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Wednesday 31 August 2022 05:15:04 PM
नई दिल्ली। भारत की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर संगीत नाटक अकादमी में ‘रंग स्वाधीनता’ उत्सव मनाया गया, जो भारत को साम्राज्यवाद की बेड़ियों से मुक्त करने केलिए अपने प्राण न्यौछावर कर देनेवाले स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृतियों को संजोने का उत्सव था। यह उत्सव 27 से 29 अगस्त 2022 तक संगीत नाटक अकादमी के मेघदूत सभागार में हुआ। इस वर्ष का उत्सव इस मायने में अनूठा थाकि यह विशिष्ट रूपसे लोकगायन शैलियों पर केंद्रित था। उत्सव में भारत के नौ राज्यों की बारह टीमों और लगभग सौ कलाकारों ने हिस्सा लिया। रंग स्वाधीनता में देशभर की लोकसंगीत परंपराओं को प्रस्तुत किया गया। रंग स्वाधीनता का शुभारंभ सुभाष नगाड़ा एंड ग्रुप की प्रस्तुति केसाथ हुआ था, जिसने कहरवा तालपर अनगिनत विविधताएं प्रस्तुत कीं, इसके साथही ‘दिल दिया है, जान भी देंगे’ जैसे लोकप्रिय देशभक्ति गीतों की धुनों का संयोजन प्रस्तुत किया।
लोकप्रिय आल्हा कलाकार रामरथ पांडेय ने देवी दुर्गा का आह्वान करने केसाथ अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की और चंद्रशेखर आजाद की वीरता की गाथाओं को सुनाया। आल्हा गायन, जिसे आमतौर पर मानसून के समापन पर प्रस्तुत किया जाता है, आल्हा छंद में गाया जाता है। ढिमरयाई कलाकार चुन्नीलाल रैकवार के ‘लहर लहर लहराए तिरंगा’ गायन ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। हर ढिमरयाई नर्तकी आमतौर पर हाथमें सारंगी लेकर उसे बजाती हैं, जिसका साथ अन्य संगीतकार भी देते हैं। ढिमरयाई गीत धार्मिक, पौराणिक, सामाजिक और देशभक्ति विषयों पर आधारित होते हैं। गफरूद्दीन मेवाती ने ‘कीचक वध’ पर एक दोहा प्रस्तुत किया और फिर उसके बाद युद्धके मैदान में महाराणा प्रताप की अद्भुत वीरता का वर्णन किया। रंग स्वाधीनता उत्सव के दूसरे दिन चेतन देवांगन ने आदिवासी जीवन की मुश्किलों, बिरसा मुंडा के अदम्य साहस और झारखंड की स्थानीय देवी-देवताओं से जुड़े उत्सवों का वर्णन किया। हारमोनियम, बैंजो, ढोलक और तबला कलाकारों ने दर्शकों को मनोरंजन किया। ओग्गुकथा शब्द दरअसल 'ओगु' का अर्थ है एक डमरूकम (पेलेट ड्रम) और 'कथा', जिसका अर्थ है किस्से को आपस में जोड़कर बनाया गया है, वैसे तो ओग्गुकथा आमतौर पर मिथकों और देवताओं पर केंद्रित होती है, लेकिन गजरला कोमुरैय्या और उनके साथी कलाकारों ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक रामजी गोंड की गाथा सुनाई।
देशराज शशली और उनके साथी कलाकारों ने शहीद ऊधम सिंह के सहे गए भीषण अत्याचारों का वर्णन किया। पंजाब की ढाडी गायन परंपरा की शुरुआत गुरु हरगोबिंद ने युद्ध के मैदान में शस्त्र हाथमें उठाए वीरों केबीच बहादुरी को प्रेरित करने केलिए की थी। प्रज्ञा शर्मा और हिमांशु बाजपेयी इस तरह की गाथा सुनाने की कला में माहिर हैं और रानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा उनकी ध्वन्यात्मक आवाजों में जीवंत हो उठी। कलाकारों ने स्वतंत्रता संग्राम के नायकों पर गाथागीत प्रस्तुत किए। अंतिम दिन की प्रस्तुतियों की शुरुआत धर्मेंद्र सिंह की रागिनी गायन शैली में स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने केसाथ हुई। रागिनी एक कौरवी लोकगीत है, जो पूरे उत्तरी भारत विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बहुत लोकप्रिय है। धर्मेंद्र सिंह रागिनी गायन की कई शैलियों जैसे-आल्हा, बहारे तबील, चमोला, झूलना, सोहनी, अलीबक्श और सवैया इत्यादि में पारंगत हैं। चंदन तिवारी और साथी कलाकारों ने बिहार के लोकगीतों से देशका मान बढ़ाया। उन्होंने रघुवीर नारायण के बटोहिया से शुरुआत की और कुंवर सिंह के बलिदान केबारे में गायन प्रस्तुत किया, जिसका समापन गांधीजी पर आधारित एक कजरी और चरखागीत केसाथ हुआ।
लोक कलाकार चंदन तिवारी ने दर्शकों के अनुरोध पर एक पूरबी गाई। चंदन तिवारी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं और भोजपुरी, मगधी, मैथिली, नागपुरी, अवधी, हिंदी जैसी विभिन्न भाषाओं में लोकगीत गाने केलिए वे अत्यंत लोकप्रिय हैं। पोवाड़ा महाराष्ट्र में लोकप्रिय गाथागीत गायन की एक समृद्ध पारंपरिक शैली है। पोवाड़ा गायन ने क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी उत्पत्ति छत्रपति शिवाजी महाराज के समय से मानी जाती है। देवानंद माली और साथी कलाकारों ने शिवाजी महाराज की प्रशंसा में पोवाड़ा केसाथ प्रस्तुति की शुरुआत की और राणा प्रताप, भगत सिंह और लाला लाजपत राय को श्रद्धांजलि दी। शैलेश श्रीवास्तव ने संस्कृत, हिंदी, उर्दू, भोजपुरी, अवधी, पंजाबी, सिंधी, हरियाणवी, हिमाचली, डोगरी और मराठी भाषाओं में लोकगीत गाकर दर्शकों की प्रशंसा पाई। संगीत नाटक अकादमी के सचिव अनीश पी राजन ने कलाकारों केसाथ उत्सव को सफल बनाने वाले सभी लोगों केप्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव अमिता प्रसाद सरभाई और संयुक्त सचिव संस्कृति मंत्रालय एवं संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष उमा नंदूरी भी उपस्थित थीं।