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भारत-चीन का सीमा प्रश्न बहुत जटिल-मनमोहन

चीन यात्रा से पहले प्रधानमंत्री की चीनी मीडिया के साथ बातचीत

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Thursday 24 October 2013 08:30:04 AM

manmohan singh

नई ‌दिल्‍ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि भारत और चीन के बीच सीमा प्रश्न बहुत जटिल और संवेदनशील है, सीमा प्रश्न के हल के लिए हमने विशेष प्रतिनिधित्व तंत्र स्थापित किया है, ये विशेष प्रतिनिधित्व अथक मेहनत के बाद राजनीतिक मानदंड तय कर पाया है और सीमा विवाद निपटारे के लिए नियम के दिशा निर्देश दे रहा है। उन्‍होंने कहा कि समझौते की बातचीत के वर्तमान चरण में विशेष प्रतिनिधि सीमा विवाद निपटारे के लिए संरचना बना रहे हैं, मैं दोनों ओर के विशेष प्रतिनिधियों के काम का समर्थन करता हूं, यह कोई आसान मुद्दा नहीं है, इसे सुलझाने में समय लगेगा। यह बात प्रधानमंत्री ने चीन की राजकीय यात्रा से पहले भारत में चीनी मीडिया के साथ बातचीत में कही है। उनसे चीनी मीडिया का प्रश्‍न था कि भारत और चीन के बीच सीमा रक्षा सहयोग की संभावना पर उनके क्या विचार हैं और विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा वार्ता का आप कैसे मूल्याकंन करेंगे?
प्रधानमंत्री ने अपना उत्‍तर जारी रखते हुए कहा कि इस बीच भारत और चीन की सरकारें भारत-चीन सीमा क्षेत्र में शांति बनाये रखने के लिए दृढ़ संकल्प हैं, हमारे द्विपक्षीय समझौतो की वृद्धि और प्रगति के लिए यह एक महत्वपूर्ण गारंटी और मूल आधार है, इस मुद्दे पर दोनों देशों के नेतृत्व की एक राय है, हम 1993,1996 और 2005 के समझौते में तय किये गये सिद्धांतों और प्रक्रिया का पालन करेंगे और भारत की बदलती वास्तविकताओं के हिसाब से जहां आवश्यक हो उनमें सुधार और विस्तार करते रहेंगे और साथ ही सीमा पर तैनात टुकड़ियों के बीच मित्रवत व्यवहार और बातचीत को बढ़ावा देंगे। उन्‍होंने कहा कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि नेताओं के बीच रणनीतिक सामंजस्य धरातल पर परिलक्षित होगा।
उनसे एक प्रश्‍न था कि क्या वे भारत और चीन के बीच क्षेत्रिय व्यापार प्रबंध (आरटीए) की बातचीत में हुई प्रगति बताएगें? प्रधानमंत्री का जवाब था कि हमने अपने वाणिज्यिक मंत्री से कहा है कि वो इस बारे में पता लगायें, इसके लिए कुछ साल पहले कुछ अध्ययन कराए गए थे, ये पक्की बात है कि वाणिज्य मंत्री इस विचार पर लगातार बातचीत करेंगे, इसके साथ ही मुझे ईमानदारी से यह भी कहना पड़ेगा कि भारत और चीन के बीच व्यापार के बढ़ते घाटे को लेकर हमारे उद्योग जगत में गहरी चिंता हैं, जब स्थितियां और अधिक अनुकूल होंगी तब व्यापार और अधिक बराबर का होगा, तब दोनों देशों के बीच आरटीए और एफटीए पर बातचीत करना हमारे लिए अधिक सहज होगा।
