नारायण चौब, अध्यक्ष हिंदी विभाग ने किया। संगोष्ठी के समन्वयक डॉ हरिनिवास पांडेय ने उपस्थित विद्वानों एवं प्रतिभागियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।