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अब दंड संहिता की समीक्षा जरूरी-राष्ट्रपति

प्रणब मुखर्जी ने भारतीय कानून पर प्रकाश डाला

'कानून का शासन राष्ट्र का मूलभूत सिद्धांत'

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Sunday 28 February 2016 04:17:58 AM

president pranab mukherjee

कोच्चि। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने केरल के कोच्चि में इस 26 फरवरी को अभियोजन निदेशालय में भारतीय दंड संहिता की 155 वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह का उद्घाटन किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि निःसंदेह आपराधिक कानून भारतीय दंड संहिता का आदर्श कानून है, हालांकि इक्कीसवीं सदी की बदलती जरूरत को पूरा करने के लिए इसकी व्यापक समीक्षा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पिछले 155 वर्षों में दंड संहिता में कुछ ही बदलाव हुए हैं, इसकी घोषित दंडनीय और अपराधों की शुरूआती सूची में बहुत कम ही अपराध शामिल किये गए हैं, अब भी कई नए अपराध हैं, जिन्हें संहिता में उचित ढंग से परिभाषित करते हुए शामिल किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि नागरिकों और संपत्ति की सुरक्षा राज्य के जरूरी कर्तव्य हैं, आपराधिक कानून की जरूरत अपराधियों को दंडित कर अपराध की पुनरावृत्ति रोकना है, आपराधिक कानून सामाजिक संरचना और सामाजिक दर्शन में जरूरी संवेदनशील बदलावों से जुड़े हैं, इसमें निहित तत्व समकालीन सामाजिक संवेदनशीलता और बुनियादी मूल्यों को रेखांकित करने वाली सभ्यता का समर्पण भरा एक दर्पण है। राष्ट्रपति ने कहा कि ‘कानून का शासन’ आधुनिक राष्ट्र का मूलभूत सिद्धांत है, यह सर्वकालिक कार्यक्रम है, इसलिए कानूनों को लागू करने वालों और विशेष रूप से पुलिस बलों का कर्तव्य है कि वे ईमानदारी और समर्पण की भावना के तहत कानून-व्यवस्था लागू करने के अपने बेहद जरूरी कर्तव्य का पालन करें।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि त्वरित कार्रवाई और कानून लागू करने में निष्पक्षता में पुलिस की छवि छिपी हुई है, हमारे देश में पुलिस को कानून लागू करने वाले निकाय के रूप में अपनी भूमिका में काफी तत्पर रहते हुए आगे-आगे चलना चाहिए, इन्हें विकास और प्रगति में सक्रिय भागीदारी भी निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान के संस्थापक जनकों ने हमारे लोकतंत्र के जरूरी तत्वों के रूप में समावेशी, सहिष्णुता, आत्मसंयम, ईमानदारी, सम्मान और महिलाओं की सुरक्षा सहित बुजुर्गों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा पर ध्यान देने पर जोर दिया था। उन्होंने कहा कि आपराधिक कानून की निश्चित अनिवार्यता अपराध के दोहराव को रोकना और अपराधियों को दंडित करना है, यह सामकालीन सामाजिक चेतना और बुनियादी मूल्यों पर बल देते हुए किसी सभ्यता के आस्थापूर्ण दर्पण और उसकी झलक भी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि कानून के शासन को कायम रखने में लोक अभियोजकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, यह आपराधिक न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को समाहित करने और उसे मजबूत करने में अहम भूमिका निभाते हैं, अभियोजकों को सुनिश्चित करना होता है कि पीड़ितों के हितों की देखभाल करते हुए वे दोषियों को उचित मुकदमे के दौर से गुजारें, इसलिए लोक अभियोजकों को कई तरह के अपराधों के असरदार जवाब के लिए भरपूर जानकारियों से लैस होने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने लोक अभियोजकों से अपराध नियंत्रण नीतियां बनाने में ज्यादा सामरिक और ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इनके प्रयासों से देश में निष्पक्ष, पारदर्शी और कुशल आपराधिक न्याय प्रणाली का प्रचलन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की 155वीं वर्षगांठ पर सालभर चले समारोहों के विदाई आयोजन के लिए केरल अभियोजक निदेशालय बधाई का पात्र है। उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता ब्रिटिश दौर की विधायी व्यवस्थाओं में से एक है, इसकी सत्यता समय की कसौटी पर खरी है, सर जेम्स इस्टेफन ने मजबूत कानून के गुणों का जिक्र किया था, जिन्हें मैं उद्धृत करता हूं-एक व्यक्ति के लिए भरोसे के साथ किसी खास चीज को पढ़कर समझना ही पर्याप्त नहीं है, जरूरी है कि किसी व्यक्ति के गलत पढ़ने के बाद भटक जाना कि हमें यह नहीं करना है। उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता में अपराधों की परिभाषा को आज अच्छाई के लिए स्वीकारा गया है, इसकी कुछ प्रासंगिकता में सुधार जरूरी है, क्योंकि साइबर अपराध के नए रूप भी उभर रहे हैं।
प्रणब मुखर्जी ने ज़िक्र किया कि आजादी से पहले प्रथम विधि आयोग ने दंड संहिता का खाका खींचा था, इसके निकाय के अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले थे और निकाय के सदस्य के रूप में जेएम मैक्ल्योड, जी डब्ल्यू एंडरसन और एफ मिलेट थे, जिन्होंने न सिर्फ अंग्रेजी और भारतीय कानूनों का खाका खींचा, बल्कि 1825 में एडवर्ड लिवंगस्टन के लूसियाना नागरिक संहिता और नेपोलियोनिक संहिता की रचना भी की। उन्होंने कहा कि दंड संहिता तो जनवरी 1862 के पहले दिन से ही लागू हो गई थी, भारतीय दंड संहिता के उद्देश्य भारत में सामान्य दंड विधान मुहैया करना था, इसके लिए कानूनों की रचना हुई जो अपराधों से निपटने के लिए बने। उन्होंने कहा कि शुरू में तो संहिता में 23 अध्याय थे, लेकिन बाद में ये 26 हो गए, अपराधों को दो श्रेणियों में रखा गया एक-राज्य और जनता के खिलाफ अपराध और दूसरी जनता और संपत्ति के खिलाफ अपराध, भारतीय दंड संहिता के दीवानी कानून के वर्गीकरण को हू-ब-हू स्वीकार किया गया।
राष्ट्रपति ने कहा कि सार्वजनिक और निजी अपराधों में कानून के विभाजन को मशहूर कानूनविदों की मंजूरी मिली, उन्होंने संपूर्ण और अपेक्षित कर्तव्यों के विभाजन के संदर्भ में उसे उचित ठहराया। उन्होंने कहा कि सम्यक कर्तव्यों के उल्लंघन से व्यापक रूप से समुदाय प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं, इसलिए इस श्रेणी में शामिल अपराधों को गंभीर नहीं माना गया है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 से अस्तित्व में आया, इसके अंदर बेहतरीन दस्तावेज देश के नागरिकों के लिए शामिल हुए और उन्हें निश्चित गारंटी वाले अधिकार दिए गए। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन और संपत्ति की सुरक्षा संविधान देता है, संविधान में यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता में मौजूद व्यापक ढांचे की छाया है, निःसंदेह दंड संहिता विधायी आदर्श अंश है, जो आपराधिक कानून की अहम संहिता है।

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