अधिक से अधिक चीनी कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं, कुछ स्‍थानीय सरकारें भी चीनी निवेश को आकर्षित करना चाहती हैं, क्‍या केंद्र सरकार इस साल या अगले साल चीनी औद्योगिक जोन के निर्माण के लिए कुछ करेंगी ? इस सवाल पर उनका कहना था कि भारत, चीन के साथ व्‍यापार में अरक्षणीय असंतुलन का सामना कर रहा है, बड़े पैमाने पर चीन से सीधे विदेशी निवेश को आकर्षित करना व्‍यापार घाटे से उभरने के लिए भारत एक रास्‍ता हो सकता है, हमें खुशी है कि और अधिक चीनी व्‍यापार संघ निवेश के लिए भारत की ओर देख रहे हैं, मई 2013 में भारत की यात्रा पर आये प्रधानमंत्री ली किक्यांग ने सुझाव दिया था कि हमें भारत में चीनी औद्योगिक पार्क बनाने के विकल्‍प पर विचार करना चाहिए, जिससे चीनी कंपनियां और चीनी व्‍यापार संघ एकत्र हो सकें, हम इस विचार का स्‍वागत करते हैं, हाल ही में एक चीनी प्रतिनिधिमंडल भारत की यात्रा पर आया था और उसकी हमारे संबद्ध अधिकारी से अच्‍छी बातचीत हुई थी, हमने उन्‍हें चीनी औद्योगिक पार्क बनाने के लिए कुछ संभावित जगह भी दिखाई थी, हम चीन के साथ इस विचार के क्रियान्‍वयन के लिए मिलकर काम करेंगे।
चीन के नये नेतृत्व के लिए आपका क्या संदेश है, आपकी पहली चीन यात्रा को 5 साल से भी अधिक समय हो चुका है, आपकी अगली चीन यात्रा से आपको क्या उम्मीदें हैं? प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 9 सालों से मैं प्रधानमंत्री हूं, मैंने भारत-चीन संबंधों को स्थायी वृद्धि के मार्ग पर लाने का प्रयास किया है, चीनी नेतृत्व के साथ काम करते हुए हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए मेरा प्रयास आगे देखने का मुद्दा बनाने का रहा है, जैसे कि भारत और चीन दोनों ही समृद्ध हुए हैं, हमारे आर्थिक आदान-प्रदान में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है, हमने अपने मतभेदों को सुलझाया है और सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखी है, इसके साथ ही साथ हमने मतभेदों को विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ते सहयोग के रास्ते में अड़चन नहीं बनने दिया, हमारे संबंधों में स्थायित्वता और पुर्वानुमेयता अमूल्य सिद्ध हुई है, क्योंकि चीन और भारत दोनों ही अपनी आंतरिक प्राथमिकताओं विशेषकर 2.5 बिलियन लोगों के विकास और वृद्धि पर ध्यान दे रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि आर्थिक संकट और वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट की घटनाएं, मेरी 5 वर्ष पहले हुई चीन यात्रा के बाद हुईं, आज भी वैश्विक आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के बावजूद भारत और चीन धीरे ही सही, लेकिन लगातार वृद्धि कर रहे हैं, चीन में अब नई सरकार बनी है, राष्ट्रपति शी और प्रधानमंत्री ली के साथ मेरी बैठक हो चुकी है, अपनी इस यात्रा मैं इस नेतृत्व को और अच्छी तरह जानने और द्विपक्षीय संबंधों में चौतरफा प्रगति को समेकित करने के लिए उनके साथ काम करने और उन्हें स्थायी वृद्धि के दृढ़ प्रक्षेप पर लाने की उम्मीद करता हूं।
मनमोहन सिंह से एक यह प्रश्‍न हुआ कि जब चीन के प्रधानमंत्री ली किक्यांग मई में भारत की यात्रा पर आये थे तो दोनों देशों की सरकारें बीसीआईएम आर्थिक गलियारे के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए राज़ी हुई थीं, भारत सरकार बीसीआईएम आर्थिक गलियारे के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए क्‍या करेगी ? उनका उत्‍तर था कि देशभर में आर्थिक और ढांचागत विकास के संतुलन के लिए भारत क्षेत्रीय संयोजकता को बढ़ावा दे रहा है और साथ ही साथ दक्षिण एशिया सहित पड़ोसी