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Saturday 11 October 2014 06:35:24 AM
नई दिल्ली। बच्चों को श्रम जैसी पीड़ादायक त्रासदियों से बचाने के लिए संघर्षशील भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान में स्वयं पढ़ाई करते हुए दूसरी बालिकाओं की शिक्षा पर काम करते हुए जानलेवा हमले का शिकार बनी मलाला युसुफज़ई दोनों को संयुक्त रूप से नोबल शांति सम्मान दिया गया है। पूरी दुनिया के लिए यह सम्मान बेहद प्रेरणा का प्रतीक है। शांति सम्मान के लिए मलाला युसुफज़ई का चयन आतंकवाद और उन लोगों पर एक करारी चोट के समान है, जो बालिकाओं को जरूरी शिक्षा से दूर रखते हैं। दुनिया में आतंकवाद को हतोत्साहित करने के लिए मलाला युसुफज़ई को इस सम्मान की घोषणा का यह बड़ा सही वक्त माना जा रहा है।
अभी भी कोई भूला नहीं है कि पाकिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों ने इस बच्ची पर स्कूल बस में जाते वक्त किस तरह ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर उसकी जान लेने की कोशिश की थी, मगर वह लंबे समय तक जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष करते हुए बच गई और आज उसे दुनिया के शांतिदूत का दर्जा मिला है। मलाला युसुफज़ई का कसूर केवल इतना था कि वह अपने आस-पास की गरीब बच्चियों को पढ़ने में मदद क्यों कर रही है और जब तालिबान यह हुक्म दे चुका है कि लड़कियों को पढ़ना नहीं है तो वह स्वयं भी पढ़कर उसके हुक्म की उदूली क्यों कर रही है, यह हुक्म नहीं मानने पर मलाला युसुफज़ई पर स्कूल बस में ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं गईं थीं। इस लोमहर्षक घटना का पूरी दुनिया ने संज्ञान लिया था, और तालिबानी नेताओं की भर्त्सना की गई थी। नोबेल शांति सम्मान मिलने से मलाला युसुफज़ई आज शांतिदूत बन गई है।
मलाला युसुफज़ई इस समय विदेश में है और वहीं रहकर वह बालिकाओं की शिक्षा के मिशन पर काम कर रही है। तालिबान से उसकी जान को आज भी बड़ा खतरा है, क्योंकि तालिबानी नेता अपने चरमपंथी मिशन के लिए मलाला युसुफज़ई को खतरा मानते हैं। वह सुरक्षा घेरे में होती है, लेकिन उसका हौसला एक चट्टान की तरह है और वह शांति एवं शिक्षा के अपने मिशन पर सदैव की तरह काम कर रही है। मलाला युसुफज़ई को और भी कई पुरस्कार मिले हैं। वह अमरीका के राष्ट्रपति बाराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा एवं उनकी दोनों बेटियों के साथ व्हाइट हाउस में नाश्ते पर जा चुकी है। नोबेल शांति सम्मान मिलने पर मलाला युसुफज़ई ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव खत्म करने, शांति स्थापित करने और दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से अपने नोबेल शांति सम्मान ग्रहण करने के कार्यक्रम में आने का अनुरोध किया है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से बाल श्रम समाप्त करने के लिए कैलाश सत्यार्थी को नोबल शांति सम्मान मिलने पर उन्हें बधाई दी है। राष्ट्रपति ने कहा कि इस सम्मान को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्याओं के समाधान में भारत के नागरिक समाज के योगदान को मान्यता देने और देश से बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने में सरकार के साथ सहयोग की उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोबल शांति सम्मान मिलने पर कैलाश सत्यार्थी को बधाई संदेश में कहा कि कैलाश सत्यार्थी की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है, कैलाश सत्यार्थी ने अपना जीवन ऐसे कार्य में लगाया, जिसका समूची मानवता के लिए बेहद महत्व है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं उनके इन प्रयासों के लिए उनका अभिनंदन करता हूं। प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की छात्रा और बालिकाओं की पढ़ाई के लिए संघर्षशील मलाला युसुफज़ई को भी नोबल शांति सम्मान मिलने पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मलाला युसुफज़ई का जीवन दृढ़ता और साहस से भरा है, मैं उन्हें भी नोबल शांति सम्मान मिलने पर बधाई देता हूं।
उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने भी भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला युसुफज़ई को संयुक्त रुप से 2014 का नोबल शांति सम्मान मिलने पर बधाई दी है। अपने बधाई संदेश में उन्होंने कहा कि दोनों असाधारण व्यक्ति इस सम्मान के हकदार थे, जिन्होंने बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए निडर होकर अथक कार्य किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इनसे सभी को समाज में बच्चों के प्रति होने वाले निंदनीय अपराधों और अन्याय को समाप्त करने और उन्हें शिक्षित करने के लिए मिलकर कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी।
केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने बाल श्रम और बच्चों की तस्करी के खिलाफ शुरु किए गए आंदोलन के लिए नोबल शांति सम्मान प्राप्त करने पर कैलाश सत्यार्थी को बधाई दी है। गृह मंत्री ने कहा कि कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकारों के हिमायती हैं, जिनके कार्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। राजनाथ सिंह ने कैलाश सत्यार्थी के साथ पाकिस्तान की छात्रा मलाला युसुफज़ई को भी नोबल शांति सम्मान मिलने पर बधाई दी है। गृह मंत्री ने कहा कि मलाला के पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा के लिए साहसिक संघर्ष ने दक्षिण एशिया में अनेक लोगों को प्रेरणा दी है।