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Saturday 5 October 2013 08:08:58 AM
नई दिल्ली। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने यहां स्वदेशी तकनीक से तैयार जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) टीके की शुरूआत की। इस टीके को राष्ट्रीय विषाणु संस्थान-एनआईवी, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और भारत बायोटेक लिमिटेड के वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयास से विकसित किया गया है। यह टीका पूरी तरह से स्वदेशी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) का उत्कृष्ट नमूना है। यह भारत के अभिनव और आत्मनिर्भर तकनीकी केंद्र के उत्थान में एक मील का पत्थर है। परिवार कल्याण मंत्री ने राष्ट्रीय महत्व की इस परियोजना में शामिल लोगों को बधाई दी है।
स्वास्थ्य मंत्री ने एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम को भारत के लोगों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चुनौती बताया है। इस सिंड्रोम के लिए 100 से ज्यादा विषाणु और अन्य कारक उत्तरदायी हैं। तमिलनाडु के वैल्लोर में 1955 में पहली रिपोर्ट आने के साथ ही 19 राज्यों के 171 से अधिक जिलों में जापानी इंसेफेलाइटिस फैल गया। अब तक चीन से आयातित टीके का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन राष्ट्रीय कार्यक्रम की व्यापकता और त्वरित वृद्धि के लिए उसकी उपलब्धता एक मुद्दा थी। स्वदेशी तकनीक से विकसित यह टीका पिछले तीन-चार सालों के भारत के संयुक्त अनुसंधान प्रयासों के सशक्तिकरण की पुष्टि करता है। प्रभावित 171 जिलों में बर्थ कोहोर्ट प्रतिवर्ष 40 लाख है, यानी इसके व्यापक कवरेज के लिए हमें एक करोड़ खुराकों की आवश्यकता होगी।
जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक व्यापक बहुआयामी रणनीति के वास्ते मंत्री समूह की सिफारिशों की सहमति पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसके राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के लिए चार हजार करोड़ रुपये खर्च करने को मंजूरी दी है। यह कार्यक्रम संबद्ध मंत्रालय 2012-13 से 2016-17 की पंचवर्षीय अवधि के दौरान प्राथमिकता के आधार पर 60 जिलों में क्रियान्वित करेगा। इस दौरान पांच राज्यों-असम, बिहार, तमिलनाडु, उत्तर-प्रदेश और पश्चिम-बंगाल पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। जापानी इंसेफेलाइटिस टीकाकरण के तहत 171 स्थानीय जिलों में से 118 कवर किये गए हैं, जिनमें मंत्रिसमूह के चिंहित 60 जिलों में से 42 जिले शामिल हैं। इन जिलों में उत्तर-प्रदेश के 9, बिहार के 2 और पश्चिम-बंगाल के 3 जिलों में बाल रोगों के लिए गहन चिकित्सा कक्षों (आईसीयू) की स्थापना की गई है।
जेई/एईएस सिंड्रोम के रोकथाम और प्रबंधन पर बेहतर विधियों के अनुसंधान के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के मौजूदा 6 संस्थान कार्यरत हैं। इस टीके को विकसित करने का मुख्य कार्य 2008 में एनआईवी पुणे और भारत बायोटेक के बीच समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शुरू किया गया था। इसके बाद लगातार 5 साल से अधिक के कठिन परिश्रम और इसकी सभी विकास अवस्थाओं के वैज्ञानिक और चिकित्सीय परीक्षणों के दौरान, अंतत: सितंबर, 2013 में ड्रग कंट्रोलर जनरल आफॅ इंडिया (डीसीजीआई) ने इसे अपनी स्वीकृति दे दी। इस टीके को बनाने के लिए कर्नाटक के कोलार जिले में राजकीय अस्पताल में भर्ती जापानी इंसेफेलाइटिस से पीड़ित रोगी के रक्त के नमूने से अलग किया गया था।
इस अवसर पर स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव और आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ वीएम कटोच, आयुष के सचिव निलांजन सान्याल, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक जगदीश प्रसाद, भारत बायोटेक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ कृष्णा एला और पुणे तथा गोरखपुर स्थित एनआईवी शाखाओं के वैज्ञानिक उपस्थित थे।