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युद्धपोत चीता गुलदार और कुंभीर सेवा मुक्त

भारतीय नौसेना के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत!

ये युद्धपोत भारतीय समुद्री परिदृश्य पर अमिट छाप का प्रतीक

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 13 January 2024 04:09:06 PM

naval warships cheetah guldar and kumbhir decommissioned

पोर्ट ब्लेयर। भारतीय नौसेना के युद्धपोत चीता, गुलदार और कुंभीर को राष्ट्र की चार दशक की गौरवशाली सेवा केबाद 12 जनवरी 2024 को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में एक पारंपरिक नौसेना समारोह में सेवामुक्त कर दिया गया है। युद्धपोत चीता, गुलदार और कुंभीर ने भारतीय समुद्री परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है और इनका सेवामुक्त होना भारतीय नौसेना के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय के अंत का प्रतीक माना जा रहा है। इनको कार्यमुक्त करने के पारंपरिक कार्यक्रम में सूर्यास्त के समय राष्ट्रीय ध्वज, नौसेना पताका और तीन जहाजों के डीकमीशनिंग प्रतीक को अंतिम बार नीचे उतारा गया। यह कार्यक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि एकही श्रेणी के युद्धपोतों को एकही दिन एकसाथ सेवामुक्त किया गया।
आईएनएस चीता, गुलदार और कुंभीर को पोलैंड के ग्डिनिया शिपयार्ड में पोल्नोक्नी श्रेणी के ऐसे युद्धपोतों के रूपमें तैयार किया गया था, जो टैंकों, वाहनों, कार्गो तथा सैनिकों को सीधे कम ढलान वाले समुद्र तट पर बिना गोदी के पहुंचा सकते थे। इनको क्रमशः 1984, 1985 और 1986 में पोलैंड में भारत के तत्कालीन राजदूत एसके अरोड़ा (चीता एवं गुलदार) तथा एके दास (कुंभीर) की उपस्थिति में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। इन युद्धपोतों के कमांडिंग ऑफिसर के तौरपर कमांडर वीबी मिश्रा, लेफ्टिनेंट कमांडर एसके सिंह और लेफ्टिनेंट कमांडर जे बनर्जी को तैनात किया गया था। आईएनएस चीता को प्रारंभिक वर्ष के दौरान कुछ समय केलिए कोच्चि एवं चेन्नई में रखा गया था और आईएनएस कुंभीर तथा गुलदार विशाखापत्तनम में सेवा दे रहे थे। इनको अंडमान और निकोबार कमान में तैनात किया गया, जहां इन्होंने कार्यमुक्त होने तक अपनी सेवाएं दीं।
भारतीय नौसेना में ये युद्धपोत लगभग 40 वर्ष तक सक्रिय रहे और 12,300 दिन से अधिक समय तक समुद्र में रहते हुए सामूहिक रूपसे लगभग 17 लाख समुद्री मील की दूरी तय की। अंडमान और निकोबार कमान के जल स्थलचर मंच के रूपमें इन्होंने तट पर सेना के जवानों को उतारने केलिए समुद्र तट पर 1300 से अधिक अभियान संचालित किए हैं। इन युद्धपोतों ने अपनी शानदार यात्राओं के दौरान कई समुद्री सुरक्षा गतिविधियों और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत अभियानों में भाग लिया है। इनमें-आईपीकेएफ ऑपरेशन के हिस्से के रूपमें ऑपरेशन अमन और मई 1990 में भारत-श्रीलंका सीमा पर हथियारों एवं गोला-बारूद की तस्करी तथा अवैध अप्रवास को नियंत्रित करने हेतु ऑपरेशन ताशा भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल के सहयोग से चलाया गया संयुक्त अभियान था। इसके बाद इन्होंने 1997 में श्रीलंका में चक्रवात और 2004 में हिंद महासागर में सुनामी केबाद राहत कार्यों में अनुकरणीय योगदान दिया। समारोह में एयर मार्शल साजू बालाकृष्णन कमांडर-इन-चीफ अंडमान और निकोबार कमांड, वाइस एडमिरल तरुण सोबती नौसेना स्टाफ के उप प्रमुख, फ्लैग ऑफिसर पूर्व कमांडिंग ऑफिसर और तीनों जहाज के कमीशनिंग क्रू भी उपस्थित थे।

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