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Tuesday 19 July 2022 06:07:51 PM
मुंबई। महाराष्ट्र सरकार और अब लगभग शिवसेना से भी बेदखल उद्धव ठाकरे और उनके परिवार का राजनीतिक संकट बढ़ता ही जा रहा है। उनके बारह सांसद भी आज उनका साथ छोड़ गए। इससे उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका लगा है। उद्धव ठाकरे परिवार का कोई तंत्र-मंत्र भी काम नहीं आ रहा है। एक के बाद एक शिवसेना की सारी शक्तियां इस परिवार का साथ छोड़ती जा रही हैं। उद्धव ठाकरे परिवार पर शिवसेना से पूरी तरह से बेदखल होने का खतरा मंडरा रहा है, इसके बावजूद उद्धव ठाकरे के सलाहकार संजय राउत बड़े बोल बोलते जा रहे हैं। वे कह रहे हैंकि शिवसेना को कोई नुकसान नहीं है, लेकिन जितना उद्धव ठाकरे का नुकसान हो चुका है, उसे देखते हुए मातोश्री से शिवसेना जा चुकी है, उसमें अब उद्धव ठाकरे परिवार और उनके प्यादों के अलावा शायद ही कोई दिखाई दे। आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के बारह सांसद मीडिया के सामने आए और उन्होंने एकनाथ शिंदे की शिवसेना के नेतृत्व में अपनी गहरी आस्था व्यक्त की।
एनसीपी नेता शरद पवार और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शिवसेना और उद्धव ठाकरे परिवार को मातोश्री में सिमटाकर रख दिया और उसपर कालनेमि सदृश संजय राउत का पहरा बैठा दिया। उद्धव ठाकरे परिवार को भनक तक नहीं लगने दीकि मातोश्री से सर्वदा केलिए उनकी सत्ता निकलने वाली है, क्योंकि हालात ही ऐसे निर्मित कर दिए गए हैं। शरद पंवार और सोनिया गांधी को इस बात से कोई मतलब नहीं हैकि उद्धव ठाकरे राजनीति में मरेंगे या जियेंगे। उनका महाराष्ट्र में अपने को मजबूत करके शिवसेना और भाजपा को खत्म या कमजोर कर देने का एजेंडा था, जिसमें वो तकनीकि कानूनी भ्रम के जरिये, आखिरी सांस तक शिवसेना एनसीपी कांग्रेस गठबंधन सरकार को बचाने में लगे रहे। महाराष्ट्र की जनता के सामने उन्होंने ढाईसाल 'मै तुझे काज़ीजी कहूं और तू मुझे हाजीजी कहे' कहकर मायाजाल फैलाए रखा। वे भूल गए कि भाजपा उनकी इस रणनीति को अच्छी तरह से समझ रही है और शिवसेना के विधायकों में भी उनकी भारी उपेक्षा और अपमान के कारण अंदर ही अंदर भयंकर आक्रोश बढ़ रहा है। उद्धव ठाकरे की आंखों पर सत्ता की चर्बी ने शिवसेना को भी नहीं देखने दिया और आज यह दल भी उनके हाथ से निकल ही गया है। एकनाथ शिंदे का तीरकमान पर एकाधिकार होते ही उद्धव ठाकरे केवल मातोश्री के ही मालिक रह जाएंगे।
उद्धव ठाकरे और संजय राउत की तिलमिलाहट निश्चित रूपसे उन्हें पराभव दिखा रही है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसैनिक विधायकों ने जिस संयम से उद्धव ठाकरे और संजय राउत एवं एनसीपी नेता शरद पवार के षडयंत्रों का परिणामस्वरूप जवाब दिया वह मानना होगा। विधायकों और उनके परिवारों पर जिस प्रकार दवाब बनाए गए और शिवसैनिक विधायकों को गद्दार तक कहा गया, उसका असर शिवसैनिक सांसदों पर भी पड़ना लाजिम था। एकनाथ शिंदे कैंप का कहना हैकि शिवसैनिक सांसद तो बहुत पहले ही उद्धव ठाकरे से अलग होने को उत्सुक थे, किंतु तकनीकी रणनीतियों से यह देरी की गई है। भाजपा-शिवसेना सरकार के गठन हो जाने के बाद इस रणनीति पर तेजी से काम शुरू हुआ है और इसका पहला परिणाम यह आया है कि शिवसैनिक सांसदों ने राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस एनसीपी का साथ छोड़कर एनडीए की राष्ट्रपति प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के साथ जाने का फैसला किया है। उद्धव ठाकरे संजय राउत एवं एनसीपी नेता शरद पवार की कोई नहीं सुन रहा है। शरद पवार के पांव उखड़ते जा रहे हैं। उन्हें यह यकीन हो गया हैकि उद्धव ठाकरे से भविष्य के गठबंधन का भी कोई लाभ नहीं होगा। शिवसेना का चुनाव चिन्ह तीरकमान किसके पास रहेगा, इसकी भी जंग छिड़ चुकी है।