माजिद मुश्ताक पंडित
Sunday 29 December 2013 06:15:49 AM
श्रीनगर। मुगल काल का भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। उनका प्रभाव संस्कृति, परंपरा, जीवनशैली, धर्म, प्रबंधन और सामाजिक-राजनीतिक संरचना पर भी दिखलाई देता है। इस काल का योगदान ऐतिहासिक स्मारकों पर भी अपनी पूर्ण विशिष्टता में पड़ा है। मुगलों ने उपमहाद्वीप में संपर्क मार्गों के रूप में सड़कों के निर्माण में भी भरपूर योगदान दिया। मुगल साम्राज्य का आविर्भाव हिंदू कुश से हुआ था। उस काल के महत्वपूर्ण संपर्क मार्गों में से एक पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला से होकर गुजरता है। मुगल शासक अकबर और उनके पुत्र बादशाह जहांगीर नियमित तौर पर इस खूबसूरत घाटी से गुजरते थे।
कई शताब्दियों के बाद, जम्मू कश्मीर सरकार ने 2005 में कश्मीर जाने वाले विस्मृत मार्गों का पुनर्निर्माण शुरू करवाया, जिन्हें मुग़ल शासक कश्मीर जाने के लिए प्रयोग करते थे। इन मार्गों के पुनर्निर्माण से कश्मीर घाटी के पुंछ और राजौरी जिलों के बीच दूरियां कम होंगी। इस मार्ग का नवीनीकरण अंतिम चरण में है। परियोजना के पूरा होने से मुगल काल की ऐतिहासिक विस्मृत धरोहर और खूबसूरत निर्माण तक पुन: पहुंच बन सकेगी। इससे मुगल शासकों के अनेक स्मारकों तक पर्यटकों की पहुंच होगी, जिससे इस मार्ग का निर्माण प्रासंगिक बन जाएगा। इन स्मारकों में पीर की गली, नूर महल का किला, महल किला, अनयतपूरा की सराय, धानीधर किला, शालीमार पार्क, नैनसुख सराय, सेज सराय, थान मंडी किला और सराय, डेरा गली किला, नौरीचंब और अलियाबाद सराय, शादीमार्ग सराय और चिनगुस सराय एवं अन्य महत्वपूर्ण स्थान हैं। इनमें से अधिकांश स्मारकों का प्रयोग मुगल शासक यात्रा के दौरान ठहरने के लिए करते थे।
सराय कम समय के लिए ठहरने का स्थान समझी जाती है, लेकिन इन स्मारकों में से अधिकांश की संरचना से मुगल शासकों के भव्यता प्रेम का पता चलता है। हालांकि मुगल शासन के पतन से यह स्थल शताब्दियों के लिए भुला दिये गये। जब ताज महल की मंत्र मुग्ध कर देने वाली सुंदरता को नज़र अंदाज नहीं किया जा सका, तब इन स्मारकों को किस तरह भुलाया जा सकता है? इनमें से हर एक स्मारक की मनोरंजक कथा है। ऐसा ही एक दिलचस्प स्थल मुगल कालीन मार्ग के निकट निर्जन प्रदेश में स्थित चिनगुस सराय है। इसे ईरान के एक आर्किटेक्ट ने बादशाह जहांगीर के शासन काल में बनाया था। यह सराय जम्मू शहर से 130 किलोमीटर दूर नौशेरा और राजौरी के बीच है। मुगल शासन के दौरान लगभग 200 वर्षों तक यह सराय मुगल कारवां के ठहरने के उपयुक्त स्थान के रूप में बनी रही। अपनी बनावट और संरचना से यह सराय अपने महत्व को स्थापित करती है। चिनगुस शब्द पारसी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है-गुत या आंत।
सन् 1627 में मुगल शासक जहांगीर जब राजौरी के खानपुर गांव से गुजर रहे थे, तब वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गये और चल बसे। बादशाह के साथ उपस्थित रानी नूरजहां ने उत्तराधिकार की संभावित लड़ाई से बचने के लिए इस खबर को छिपाने का फैसला किया। यह तय हुआ कि मृत शरीर को लाहौर में दफनाया जाएगा। बादशाह जहांगीर के शव को यात्रा के दौरान खराब होने की संभावना से शरीर से विसरा अलग करने और यात्रा शिविर के पास ही दफनाने का निर्णय लिया गया। शरीर के भीतरी भाग को दफनाने के बाद ही इस सराय का नाम चिनगुस पड़ गया, तब से ही खानपुर गांव को चिनगुस नाम से जाना जाता है। बादशाह की मौत को छिपाने के लिए शव को एक हाथी पर रख दिया गया और दफनाने के लिए लाहौर ले जाया गया। ऐसी धारणा है कि जिस डॉक्टर ने मृत शरीर से विसरा निकाला था, उसे भी सराय में ही दफना दिया गया था।
चिनगुस सराय के बीचों-बीच एक छोटी मस्जिद है। मस्जिद के मार्ग में स्थित एक गलियारे में बादशाह की कब्र पर एक संगमरमर का गुंबद बनाया गया है। मुख्य द्वार से प्रवेश करने के बाद यह भव्य संरचना एक विशेष अहसास दिलाती है। अपनी हाल की यात्रा के दौरान मैंने अनुभव किया कि मोटी ईटों से निर्मित यह स्थल एक भव्यता को समेटे है। मुगल शासकों के कारवां को ठहराने का स्थल एक शानदार माहौल बनाता है। स्थल की संरचना से ही गौरव का अनुभव होता है। किले की संरचना में बड़ी-बड़ी सेनाओं के ठहराने की व्यवस्था, अनेक घुड़शाला और भोजन स्थल इन ईटों की दीवारों के पीछे छिपे हैं। धीमी गति से ही सही अधिकारियों ने इस शाही सराय के महत्व को पुनर्जीवित करने का काम शानदार ढंग से पूरा किया है और इस प्राचीन मार्ग पर स्थित अन्य स्मारकों का जीर्णोंद्धार किया है।
जम्मू कश्मीर सरकार ने 1984 में चिनगुस सराय को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित किया था। सरकार अब तक 93.80 करोड़ रुपये इसके नवीनीकरण और संरक्षण कार्यों पर खर्च कर चुकी है और शेष कार्यों को जल्द निपटाने का प्रयास किया जा रहा है। पर्यटन विभाग ने 1990 की शुरुआत में सराय के पास कुछ झोपड़ियों का निर्माण कराया था। इनका प्रयोग पर्यटकों के लिए नहीं किया जा रहा है। पर्यटकों की रूचि बढ़ने के साथ ही संबंधित अधिकारी इस स्थल के प्राचीन गौरव को वापस लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर पर्यटक विकास निगम ने पर्यटकों की रूचि बढ़ाने के लिए कारवां पर्यटन योजना शुरू की है, जिससे मुगल कालीन मार्ग के ऐतिहासिक गौरव को लौटाया जा सके।