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Saturday 04 May 2013 08:47:13 AM
जयपुर। उपराष्ट्रपतिएम हामिद अंसारी ने कहा है कि भारत पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मंचों में सक्रिय रहा है और 94 बहु-पक्षीय पर्यावरण समझौतों में एक पक्ष है। इन समझौतों में रामसर वेट्लेंड समझौता, वनस्पति और जीव की विलुप्त हो रही प्रजातियों में अंतरर्राष्ट्रीय व्यापार का समझौता और जैव-विविधता समझौता शामिल है, हमने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और 2002 में क्योटो संधि पर सहमति दी है। अंतरर्राष्ट्रीय पर्यावरण लेखा एवं सतत विकास केंद्र के उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन की प्रतिबद्धताओं की वजह से बाध्यता के बावजूद भारत ने 2020 तक 2005 स्तर पर सकल स्वदेशी उत्पाद के 20 से 25 प्रतिशत के बराबर उत्सर्जन में स्वैच्छिक कमी लाने के लक्ष्य की सूचना दी है। समारोह का आयोजन राजस्थान में भारत के नियंत्रक एवं महालेखाकार ने किया।
उपराष्ट्रपति ने डाक विभाग के इस अंतर्राष्ट्रीय केंद्र पर तैयार किए गए विशेष कवर को जारी किया और इस केंद्र से संबंधित प्रदर्शनी भी देखी। उन्होंने विचार व्यक्त किया कि पर्यावरण के संरक्षण और परिरक्षण पर तेजी से बढ़ते व्यय, विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौते के एक पक्ष के रूप में भारत की बढ़ती वचनबद्धताओं, पर्यावरण के ह्रास पर काबू पाने के उद्देश्य से लागू किए गए कानूनों और विनियमों और देशभर में निचले स्तर पर विभिन्न पर्यावरण से संबंधित आंदोलनों के फलस्वरूप बढ़ती पर्यावरण जागरूकता की वजह से पर्यावरण लेखा का महत्व बढ़ गया है।
हामिद अंसारी ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि पर्यावरण को अंधाधुंध मानवीय कार्रवाई से नुकसान पहुंचाने और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण को हो रहे नुकसान के असर से स्थिति गंभीर होती जा रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, पर्यावरण ह्रास और जलवायु परिवर्तन की उच्च सामाजिक और आर्थिक लागत से सभी अवगत हैं, हालांकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय लगातार इस बात पर बहस कर रहा है कि जलवायु परिवर्तन से कैसे निपटा जाए। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर बल दिया कि देशों की वास्तविक खुशहाली को नापने का सकल घरेलू उत्पाद का पैमाना पर्याप्त नहीं है और इस तथ्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है। इसमें सामान और सेवाओं के उत्पादन और खपत से पर्यावरण को हो रहे नुकसान में शामिल नहीं किया गया।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन की वृद्धि को सही तरीके से नापने के लिए पैमाने में इसे शामिल करना होगा, यह भी उतना ही सत्य है कि सतत आर्थिक विकास पर्यावरण संरक्षण पर निर्भर है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि वृद्धि और विकास के आवश्यक लक्ष्य की प्राप्ति करते हुए हम पर्यावरण का संरक्षण और परिरक्षण करें। उन्होंने कहा कि इसमें भारत के नियंत्रक एवं महालेखाकार को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है, इसकी कुछ पर्यावरण की रिपोर्टों से भारत में कचरे के प्रबंधन और जल प्रदूषण के बारे में काफी जानकारी मिली है।