देशों के साथ एकीकरण को भी गति प्रदान कर रहा है, हमारा मानना है कि बीसीआईएम आर्थिक गलियारा वर्तमान संयोजकता के लिए की गई पहल को बल देने में समर्थ है, हमने प्रधानमंत्री ली किक्यांग की भारत यात्रा के दौरान इस विचार के सिद्धांत के लिए सहयोग की बात कही थी, इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए हमें सबसे पहले बांग्‍लादेश और म्‍यांमार का सहयोग प्राप्‍त करना होगा और इस प्रकार के गलियारे के विभिन्‍न व्‍यवहारिक तत्‍वों, इसके कोष निधि, सदस्‍य देशों की जिम्‍मेदारी, आर्थिक सामर्थ्य, हल्‍की फुल्‍की ढांचागत जरूरतें इत्‍यादि का इकट्ठे से अध्‍ययन करना होगा, सभी चार देशों के संयुक्‍त अध्‍ययन समूह के गठन (जेएसजी) के लिए प्रधानमंत्री ली किक्यांग की यात्रा के दौरान हुए समझौते के अनुसार हमने संयुक्‍त अध्‍ययन समूह (जेएसजी) के लिए भारत के घटक को स्‍थापित किया है और भारत इसके लिए विचार-विमर्श में पूरे उत्‍साह से भाग लेगा।
ब्रिक्‍स के कार्य ढांचे के लिए भारत चीन सहयोग की संभावना और ब्रिक्‍स विकास बैंक के लिए भारतीय मुद्रा क्रियान्‍वयन की प्रगति के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्‍होंने कहा कि महत्‍वपूर्ण सार और गहनता प्राप्‍त कर चुके ब्रिक्‍स सहयोग को भारत और चीन सहित इसके अन्‍य अलग-अलग सदस्‍यों के द्विपक्षीय संबंधों से बल मिलता है, शहरीकरण, कृषि, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं, विज्ञान और तकनीक सहयोग के ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें ब्रिक्‍स के तहत भारत और चीन सक्रिय हैं, यह संतुष्टि की बात है कि दिल्ली में मार्च 2012 में हुए सम्मेलन में पहली बार ब्रिक्‍स विकास बैंक के विषय पर विचार किया गया और उसने महत्वपूर्ण प्रगति की है, मुख्य मुद्दों पर भी सहमति बन चुकी है, आशा है कि, अगले सम्मेलन से पहले ब्रिक्‍स तकनीकी विशेषज्ञ बाकी बचे मुद्दों को भी सुलझा लेंगे और नये विकास बैंक की स्थापना ब्रिक्‍स के दूसरे विकासशील देशों के दीर्घकालीन ढांचागत वित्तीयन के घाटे से संबंधित चुनौतियों से निपटने तथा एक दूसरे को सहायता करने की सामूहिक क्षमता का संकेत है, ब्रिक्‍स की अन्य महत्वपूर्ण पहल है, आकस्मिक आरक्षित प्रबंधन, जोकि हमारे देशों के बीच व्यापार बढ़ाने में सहायता करेगा।
उच्च गति रेलवे (एचएसआर) के क्षेत्र में चीन ने बहुत कुशलता और अनुभव संचित किया है और थाइलैंड के साथ सहयोग प्रारंभ किया है, भारत की एचएसआर के विकास के लिए क्या योजना है और द्विपक्षीय सहयोग के इसे कैसे फायदा होगा? प्रश्‍न पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें चीन के एचएसआर के बारे में जानकारी है, भारत एचएसआर से संबंधित तकनीकी आर्थिक अध्ययन पर काम कर रहा है, वर्तमान चरण में एचएसआर के निर्माण को लेकर अभी हमने कोई निर्णय नहीं लिया है, हांलाकि भारत और चीन के रेलवे प्राधिकरण के सदस्य एक दूसरे के संपर्क में हैं और स्टेशनों के विकास, भारी माल ढुलाई, और वर्तमान रेल पटरियों पर यात्री गड़ियों की गति को बढ़ाने को लेकर सहयोग पर विचार कर रहे हैं। प्रश्‍न:-5 पिछले 10 सालों में भारत-चीन संबंधों में बहुत अधिक विकास हुआ है।

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