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वैज्ञानिकों ने लद्दाख में हिमालयी बाढ़ से चेताया

ग्लोबल वार्मिंग के कारण उच्च हिमालय क्षेत्रों में नाटकीय हलचल

लद्दाख हिमालय के ठंडे रेगिस्तान में जबरदस्त बाढ़ आई थी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 17 June 2021 11:59:57 AM

scientists warn of himalayan floods in ladakh

लेह। वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि लद्दाख हिमालय के ठंडे रेगिस्तान में बड़ी बाढ़ आई थी, जिसका जलस्तर वर्तमान नदी जलस्तर से ऊपर चला गया था। इसका अर्थ यह हुआ कि ग्लोबल वार्मिंग के परिदृश्य में जब उच्च हिमालय क्षेत्रों में नाटकीय रूपसे प्रतिक्रिया की उम्मीद है तो लद्दाख में बाढ़ की आवृत्ति बढ़ सकती है, यह गंभीर शहरी और ग्रामीण नियोजन की आवश्यकता बन सकती है। भारत की प्रमुख नदियों में प्राकृतिक रूपसे बर्फ और हिमनदों के पिघलने और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) और पश्चिमी और पूर्वी एशियाई ग्रीष्मकालीन मानसून (ईएएसएम) की महाद्वीपीय पैमाने पर वर्षा व्यवस्था में प्राकृतिक रूपसे आने वाली बाढ़ अपने भू-आकृतिक डोमेन में अतिक्रमण किए गए सभी परिदृश्य और जीवन तथा अर्थव्यवस्था को काफी हद तक बदल देती है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि लद्दाख हिमालय में ये बाढ़ विभिन्न प्रकार से मूल हिमनदों/ भूस्खलन झील विस्फोट, बादल फटने, जरूरत से ज्यादा मजबूत मानसून के कारण है और इनके विभिन्न बाध्यकारी कारक और आवृत्तियां हैं, इसलिए बाढ़ भविष्यवाणी मॉडल में बड़ी अनिश्चितता जोड़ती हैं। इन बाढ़ का दस्तावेजी रिकार्ड 100 वर्ष का है जो हिमालय में बाढ़ की घटनाओं के प्राकृतिक रैंप को समझने के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए पुरालेख की गहराई में जाने की जरूरत है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून के नेतृत्व में छात्रों और वैज्ञानिकों के एक दल ने जांस्कर और सिंधु के कठिन इलाकों से हिमालय की यात्रा की और लद्दाख क्षेत्र में पिछली बाढ़ के भूगर्भीय संकेतों को सूक्षम तरीकेसे देखा जो वर्तमान से 15-3 हजार वर्ष पहले के हैं। यह अध्ययन हाल में जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका बुलेटिन में ऑनलाइन प्रकाशित किया गया था। अध्ययन में बाढ़ अपने चैनल के साथ उन स्थानों पर उम्दा रेत और गाद का ढेर छोड़ देती है, जहां बाढ़ ऊर्जा काफी कम हो जाती है।
उदाहरण के लिए नदी घाटियों, संगमों के व्यापक भागों, छोटी खाई के पीछे जो सुस्त जल तलछट (एसडब्ल्यूडी) के रूपमें जाना जाता है, वे एसडब्ल्यूडी जंस्कार और सिंधु नदियों के साथ कई स्थानों पर स्थित थे, बाढ़ की संख्या के लिए उन्हें लंबवत रूपमें गिना गया और ऑप्टिकली स्टिमुलेटेड ल्यूमिनेसेंस (ओएसएल) और 14C के एक्सेलेरेटेड मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उनका समय अंकित किया गया। बाढ़ तलछटों का उनके स्त्रोत के लिए विश्लेषण किया गया। इस विश्लेषण से पता चला कि ठंडे रेगिस्तान में एक बार एक बड़ी जबरदस्त बाढ़ का अनुभव किया गया था जो वर्तमान नदी के स्तर से 30 मीटर से अधिक हो गया था। नदी के निकट सक्रिय बाढ़ वाले मैदानों का उपयोग मनुष्यों द्वारा भी किया जाता था, संभवतः शिविरों और खाना पकाने के स्थान रूपमें, जैसाकि कई स्थानों पर चूल्हों की मौजूदगी और बाढ़ के तलछटों से संकेत मिलता है। बाढ़ तलछटके कालक्रम ने लद्दाख में पिछले हिमनदीय अधिकता (14-11, 10-8, और 7-4 (1000 वर्ष) या कानामक अवधि के बाद बढ़ी हुई बाढ़ के तीन चरणों को इंगित किया।
ये ऐसे समय थे जब वार्मिंग के कारण भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून लद्दाख में भी सक्रिय था। परिणामों से यह भी पता चलता है कि लद्दाख की बाढ़ पिछले 15000 वर्ष के दौरान पूर्वोत्तर हिमालय और मुख्य भूमि चीन में आने वाली बाढ़ के साथ कालक्रम से बाहर है। इसका तात्पर्य यह है कि आईएसएम और ईएएसएम के बीच आधुनिक संबंध 14000 वर्षों से अधिक समय का है। इसके अलावा उच्च हिमालय क्रिस्टलीय और तेथियन दृश्यों की चट्टानें बाढ़ के चरणों के दौरान क्षेत्रों में कटाव के आकर्षण केंद्र के रूपमें समान रूपसे कार्य करती हैं। चूल्हों के प्रारंभिक अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि लद्दाख के पर्वतीय गलियारों के साथ लोगों का आंतरिक प्रवास था, जब पिछले हिमनदीय अधिकता के बाद तापमान अपेक्षाकृत गर्म था और इस क्षेत्र का जल विज्ञान समर्थनकारी था। डब्ल्यूआईएचजी टीम के अनुसार इन मानवजनित अवशेषों के एक विस्तृत जीनोमिक और आइसोटोपिक आधारित अध्ययन से मनुष्यों के पलायन की भौगोलिक पुरातनता और उनके भोजन और वनस्पति के प्रकारों को समझने में मदद मिल सकती है।

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