यज्ञपुरूष गहिरे
काठमांडू। विश्व विख्यात एवरेस्ट की चोटी और हिमालय के विहंगम दृश्यों की अलौकिक छटा से सम़द्घशाली नेपाललोकतंत्र का सपना देखते-देखते विघटन के रास्ते पर चल पड़ा है। भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू राष्ट्र के रूप में नेपाल अपनी भाषा, संस्कृति, पहनावे और आध्यात्म की अलग ही पहचान रखता है। इसकी अर्थव्यवस्था पर्यटन और भारत के सहयोग पर आधारित है। भगवान शिव के प्रसिद्घ पशुपति नाथ मंदिर, अद्भुत प्राकृतिक दृश्य और हिमालय में ऋषि-मुनियों की कंदराएं देखने के लिए दुनिया भर के सैलानी यहां आते हैं। उन्हें अभी नहीं मालूम है कि अब तक वे जिस नेपाल में आते रहे हैं, वो अब वैसा नेपाल नहीं रहा है। यहां लोकतंत्र के कुछ नए ‘ठेकेदार’ अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं के लिए नेपाल को हिंसक और कुछ दूसरे देशों की साजिशों की सरजमीं के रूप में तेजी से तब्दील कर रहे हैं। यहां की भोली-भाली जनता लोकतंत्र का मतलब समझने से पहले ही विघटनकारियों की आग उगलती कार्बाइनों और मशीनगनों के सामने धकेल दी गई है। नेपाल के उदारवादी नेता हाशिए पर चले गए हैं और माओवादी बंदूक की नोक पर अपने हिसाब से लोकतंत्र की परिभाषा तय करने लग गए हैं। यहां की राजशाही के खिलाफ नेपाली इसलिए एक हुए थे कि उन्हें समझाया गया था कि नेपाल को राजशाही से भी अच्छा शासन और स्वतंत्रता मिलेगी, लेकिन उल्टा हुआ। नेपाल के हाथ में इन दोनों में से कुछ भी नहीं आया है। राजशाही से तो नेपाल मुक्त हो गया, लेकिन उसकी लोकतंत्र की सांसें माओवादियों और मधेशियों की हिंसा में अटक गई हैं।
यूं तो नेपाल में पिछले तीन दशक में लोकतंत्रवादियों और राजशाही के बीच हिंसक तकरार चली आ रही है। लेकिन नेपाल के महाराज वीरेंद्र सहित परिवार के अपने ही पुत्र ने किए निर्मम कत्लेआम के बाद नेपाल बिखर गया। उनके भाई महाराज ज्ञानेन्द्र और उनके सुपुत्र राजकुमार पारस के सार्वजनिक उदंड व्यवहार एवं काले कारनामों से नेपाल की आम जनता का यह राजपरिवार तेजी से विश्वास खोता गया जिससे नेपाल में जनता के बीच लोकतंत्र के लिए आंदोलन के रास्ते खुलते गए। एक समय था जब यहां का कोई भी नागरिक राजशाही और उसके परिवार की बुराई सुनना पसंद नहीं करता था, मगर आज नेपालियों में इतना बदलाव आ गया है कि राजशाही का परंपरागत राजमहल नारायण हिति भी महाराज ज्ञानेन्द्र से खाली कराकर उसे राष्ट्रीय्र धरोहर बनाने की कार्रवाई चल रही है। नेपाल नरेश के लगभग सभी अधिकारों को नेपाली संसद ने समाप्त कर दिया है। माओवादियों के दबाव के कारण एक मात्र हिंदू राष्ट्र का स्वरूप भी पूरी तरह से खतरे में है। माओवादियों ने इन वर्षों में जिस प्रकार नेपाल को हिंसा की आग में धकेला है, उससे नहीं लगता कि आने वाले समय में नेपाल अपनी लोकतांत्रिक और आर्थिक प्रगति का रास्ता चुन सकेगा। यहां माओवादी कभी कत्लेआम करते हैं और कभी नेपाल सरकार का हिस्सा बनते हैं। इनके कारण नेपाल की धरती पर ऐसे-ऐसे विघटनकारी संगठनों और गिरोहों ने पनाह ले रखी है जो पड़ौसी देशों में अपनी विघटन और आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं।
नेपाल में हमेशा से चीन की दिलचस्पी रही है और वह यहां के भौगोलिक रास्तों और राजमार्गों पर अपना भारी धन खर्च कर रहा है। चीन ने रक्षा हितों को ध्यान में रखते हुए अपने रक्षा बजट में काफी बढ़ोत्तरी की है। उसने नेपाल में अपने पैर पसार लिए हैं। भारत के एक बार नेपाल से बुरी तरह से संबंधखराब हो चुके हैं, नेपाल भारत के प्रति शशंकित रहने लगा है। दोनो के बीच आवाजाही चाहे जितनी भी हो मगर संबंधों की पुरानी खाई अभी तक नहीं भर सकी है।ऐसा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था। उस समय नेपाल पर भारत ने किसी भी प्रकार के सामान की आवाजाही और स्वच्छंद आगमन पर पूरी रोक लगा दी थी, जिससे एक समय के लिए नेपाल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से दरक गई थी। बाद में नेपाल के भारत से संबंध सामान्य तो हुए लेकिन दोस्ताना नहीं रहे। इसी के बाद नेपाल में वहां के लोकतंत्र की हवा चलनी शुरू हो गई। इसमें माओवादियों का उदय हुआ और आज वह नेपाल के उदारवादी नेताओं की छाती पर मूंग दल रहे हैं। वह बंदूक के बल पर नेपाल की सत्ता पर हाथ साफ करना चाहते हैं। यह झगड़ा अब इतना बढ़ चुका है कि इसमें अमरीका तक कूद पड़ा है जिसने नेपाली संविधान सभा के चुनाव में अपनी भूमिका तय करते हुए दिलचस्पी जगजाहिर कर दी है। इससे नेपाल की सरजमीं पर चीन और अमरीका जैसी महाशक्तियों की भी राजनीति चलेगी जिसमें नेपाल का राजनीतिक और आर्थिक भविष्य पूरी तरह से दूसरों के रहमोकरम पर होगा। अमरीका ने इस चुनाव में बाकायदा अपना कंट्रोल रूम स्थापित करने का फैसला किया है। उसका तर्क है कि वह नेपाल में शांतिपूर्ण मतदान चाहता है। यह अलग बात है कि अमरीका के लिए यह चुनाव इस मायने में महत्वपूर्ण है कि ताकि यहां चीन समर्थित और माओवादियों का वर्चस्व स्थापित न हो जाए।
