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सामाजिक समरसता बढ़ाएं-सह सर कार्यवाह

कानपुर में सामाजिक एकता पर गोष्ठी में ‌हिंदू चिंतन

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Tuesday 31 December 2013 06:50:50 AM

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कानपुर। बीएनएसडी शिक्षा निकेतन कानपुर में सामाजिक समरसता मंच ने एक गोष्ठी का आयोजन किया। इसका उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल एवं क्षेत्र संघ चालक डॉ ईश्वर चंद्र गुप्त ने भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्वलित करके किया। गोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाह डॉ गोपाल कृष्‍ण ने अपनी बात इस तरह रखी-यूनान, मिश्र, रोम सब मिट गये जहां से, पर बात कुछ है हस्ती मिटती नहीं हमारी।
उन्होंने कहा कि पिछले 3 हजार वर्ष में हमारे यहां भी बहुत सी समस्याएं आई हैं, वेदों में किसी को अछूत नहीं माना गया है, हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, हम सबके अंदर परमात्मा है, परमात्मा कभी छोटा बड़ा नहीं हो सकता, सब समान हैं, यह जैन, बौद्ध आदि सभी संप्रदायों में कहा गया है। उन्होंने कहा किलगभग 3 हजार साल से हम आक्रमण झेल रहे हैं, बाहर से आने वाले लोग सबको समान नहीं मानते हैं, कई आक्रमणकारियों ने अपने मत को हम पर थोपने की कोशिश की।
डॉ कृष्ण गोपाल ने कहा कि तेरह सौ वर्ष पूर्व हमने गौ मांस खाने वाले लोगों को अछूत मानना शुरु किया, इसी कारण विदेश जाने से भी लोग घबराने लगे थे। महात्मा गांधी ने जब विदेश पढ़ने जाने का निर्णय लिया, तो उनका काफी विरोध हुआ था, उन्हें जहाज तक छोड़ने के लिए आने पर जुर्माना भरना पड़ा था, विदेशी शासकों ने भ्रमित कर हमारी प्रथा को कुप्रथा में बदल दिया, हमारे देश में आज सामाजिक समरसता के प्रयासों को और अधिक गति देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने अपने आश्रम में बीमार दलित छात्र की उल्टी अपने हाथों में ले ली थी, इसी प्रकार मालवीय जी ने काशी में दलितों को दीक्षा देना प्रारंभ किया, काशी में इसका बहुत विरोध भी हुआ, घाट तक पहुंचने के लिए एक घंटे का रास्ता वो 6 घंटों में तय कर पाये। उन्होंने कहा कि मुसलमानों से बचने के लिए हमारे यहां बाल विवाह एवं बहु विवाह प्रारंभ हुआ था, ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने इसका विरोध किया, उनके इस प्रयास का भी काफी विरोध हुआ, पहले हिंदुओं का विवाह दिन में होता था, लेकिन मुसलमानों के अत्याचार से बचने के लिए ये विवाह रात में होने लगे।
डॉ कृष्ण गोपाल ने कहा कि ऋगवेद की रिचाएं देने वाली 29 महिलाएं थीं, हमें यदि अपने को सबल बनाना है, तो उसके लिए भेदभाव खत्म कर एक होना होगा, हमारा परमात्मा एक है, वह सबके अंदर है। इसके उपरांत जिज्ञासा समाधान सत्र में लोगों ने समाज में फैली भ्रातियों के बारे में जानकारी हासिल की। गोष्ठी की प्रस्तावना वासुदेव वासवानी ने रखी। कार्यक्रम में अनिल जैन, गीता निषाद, कृष्ण लाल सुदर्शन, स्वामी चंद्रेश्वरानंद, योगेंद्र सचान आदि ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन डॉ अरविंद ने किया। गोष्ठी में प्रमुख रुप से काशीराम, आनंद, ज्ञानेंद्र सचान, भवानी भीख आदि उपस्थित थे। 

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