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Thursday 28 November 2013 04:21:01 AM
पणजी। गोवा में 44वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में मीडिया के साथ विचार-विमर्श में तमिल फिल्म थंगामीन्गल (सोने की मछली) के निर्देशक और अभिनेता श्रीराम ने कहा है कि नवोदित निदेशकों की बनाई गई अच्छी कथावस्तु वाली फिल्मों को उचित मंच मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी फिल्म थंगामीन्गल पिता-पुत्री के रिश्तों को दर्शाती है और यह दिखाती है कि किस प्रकार वर्तमान शिक्षा प्रणाली उनकी साधारण ज़िंदगी को प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि 1992 के बाद शिक्षा के निजीकरण के वजह से कई निजी शैक्षणिक संस्थाएं पनप आई हैं, जिनकी वजह से शिक्षा पूरी तरह कारोबार बन कर रह गयी है।
इसी विचार-विमर्श के दौरान मराठी फिल्म तपाल (पत्र) के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने कहा कि उनकी फिल्म एक डाकिए की ज़िंदगी के गिर्द घूमती है, जो एक छोटे ग्रामीण समुदाय की सेवा करता है। फिल्म उसके जीवन के दो दिनों पर आधारित है, जो उसके परिवार की ज़िंदगी का रूख मोड़ देते हैं। उन्होंने कहा कि डिजीटल क्रांति के इस युग में हम सभी उपकरणों के दास बन चुके हैं और हमें जोड़ने वाले माध्यम डाकिए को भुला चुके हैं।
बांग्ला फिल्म फोरिंग के निर्देशक इंद्रनील राय चौधरी ने अपनी फिल्म के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि उसमें किशोरावस्था की वे जटिलताएं दर्शाइ गई हैं, जिनसे किसी बच्चे को गुजरना पड़ता है। उन्होंने कहा कि उनकी फिल्म में गुरू शिष्य संबंध तथा वास्तविक जीवन में संभावनाओं की तलाश भी दर्शाई गई है।