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'आईआईसी जैसे मंच और अधिक प्रासंगिक'

भारत में वाद-विवाद व संवाद की व्यापक परंपरा-राष्ट्रपति

दिल्ली में भारत अंतर्राष्ट्रीय केंद्र का हीरक जयंती समारोह

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 19 April 2022 01:53:55 PM

president ramnath kovind, diamond jubilee celebrations of iic

नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भारत अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के हीरक जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा हैकि वह चाहते हैंकि पूरे भारत में कई राज्यों और छोटे शहरों में सैकड़ों आईआईसी हों, जो बहस और चर्चा के उच्च मानक स्थापित करें। राष्ट्रपति ने कहाकि जिस प्रकार आईआईसी महज एक चर्चा केंद्र नहीं रह गया है, बल्कि प्रगति में अपना योगदान दे रहा है, उसी तरह नए केंद्र भी तर्क के उपयोग के माध्यम से दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के कार्य में लगेंगे। उन्होंने कहाकि भारत में समृद्ध सांस्कृतिक आदान-प्रदान की एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा है, जिसे आईआईसी पिछले छह दशक से समृद्ध कर रहा है। राष्ट्रपति ने कहाकि जब आईआईसी की कल्पना 1958 में विचारों के आदान-प्रदान केलिए एक अंतर्राष्ट्रीय मंच के रूपमें की गई थी, तब दुनिया एक निष्पक्ष और स्थिर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था एवं दो विश्वयुद्ध के विरासत-भार से संबंधित मुद्दों का सामना कर रही थी। उन्होंने बतायाकि उभरती अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को प्रभावित करने वाली नई आकांक्षाओं केसाथ एशिया और अफ्रीका में उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, जैसाकि समकालीन दुनिया कोरोना महामारी के दौरसे गुजर रही है, यहां आईआईसी जैसे मंच और अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं।
राष्ट्रपति ने कहाकि भारत की स्वतंत्रता के तुरंत बादके दशक को नए संस्थानों द्वारा चिन्हित किया गया था, जिनमें आईआईसी शामिल था, कई प्रतिष्ठित व्यक्ति जैसे-डॉ एस राधाकृष्णन, पंडित जवाहरलाल नेहरू, जॉन डी रॉकफेलर, डॉ सीडी देशमुख, कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने इसको साकार करने में मदद की और जापान के क्राउन प्रिंस अकिहितो ने इसके अंतर्राष्ट्रीय चरित्र को रेखांकित करते हुए नवंबर 1960 में इस इमारत की आधारशिला रखी। राष्ट्रपति ने कहाकि यहभी संयोग हैकि इस वर्ष आईआईसी की हीरक जयंती है और भारत-जापान राजनयिक संबंधों के 70 वर्ष पूरे हो रहे हैं, आईआईसी के अंतर्राष्ट्रीय चरित्र कोभी इसकी इमारत के डिजाइन में एक सुंदर अभिव्यक्ति मिली है। राष्ट्रपति ने कहाकि वास्तुकार जोसेफ एलन स्टीन ने राजधानी दिल्ली में कई प्रसिद्ध इमारतों को डिजाइन किया, लेकिन लोधी गार्डन के आसपास के क्षेत्र में आईआईसी का एक अनूठा महत्व है। उन्होंने कहाकि इसकी स्थापना महिलाओं और पुरूषों द्वारा भारत के भविष्य और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की दुनिया में इसकी भूमिका की दृष्टिसे की गई थी। राष्ट्रपति ने कहाकि आईआईसी एक जीवंत लोकतंत्र के रूपमें भारत केलिए खड़ा है, जहां राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी केसाथ सौहार्द और समझ के माहौलमें बातचीत शुरू करना संभव है।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि इस संस्था के संस्थापकों में यह देखने की दूरदर्शिता थीकि आनेवाले वर्ष में क्या हो सकता है, कैसे आईआईसी एक नए राष्ट्र में विकास का हिस्सा बन सकता है और विश्व स्तरपर बहस में योगदान दे सकता है। राष्ट्रपति ने कहाकि इस तरह की बहसें समय केसाथ चलती रही हैं, 1960 के दशक की शुरुआत से केंद्र के कार्यक्रमों ने वैश्विक और राष्ट्रीय चिंताओं को प्रतिबिंबित किया है और प्रासंगिक मुद्दों पर जागरुकता पैदा करना एवं जनमत को प्रभावित करना जारी रखा है। रामनाथ कोविंद ने कहाकि भारत के भीतर और बाहर प्रमुख शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों केसाथ घनिष्ठ संपर्क के माध्यम और राजधानी में राजनयिक मिशनों केसाथ नेटवर्किंग के माध्यमसे आईआईसी देश-विदेश से विद्वानों, विचारकों और पेशेवरों को आकर्षित करता है। उन्होंने कहाकि आईआईसी में दर्शकों को संबोधित करनेवाले वक्ताओं की सूची विविध है, इसमें विचारक, कार्यकर्ता, राजनेता और राय बनाने वाले शामिल हैं। उन्होंने बतायाकि पहले के समय में पर्ल एस बक से लेकर इवान इलिच तक हैं, सूचीमें हालके दिनों में परमपावन दलाई लामा, विली ब्रांट, हेनरी किसिंजर, नोम चॉम्स्की और एरिक हॉब्सबॉम जैसी प्रख्यात हस्तियों को भी शामिल किया गया है।
