श्यामा प्रसाद कोनेरू
Wednesday 1 January 2014 03:59:46 PM
नई दिल्ली। भारत सरकार जन-औषधि अभियान में सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रम के अंतर्गत आम जन को किफायती कीमत पर बढ़िया दवाएं उपलब्ध कराने के लिए समर्पित दुकानें खोल रही है। यह जेनेरिक औषधियों को बाजार में आसानी से उपलब्ध कराने के सीधे हस्तक्षेप की नीति का एक अंग भी है। इस अभियान के अंतर्गत एक प्रमुख पहल जन-औषधि स्टोर खोलने के जरिए की गई है, जहां क्षमता और प्रभावशीलता के अर्थों में बढ़िया औषधियां, जो उनसे ज्यादा ब्रांड वाली औषधियों के मुकाबले सस्ते दामों पर बेची जाती हैं। यह जानने के लिए कि जेनेरिक औषधियां क्या हैं, हमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तरफ रूख करना होगा, जिसने जेनेरिक औषधियों को ऐसा औषधि विज्ञान का उत्पाद बताया है, जिसे किसी कंपनी से लाइसेंस लिए बिना तैयार किया और बेचा जा सकता है।
शर्त ये होगी कि पेटेंट की तारीख और अन्य एक्सक्लुसिव राइट्स खत्म हो चुके हों। इन जेनेरिक औषधियों पर वही विनियम लागू होते हैं, जो पेटेंट की हुई या ब्रांड वाली समान औषधियों के उत्पादन, पैकेजिंग, टेस्टिंग और गुणवत्ता संबंधी मानकों पर लागू होते हैं। इनकी क्षमता, मात्रा, वांछित उपयोग, सुरक्षा, प्रशासन का तरीका, प्रदर्शन के लक्षण और क्वालिटी हर तरह से वही होती है। आमतौर पर पेटेंट करवाई गई ब्रांड वाली दवाओं की कीमत ज्यादा होती है। कारण यह है कि इनके उत्पादन में थोड़े समय के लिए एकाधिकार होता है, जो उन्हें पेटेंट के कानून से मिलता है। ये दवाएं अगर बाजार में बिना पेटेंट अधिकार के उपलब्ध हैं, तो इन्हें विभिन्न दवा कंपनियां, कंपनी के दिए नाम या अलग ब्रांड से बेचती हैं। बाजार में स्पर्धा के कारण ये काफी सस्ती होनी चाहिए, क्योंकि विभिन्न उत्पादक इन्हें बेचते हैं। सामान्य तौर पर इनको साल्ट नेम अथवा केमिकल के नाम से जाना जाता है और कैमिस्ट, औषधि वैज्ञानी इन्हें इन्हीं नामों से पुकारते हैं।
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्यचर्या की लागत कर्जदारी का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा कारण है। स्वास्थ्यचर्या की लागत का दूसरे नंबर का बड़ा घटक दवाओं की कीमत होता है। योजना आयोग के अनुमानों के अनुसार, भारत में दवा की कीमतें कुल इलाज के खर्च के 50 से 80 प्रतिशत के बीच हैं। अस्पताल में बिना भर्ती हुए बाहर से इलाज कराने पर भारत के निजी अस्पतालों में साठ प्रतिशत लोग अस्पतालों में मौजूद दवा भंडारों से दवाएं खरीदते हैं। गरीब लोगों के एक बड़े भाग के लिए इस वर्ग की दवाएं खरीदना खर्चीला पड़ता है, क्योंकि ये दवाएं जेनेरिक दवाओं के मुकाबले बहुत महंगी पड़ती हैं। भारत में अन्य देशों के मुकाबले जेनेरिक दवाओं की कीमतें बेहतर रखी जाती हैं। इसका कारण यह है कि औषधि उत्पादक इन दवाओं को अन्य जेनेरिक दवाओं के साथ अपने ब्रांड नाम पर बेचते हैं। ये ब्रांड नाम औषधि गुणों में अच्छे होते हैं। बाजार में इस असंतुलन के कारण बड़े पैमाने पर देश के लोगों के रहन-सहन के खर्च पर असर पड़ता है। यही कारण है कि इनके समान जेनेरिक दवाओं की जरूरत महसूस की गई।
