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सबसे ऊँचाई पर सबसे बड़ी दूरबीन-‘मेस’

कल्‍पना पालकीवाला

Thursday 25 April 2013 02:01:19 AM

लद्दाख। विश्‍व की सबसे बड़ी दूरबीन-‘मेस’ लद्दाख में हानले में सबसे अधिक ऊँचाई पर स्‍थापित की जा रही है। रूस के वैज्ञानिक सेरेनकोव के नाम पर बनने वाली यह दूरबीन मेजर एटमॉसफेरिक सेरेनकोव एक्‍सपेरिमेंट टेलीस्‍कोप यानी एमएसीई (मेस) का निर्माण इलेक्‍ट्रोनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद में किया जा रहा है। हैदराबाद में निर्माण के बाद इसकी अंतिम एसेंबली हानले की भारतीय वेधशाला के परिसर में की जाएगी। इसका संचालन दूर से किया जाएगा और यह सौर ऊर्जा से संचालित होगी।
रूसी वै‍ज्ञानिक सेरेनकोव ने अपने वायुमंडल के प्रयोगों के बाद भविष्‍यवाणी की थी कि किसी माध्‍यम में तेज गति से चल रहे आवेशित कण प्रकाश उत्‍सर्जित करते हैं। यह दूरबीन उपग्रह और परंपरागत सेरेनकोव प्रयोगों के बीच गामा किरणों के ऊर्जा क्षेत्र की खोज करने में सहायक होगी। भारतीय खगोल भौतिकी संस्‍थान, हानले के प्रभारी प्रोफेसर डॉक्‍टर तुषार पी प्रभु इन प्रयोगों को करेंगे। संस्‍थान ने टाटा मौलिक अनुसंधान संस्‍थान (TIFR)के साथ मिलकर अधिक ऊँचाई पर गामा किरण टेलीस्‍कोप (HAGAR) स्‍थापित करके अधिक ऊँचाई के लाभों को प्रदर्शित किया।
आकाशगंगाओं के केंद्र अथवा ब्‍लैक होल से उत्‍सर्जित अत्‍यधिक ऊर्जा वाली गामा किरणों के पुच्‍छल तारे जैसे पिंड वायुमंडल में ही समा जाते हैं और धरती पर नहीं पहुंच पाते, लेकिन जब ये किरणें वायुमंडल के संपर्क में आती हैं, तो फोटोन से इलेक्‍ट्रोन-पॉजिट्रोन के जोड़े निकलते हैं और कणों की बौछार होती है। जब ये कण तेज गति से वायुमंडल में चलते हैं, तो सेरेनकोव विकिरण प्रकाश पैदा होता है। वायुमंडल में कितनी गामा किरणें पहुंचती हैं, इसका अनुमान नीले और अल्‍ट्रा-वायलेट सेरेनकोव प्रकाश से लगाया जाता है।
ब्रहमांड में गामा किरणें अत्‍यधिक ऊर्जा वाली प्रक्रियाएं हैं। इनके अध्‍ययन से हमें ब्‍लैक होल, सघन वस्‍तुओं, डार्क मैटर और उच्‍च गुरूत्‍वाकर्षण वाले क्षेत्रों के पास उच्‍च ऊर्जा भौतिकी को समझने में सहायता मिलेगी।
अधिक ऊँचाई पर दूरबीन के स्थित होने का लाभ यह होगा कि गामा किरणों से उत्‍पन्‍न सेरेनकोव विकिरण प्रकाश लगभग 5.5 किलोमीटर की ऊँचाई पर होगा, जो सामान्‍यत: समुद्र सतह से दस किलोमीटर की ऊँचाई पर होता है, यानी अब यह लगभग आधी दूरी पर होगा और विकिरण प्रकाश की सघनता धरती पर चार गुणा होगी। ऐसे स्‍थान पर छोटे यंत्र से ही अध्‍ययन करना संभव हो जाएगा, जबकि समुद्र सतह से अध्‍ययन के लिए बड़े यंत्र की आवश्‍यकता होगी। अधिक ऊँचाई ऊर्जा गामा किरण (HAGAR) की दूरबीनों का निर्माण बैंगलोर में किया गया था और इसमें प्रयुक्‍त डिटैक्‍टरों का निर्माण मुंबई में टाटा मौलिक अनुसंधान संस्‍थान (TIFR) में किया गया था। वर्ष 2008 में पहली बार HAGAR की टेलीस्‍कोप ने प्रकाश देखा और उसके बाद लगातार प्रयोग किये जा रहे हैं।
एक महत्‍वपूर्ण परीक्षण उस समय सामने आया, जब एक सक्रिय नाभि-केंद्र वाली आकाशगंगा का अध्‍ययन किया जा रहा था, जहां ब्‍लैक होल पर गिरने वाले पदार्थ की प्रक्रियाओं से कभी-कभी सक्रियता बढ़ जाती है। हानले की हिमालयन चंद्र टेलीस्‍कोप (एचसीटी) ने दस आकाशगंगाओं के अध्‍ययन के बाद तीन ऐसी आकाशगंगाओं का पता लगाया है, जिनके ब्‍लैक होल बहुत विशाल हैं। टेलीस्‍कोप के कुछ अन्‍य प्रेक्षणों में अधिनव तारा विस्‍फोटों और हमारी आकाशगंगाओं में बनने वाले नये परिवर्ती सितारों के बीच बहुत सूक्ष्‍म अंतर है। हिमालयन चंद्र टेलीस्‍कोप (एचसीटी) ने कई कम धात्‍वीय सितारों का भी सफलतापूर्वक पता लगाया है।
दो-एम एपरचर वाली ऑप्टिकल-इंफ्रारेड-टेलीस्‍कोप, एचसीटी की स्‍थापना वर्ष 2000 में हुई थी और इसका दूर से संचालन 2001 में शुरू हुआ था। यह टेलीस्‍कोप तीन विज्ञान उपकरणों से युक्‍त है। ये उपकरण हैं-हिमालयन फेंट ऑब्‍जैक्‍ट, स्‍पेक्‍टोग्राफ, नियर-आईआर इमेज और ऑप्टिकल सीसीडी इमेजर। दूर से संचालन होने के कारण खगोल वैज्ञानिकों को काम करने में आसानी होती है, क्‍योंकि उन्‍हें अधिक ऊँचाई वाले स्‍थल पर जाने की आवश्‍कता नहीं पड़ती। दुनिया भर के खगोल वैज्ञानिक और अन्‍य देशों के वैज्ञानिक इसका इस्‍तेमाल कर रहे हैं।

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