स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 14 May 2016 07:32:21 AM
उज्जैन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज उज्जैन के पास निनौरा में सिंहस्थ के सार्वभौमिक संदेश पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने इंदौर हवाई अड्डे पर श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना की अगुवानी की। राष्ट्रपति सिरिसेना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंदौर से साथ-साथ ही आए और दोनों नेता एक साथ ही सम्मेलन स्थल पर पहुंचे। उपस्थित जनसमूह, जिसे कुंभ मेले से इतर 'विचार कुम्भ' के रूप में भी वर्णित किया गया है, को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन का एक नए प्रयास के जन्म के रूप में उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में जो घटित होता रहा है, यह उसका एक आधुनिक संस्करण था, प्राचीन काल में समाज के चिंतक नए दृष्टिकोण का चिंतन करने और उसे समाज को उपलब्ध कराने के लिए कुंभ मेला स्थलों पर एकत्र होते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय परंपराओं और संस्कृति पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि भिक्षुक का मंत्र है, जो व्यक्ति भिक्षा दे उसका भी भला और जो न दे उसका भी भला। प्रधानमंत्री ने भारतीय संस्कृति को परिभाषित करने वाले मूल्यों और मानवतावाद के अनेक उदाहरण दिए। सिंहस्थ घोषणा, जो विश्व को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा समर्पित थी, के शुभारंभ का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए नई बहस की शुरुआत होगी। प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि वनीकरण और बालिकाओं की शिक्षा जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए 'विचार कुंभ' हर साल आयोजित किया जाना चाहिए।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम लोगों का एक स्वभाव दोष रहा है, हम अपने आपको हमेशा परिस्थितियों के परे समझते हैं, हम उस सिद्धांतों में पले-बढ़े हैं कि जहां शरीर तो आता और जाता है, आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हम लोग हैं और उसके कारण हमारी आत्मा की सोच न हमें काल से बंधने देती है, न हमें काल का गुलाम बनने देती है। उन्होंने कहा कि कुंभ मेले की परंपरा कैसे प्रारंभ हुई होगी उसके विषय में अनेक प्रकार के विभिन्न मत प्रचलित हैं, कालखंड भी बड़ा, बहुत बड़ा अंतराल वाला है। उन्होंने कहा कि ये परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्रा की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। उन्होंने कहा कि कुंभ नासिक, उज्जैन, हरिद्वार में होता है, प्रयागराज में 12 साल में एक बार होता है, उस कालखंड को हम देखें तो लगता है कि विशाल भारत को अपने में समेटने का प्रयास कुंभ मेले से होता था, संत-महंत, ऋषि, मुनि हर पल समाज के सुख-दुख की चर्चा और चिंता करते थे, समाज के भाग्य और भविष्य के लिए नई-नई विधाओं का अन्वेषण करते थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश का आह्वान किया था कि सप्ताह में एक दिन शाम का खाना छोड़ दीजिए, देश को अन्न की जरूरत है और इस देश के कोटि-कोटि लोगों ने इसको अपने जीवन में चरितार्थ करके दिखाया था, इसी प्रकार मैने देशवासियों से अपील की थी कि अगर आप समर्थ हैं तो आप भी रसोई गैस की सब्सिडी छोड़ दीजिये, आज मैं देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों के सामने सर झुका कर कहना चाहता हूं और दुनिया के सामने कहना चाहता हूं कि एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी है। उन्होंने कहा कि ये गैस गरीब के घर में जानी चाहिए, जो मां लकड़ी का चूल्हा जलाकर एक दिन में चार सौ सिगरेट जितना धुआं अपने शरीर में ले जाती है, उस मां को लकड़ी के चूल्हे से मुक्त करा के रसोई गैस देना चाहिए और उसी में से संकल्प निकला कि तीन साल में पांच करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर देकर के उनको इस धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति दिला देंगे। उन्होंने कहा कि यह पर्यावरण का मुद्दा है।