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झारखंड में देखे गए पक्षीराज गरुड़ के वंशज

भगवान श्रीराम को बचाने वाला गरुड़ आज खुद संकट में

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 17 January 2014 02:10:17 PM

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रांची। भगवान श्रीराम और लक्ष्‍मण की विषधर सापों से रक्षा करने वाले और आकाश पर उन्‍मुक्‍त एवं स्‍वच्‍छंद उड़ान भरने वाले अदम्‍य साहसी और जांबाज शिकारी पक्षीराज गरुड़ भारत में भी लुप्‍त होते जा रहे हैं। दुनिया के कई देशों में तो वे लगभग लुप्त हो ही चुके हैं, मगर पिछले दिनों सुनने को मिला कि एक जीव विज्ञानी ने दावा किया है कि उसने और उसके शोधार्थियों ने झारखंड में बोकारो के पेटरवार विकास खंड के उतासारा गांव में बरगद पर एक नहीं गरुड़ के कई परिवार देखे हैं। गरुड़ की विशेषता यह है कि वह एक जांबाज शिकारी है और अपनी मौजूदगी से हर किसी का ध्‍यान खींच लेता है। सांप उसका शत्रु और प्रिय शिकार माना जाता है और यदि गरुड़ वहां हैं तो फिर वहां सांप भी बहुतायत में होने चाहिएं, क्‍योंकि कोई भी वन्‍यजीव पर्यावरण, भोजन और सुरक्षा की पर्याप्‍त उपलब्‍धता पर ही अपने रहने का स्‍थान चुनता है। बहरहाल रांची विश्‍वविद्यालय के प्रोवीसी जूलॉजिस्ट प्रोफेसर मोहम्‍मद रजीउद्दीन बहुत उत्साहित हैं और कहते हैं कि उन्‍हें वहां गरुड़ देखने को मिले हैं। उनका कहना है कि पक्षीराज गरुड़ को यहां के जंगलों में अपने वंश की वृद्धि का अनुकूल पर्यावरणीय वातावरण मिला हुआ है।
प्रोफेसर मोहम्‍मद रजीउद्दीन को गरुड़ के परिवार देखकर बड़ी ‌राहत मिली है। वे उनकी बड़ी सावधानी से देख-भाल भी कर रहे हैं। उन्‍होंने देखा कि गांव के पेड़ों पर पक्षीराज गरुड़ अपना घर बनाए हुए हैं और अपने परिवार-बच्‍चों में मस्‍त हैं। जब इतनी बात है तो यहां इसके एक और पक्ष का जिक्र करना भी बड़ा प्रासंगिक होगा। वो यह कि इसे भी एक चमत्‍कारी संयोग कहा जाएगा, क्‍योंकि भगवान श्रीराम ने भी सीता और लक्षमण के साथ अपने वनवास का एक लंबा समय झारखंड के इन्‍हीं घने जंगलों में बिताया था। रामायण के कथानक के अनुसार भगवान श्रीराम और लक्षमण पर रावण के पुत्र मेघनाद के नागों से प्राणघातक हमले से गरुड़ ने ही उनको मुक्‍त कराया था, इस पर प्रसन्‍न होकर श्रीराम ने गरुड़ को पक्षीराज के अलंकरण से सुशोभित किया था। हिंदुओं में मृत शरीर के अंतिम संस्‍कार के बाद की जाने वाली क्रियाओं में इन्‍हीं के नाम पर विख्‍यात गरुड़ पुराण का वाचन किए जाने की परंपरा है, जिसमें आध्‍यात्‍म और जीवन में वैराग्‍य की शक्‍तियों का वर्णन करते हुए पक्षीराज गरुड़ के श्रीराम और लक्षमण के मृतप्राय जीवन पर निःस्‍वार्थ महा उपकार का फल बताया गया है, उसमें कहीं यह भी कहा गया है कि सूर्य, चंद्र और अन्‍य गृहों की अंतहीन आयु और ब्रह्मांड में उनकी कीर्ति का कारण ही यही है कि वे सभी जड़ और चेतन पर सदैव महा उपकार करते हैं।
अब जीव और पक्षी विज्ञान पर पर्यावरण, भौगोलिक उथल-पुथल और मानवजनित खतरों पर आते हैं, जिनको लेकर पर्यावरण और वन्‍यजीव प्रेमी बहुत ‌चिंतित हैं और वे वन्‍य और पक्षी जीवन बचाने के लिए संघर्षरत हैं। प्रोफेसर एम रजीउद्दीन की गाइडेंस में रिसर्च कर रही स्कॉलरों की टीम पिछले साल 11 जनवरी को सर्वे करने उतासारा गांव पहुंची थी। सर्वे के दौरान एक बरगद के पेड़ पर बड़ा घोंसला देख रिसर्चरों की टीम रुकी। बरगद पर करीब 40 फीट ऊंचाई पर बने घोंसले से गरुड़ पक्षी निकला। इसके बाद उसके दो बच्चे बाहर आए। पेड़ पर दो और घोंसले थे, जिनमें भी गरुड़ के बच्चे दिखे। शोध टीम ने पाया कि गरुड़, घोंसले के निर्माण में बांस की सूखी हुई डंठल और लकड़ी का उपयोग करते हैं। इसके चारों ओर पत्ते की बाड़ लगाते हैं। एक घोंसले में दो वयस्क व अंडे या बच्चे के रहने की पर्याप्त जगह होती है। घोंसला लगभग तीन फीट का होता है। अक्टूबर-नवंबर में गरुड़ अंडे देते हैं। मार्च से अप्रैल तक बच्चे उड़ान भरने के काबिल हो जाते हैं। नवंबर 2013 के दूसरे हफ्ते में टीम के सदस्यों ने गरुड़ के अन्य ठिकानों की भी सूक्ष्म जांच की। बरगद के अलावा इमली और सेमल के पेड़ पर भी 11 घोंसले दिखाई दिए। इनमें से दस में दो-दो और एक घोंसले में गरुड़ के चार बच्चे थे। ये घोंसले भी 40 से 50 फीट की ऊंचाई पर थे।

पक्षीराज गरुड़ को जीव विज्ञान में लेपटोटाइल्स जावानिकस कहते हैं। यह इंटरनेशनल यूनियन कंजरवेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट यानी विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में है। झारखंड में गरुड़ की ब्रीडिंग की जानकारी टीम ने वल्चर कंजरवेशन सेंटर, पिंजौर (हरियाणा) के डायरेक्टर डॉ विभू प्रकाश को दी। डॉ विभू ने पक्षी की उचित देख-रेख के सुझाव दिए हैं। वर्ल्ड लाइव इंटरनेशनल की रिपोर्ट (2013) के अनुसार दुनिया में मात्र साढ़े छह हज़ार से आठ हज़ार गरुड़ बचे हैं। वर्ष 2012 की रिपोर्ट में इसकी संख्या लगभग पांच हज़ार बताई गई थी। चीन में तो गरुड़ विलुप्त हो गया है। भारत के बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में गरुड़ के होने के प्रमाण मिले हैं। लेपटोटाइल्स जावानिकस (गरुड़) झारखंड में पहली बार देखने को मिला है। इसका रिसर्च पेपर प्रकाशित करने के लिए जर्नल ऑफ बांबे नेशनल हिस्ट्री सोसायटी ने स्वीकार कर लिया है।

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