राष्ट्रपति ने कहाकि महाश्वेता देवी, ओरहान पामुक और अमिताव घोष जैसे साहित्य की दुनिया के प्रख्यात नाम भी कई प्रमुख वक्ताओं में शामिल हैं, जिन्होंने यहां दर्शकों को संबोधित किया है। उन्होंने कहाकि इससे स्पष्ट हैकि आईआईसी वास्तव में एक ऐसे मंच के रूपमें विकसित हुआ है, जहां न केवल अलग-अलग विचारों को समायोजित किया जाता है, बल्कि संवाद और प्रवचन को समृद्ध करने केलिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें यह जानकर खुशी हुई हैकि आईआईसी में 'गांधी किंग मेमोरियल प्लाजा' नाम के छोटेसे बगीचे में नारायणभाई देसाई ने 2010 में एक सप्ताह केलिए गांधी कथा सुनाई थी, उन्हें यहां कई अन्य यादगार सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बारेमें बताया गया है। राष्ट्रपति ने कहाकि किसीभी संस्था के जीवन में हीरक जयंती उत्सव का अवसर होता है, आईआईसी अपने मूल जनादेश को बनाए रखने केलिए बधाई का पात्र है। उन्होंने कहाकि अपने हीरक जयंती वर्ष में आईआईसी ने विशेष रूपसे महिला संबंधित कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना चुना है, जो महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक कमलादेवी चट्टोपाध्याय की याद दिलाता है, जिन्होंने आईआईसी के निर्माणमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि वह मेरे पूर्ववर्ती डॉ राधाकृष्णन के शब्दों में-इस इमारत केलिए पहली सोड बन गई, उन्हें महात्मा गांधी को नमक सत्याग्रह में महिला प्रतिभागियों को शामिल होने केलिए प्रेरित करने केलिए जाना जाता है, वह महिलाओं में अग्रणी थीं, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के ठीक बाद चुनाव लड़ा और महिला सशक्तिकरण के संघर्ष की प्रतीक बन गईं। रामनाथ कोविंद ने कहाकि जब हम आजादी के अमृत महोत्सव केसाथ अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो महिलाओं की महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर भी प्रकाश डालें। उन्होंने कहाकि भारतीय महिलाओं के कई उदाहरण हैं, हम मॉम नामक मार्स ऑर्बिटर मिशन की निडर महिला वैज्ञानिकों को न भूलें, जिसमें महिलाएं अग्रणी थीं। राष्ट्रपति ने कहाकि अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्रमें महिला भागीदारी बहुत अधिक है और औपचारिक अर्थव्यवस्था को महिला कार्यबल को सशक्त बनाने केलिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने कहाकि महिलाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और प्रबंधन में भाग लेने केलिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं अपनी प्रतिभा एवं चुनौतियों का जवाब देनेके उनके रचनात्मक तरीकों से लाभांवित होने केलिए खड़ी हैं।
राष्ट्रपति ने कहाकि संयुक्तराष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-5 का उद्देश्य लैंगिक समानता हासिल करना और सभीको सशक्त बनाना है। राष्ट्रपति ने कहाकि हिंसा और बहिष्कार के ढांचे को खत्म करने की जरूरत है, जो महिलाओं की प्रगति को अवरुद्ध करते हैं, उनके लिए सभी रास्ते खोलने हैं, ताकि वे विविध क्षेत्रों में अपनी क्षमता का एहसास एवं उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें। राष्ट्रपति ने कहाकि सरकार ने इन वर्षों में महिला सशक्तिकरण को एक जन आंदोलन बनाने केलिए कई पहलें की हैं। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि आनेवाले वर्ष में आईआईसी में बहस और चर्चा राष्ट्रीय पहल को और अधिक प्रभावी बनाने केलिए सुझाव उत्पन्न करेगी। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत में 'वाद-विवाद' और 'संवाद' की व्यापक प्रसार परंपरा है, भारत के प्राचीन दर्शन को अक्सर अन्यत्र निर्मित सर्वोत्तम दार्शनिक कार्यों की तुलना में कहीं अधिक सूक्ष्म और मजबूत माना जाता है, आज हमें उस विरासत से फिरसे जुड़ने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने कहाकि मैंने पाया हैकि लोग विशेष रूपसे युवा अधिक जानने केलिए उत्सुक हैं-न केवल तथ्यों के संदर्भमें, बल्कि सत्य तक पहुंचने केलिए आवश्यक आलोचनात्मक सोच के साधनों के संदर्भ में भी। राष्ट्रपति ने सोली सोराबजी को भी इस संस्था में महान योगदान केलिए याद किया। समारोह में न्यासी बोर्ड, कार्यकारी समिति, आईआईसी के पूर्व और वर्तमान पदाधिकारी भी उपस्थित थे।

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