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Saturday 12 October 2013 08:34:19 AM
लंदन। सीहोर के कथाकार पंकज सुबीर का कहना है कि प्रवासी हिंदी साहित्य किसी भी तरह से मुख्यधारा के साहित्य से कमतर नहीं है, बेशक फ़िलहाल इसकी बहुत चर्चा नहीं हो रही है, मगर इस बात का इत्मिनान रखिए कि आपकी कहानियां पाठक पहचान रहे हैं। उनका कहना है कि लेखक के लिये पाठक ही महत्वपूर्ण है, वही कहानी को ज़िंदा रखेगा। लंदन में कथा यूके के अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया है। सम्मान ग्रहण करने के बाद अपने उद्बोधन में उन्होंने यह बात कही। उन्हें यह सम्मान सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह महुआ घटवारिन एवं अन्य कहानियां के लिये दिया गया है।
उन्नीसवें अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान समारोह में सांसद विरेंद्र शर्मा, संगीता बहादुर (मंत्री-संस्कृति, भारतीय उच्चायोग), काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी एवं भारतीय उच्चायोग से पद्मजा की उपस्थिति प्रमुख थी। इस अवसर पर बर्मिंघम के डॉ कृष्ण कन्हैया को उनके वाणी प्रकाशन से प्रकाशित कविता संग्रह ‘किताब ज़िंदगी की’ के लिये पद्मानंद साहित्य सम्मान से विभूषित किया गया। दोनों लेखकों को शॉल, श्रीफल, मानपत्र एवं स्मृति-चिन्ह भेंट किया गया। पंकज सुबीर के मानपत्र का पाठ जय वर्मा ने और डॉ कृष्ण कन्हैया के मानपत्र का पाठ कथा यूके की मुंबई प्रतिनिधि मधु अरोड़ा ने किया।
कथा यूके के महासचिव एवं कार्यक्रम संचालक तेजेंद्र शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि कथा साहित्य की लोकप्रियता का एक कारण यह भी है कि इसमें लेखक आसानी से सच भी बोल लेता है और झूठ भी। उन्होंने कहा कि यह याद रहे किसी भी देश में यदि साहित्य अपना महत्व खो रहा है, तो जल्दी ही वो देश भी अपना अस्तित्व खो देगा, अच्छा साहित्य पढ़ने वाले और लिखने वाले-दोनों को बेहतर इंसान बनाता है। कार्यक्रम की शुरूआत में लॉर्ड तरसेम किंग, रॉबर्ट मैक्ग्रेगर, गौतम सचदेव, राजेंद्र चोपड़ा एवं सिरिल मैसी को एक मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी गई।
कथा यूके की संरक्षक ज़किया जुबैरी ने स्वागत भाषण दिया, जिसमें उन्होंने पंकज सुबीर की कहानी दो एकांत एवं डॉ कृष्ण कन्हैया की कविताओं पर चर्चा की और प्रवासी साहित्य पर बात करते हुए कहा कि मुझे विश्वास है कि जिसे प्रवासी साहित्य कहा जाता है, उसे अपना सही मुकाम अवश्य हासिल होगा, आज हमारे पास ऐसे महत्वपूर्ण कथाकार, कवि, नाटककार मौजूद हैं, जो भारत की मुख्यधारा के लेखकों के समक्ष आसानी से खड़े हो सकते हैं।
कार्यक्रम में भारत के कार्यकारी उच्चायुक्त डॉ विरेंद्र पॉल का संदेश उनकी अनुपस्थिति में हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी बिनोद कुमार ने पढ़ा। वंदना मुकेश शर्मा ने कृष्ण कन्हैया को एक सजग तथा जीवन मूल्यों का रक्षक रचनाकार बताया। उनके आलेख का पाठ लेस्टर की कथाकार नीना पॉल ने किया। कृष्ण कन्हैया ने सम्मान प्राप्त करने के पश्चात कथा यूके के निर्णायक मंडल का धन्यवाद किया और कहा कि मेरी कोशिश रहेगी कि मैं हिंदी की सेवा में प्रयत्नशील रहूं, ये पल मेरे लिये धरोहर के समान हैं। डॉ कविता वाचक्नवी ने पंकज सुबीर के कहानी संग्रह पर कहा कि इन कहानियों में आज के समय की विद्रूपताएं सामने आई हैं, पंकज सुबीर एक सशक्त कथाकार हैं, भाषा एवं शिल्प पर स्थानीयता का प्रभाव भी उनकी कहानियों में देखने को मिलता है।
लंदन में नेहरू केंद्र की निदेशक संगीता बहादुर ने भरोसा दिलाया कि हिंदी को भविष्य की भाषा बनने से कोई नहीं रोक सकता, तेजेंद्र शर्मा और कथा यूके ब्रिटेन में हिंदी का परचम थामें हुए हैं। पद्मजा ने कहा कि कहानी पर पाठक का अधिकार होता है, साहित्य का मुख्य मक़सद मनुष्य की अंतर-आत्मा को ऊपर उठाना है। सांसद विरेंद्र शर्मा ने कहा कि ब्रिटेन में हिंदी के लिये बहुत अच्छा काम हो रहा है, हिंदी हमारे मुल्क़ की भाषा है और हमें उस पर गर्व है। उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि पंकज सुबीर यहां से कुछ सुनहरी यादें साथ ले कर जाएंगे। वक्ताओं ने कथा यूके की हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी साहित्य की प्रतिभाओं का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान बढ़ाने के लिए सराहना की।
संस्था के अध्यक्ष कैलाश बुधवार ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर मोहन राणा, विजय राणा, दिव्या माथुर, उषा राजे सक्सेना, डॉ कृष्ण कुमार, कादंबरी मेहरा, अरुण सभरवाल, साथी लुधियानवी, शिखा वार्ष्णेय, डॉ श्याम मनोहर पांडेय, केबीएल सक्सेना, डॉ महिपाल वर्मा, रमा जोशी, स्वर्ण तलवाड़, परवेज़ मुज़्ज़फ़र, नरेंद्र ग्रोवर, सुरेंद्र कुमार, आदि साहित्यकार और बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित थे।