जन-औषधि अभियान के अंतर्गत जेनेरिक दवाओं की कीमतों से लाभ इस प्रकार हैं-इस अभियान का उद्देश्य यह है कि हर व्यक्ति के इलाज के खर्च की यूनिट में तुरंत कमी आएगी और गरीब लोगों की जेनेरिक दवाओं में पहुंच बढ़ेगी। जरूरत इस बात की है कि जेनेरिक दवाओं की प्रभावशीलता के बारे में लोगों को जागरूक बनाया जाए, उनमें विश्वास जगाया जाए और इस प्रकार की दवाओं की उपलब्धता बढ़ायी जाए, ताकि जब भी जरूरत हो, लोग इन्हें प्राप्त कर सकें। लोगों को पर्याप्त मात्रा में स्वास्थ्यचर्या दिलाना इस अभियान का उद्देश्य है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए रसायन और उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार ने नवंबर 2008 में औषधि विज्ञान विभाग के तत्वावधान में एक मामूली सी शुरूआत की थी। तब अमृतसर में पहला जन-औषधि स्टोर खुला। अब इस अभियान में सुधार किए जा रहे हैं और इसकी संभावित क्षमता से लाभ उठाया जा रहा है।
विभिन्न राज्यों/ संघशासित प्रदेशों में करीब 100 स्टोर चल रहे हैं। लगभग 500 स्टोर इस वित्त वर्ष के आखिर तक खोले जाने हैं। यही नहीं, अगले तीन वर्षों में इस अभियान से ज्यादा लोगों को लाभान्वित करने के लिए 2500 स्टोर और खोलने की योजना है। इन स्टोरोंमें उपलब्ध दवाओं की किस्में बढ़ायी जा रही हैं और इनमें हर प्रकार के इलाज की दवाएं मिलेंगी। इन पर गुणवत्ता के बहुत सख्त मानक लागू किये जा रहे हैं। जेनेरिक दवाओं के बारे में एक व्यापक जन-चेतना और जन-प्रचार अभियान शुरू होने वाला है। इसके जरिए लोगों का जेनेरिक दवाओं के बारे में रवैया बदला जाएगा और डॉक्टरों तथा औषधि वैज्ञानिकों से अनुरोध किया जाएगा कि वे सिर्फ जेनेरिक दवाएं ही तजवीज़ करें। एक वेबसाइट www.janaushadi.gov.in और एक टोल फ्री हेल्पलाइन (1800 180 8080) भी शुरू की गई है। इनके जरिए ग्राहकों को शिक्षा, सेवा और समर्थन बढ़ाया जाएगा। ऑनलाइन जेनेरिक ड्रग खरीदने का एक पोर्टल भी आज़माइश के तौर पर शुरू किया जाएगा।
इस बीच, कुछ राज्य सरकारों ने भी इस मामले पर ध्यान दिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने सरकारी क्षेत्र के डॉक्टरों से अनुरोध किया है कि वे जेनेरिक दवाएं तजवीज़ करें, लेकिन ब्रांड नाम न लिखें। इसे 1 दिसंबर 2013 से शुरू किया जाना था। ऐसे कदमों से देश के गरीब लोगों को मदद मिलेगी। वर्तमान औषधि निर्माण उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है। इसके अलावा सरकार ने जन औषधि अभियान के अंतर्गत जेनेरिक औषधियों को प्रोत्साहन देने का काम शुरू किया है। इस अभियान से औषधि उद्योग को भी कुल मिलाकर लाभ होगा, क्योंकि यह ग्राहक चेतना के जरिए बाजार का आधार भी विकसित करता है। बड़े पैमाने पर प्राइवेट उत्पादकों से भी इस अभियान के लिए दवाएं खरीदें जाने का प्रस्ताव है। जन औषधि अभियान, अगर इसके नीतिगत उद्देश्य पूरे करने में सफल रहा, तो एक ऐसा आदर्श बन सकता है, जो दुनिया के अन्य देशों के लिए भी जन-सामान्य को किफायती दरों पर अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्यचर्या दिलाएगा।