दुनिया का ऐसा कौन सा आतंकवादी संगठन है जिसका कि छोटा-बड़ा कार्यालय नेपाल की राजधानी काठमांडू और उसके दूसरे शहरों में नहीं है। इतिहास में जाएं तो वहां की आतंरिक राजनीति में भी नेपाल के बाहरी लोगों का जबरदस्त हस्तक्षेप रहा है। दूसरे देशों के लोग यहां बसकर नेपाली संसद के लिए चुने जा चुके हैं। नेपाल में आर्थिक स्थिति काफी चिंताजनक है और यहां अधिकांश आबादी का आर्थिक जीवन स्तर काफी नीचे है। नेपाल की गरीब जनता यहां विकास के सपने देखती है और मौत के सौदागर उन सपनों को अपने हिंसक अभियानों से जोड़कर देखते हैं। यही कारण है कि भारत और दूसरे देशों के कई बड़े माफिया गिरोहों और अपराधियों ने नेपाल आकर शरण ली और राजनीति भी की। उसी की यहां नर्सरी है। यहीं नहीं उन्होंने नेपाल में निजी क्षेत्र के प्रमुख व्यवसायिक केंद्रों को भी अपने प्रभाव में ले रखा है। नेपाल सरकार के सामने एक नहीं ऐसी कई दुविधाएं हैं। नेपाल में लोकतंत्र का सबसे पहला सामना यहां की ध्वस्त अर्थ व्यवस्था से हुआ है, जिसमें कोई भी देश अपना योगदान देने से पहले अपनी शर्तों पर नेपाल की मदद करने की बात करता है और कर रहा है।
पड़ौसी देश भारत एक ऐसा देश है,जहां सर्वाधिक नेपाली बेरोजगार वहां विभिन्न तरीकों से रोजगार में लगे हुए हैं। उनके लिए भारत सबसे ज्यादा अनुकूल और सहायता करने वाला देश माना जाता है। बहुत घरों और व्यवसायिक संगठनों में काम करने वाले नेपाली बहुत हैं। यही नहीं नेपाल के बहुत से नागरिक आज भारतीय राजनीति में गहरी दिलचस्पी लेकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। अनगिनत नेपाली नेताओं ने अपने गर्दिश के दौर में भारत में पनाह ली है। भारत और नेपाल के सामाजिक आर्थिक सरोकार भी लगभग एक से हैं। अंतर है तो केवल भाषा और पहचान का। हाल के वर्षों में नेपाल की राजनीतिक स्थिति और राजनीतिक सक्रियता के तौर तरीकों में भारी परिवर्तन आया है। नेपाल के नेताओं ने भारतीय लोकतंत्र और वहां के जनजीवन की स्वतंत्रता को देखकर अपने यहां जो आंदोलन खड़ा किया है उससे वह नेपाल को वैसा लोकतंत्र नहीं दे पाए, जिसकी इस देश की जनता को तमन्ना और आवश्यकता थी। अभी से ही नेपाल की जनता के बीच यह सुर उठने लगे हैं कि इससे अच्छा तो वह राजशाही में ही खुश थी। ऐसे लोकतंत्र की नेपाल जनता को जरूरत नहीं है, जिसमें रोजाना बंदूकें और मशीनगनें आग उगलती रहें।
गिरजा प्रसाद कोइराला के नेतृत्व में बनी सरकार, माओवादियों के सहयोग लेने के कारण उनकी हिंसक गतिविधियों और मनमानियों को रोक पाने में कमजोर ही नहीं बल्कि असहाय साबित हो रही है। माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड रोजाना इस सरकार के खिलाफ और समर्थन में खड़े रहते हैं। उनका यही पता नहीं चल रहा है कि वह लोकतंत्र चाहते हैं या राजशाही की वापसी या बंदूकों के बल पर यहां की सत्ता पर अपना कब्जा? उनका संगठन नेपाल में पूरी तरह से विघटन की स्थिति बनाए हुए है। वह आखिर क्या चाहते हैं या जो भी चाहते हैं, उसको प्राप्त करने का उनका तरीका इतना हिंसक और विवादास्पद है कि वह दिन दूर नहीं जब नेपाल में आशांति का लाभ उठाते हुए चीन इसे अपने कब्जे में लेने की कोशिश करेगा और उसके बाद पश्चिमी देश इसे अपना सामरिक ठिकाना बनाने के लिए नेपाल पर दबाव बनाएंगे। नेपाल की राजशाही खत्म होने के बाद अमरीका सहित कई प्रमुख देशों की दिलचस्पी नेपाल में बढ़ गई है, क्योंकि नेपाल की धरती अमरीका के सुरक्षा हितों की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। ऐसी ही स्थिति भारत की भी है, जिसका यहां से सुरक्षा और उसके आंतरिक मामलों से गहरा संबंध है। नेपाल में यदि तटवर्तीय देशों की सबसे ज्यादा गरज है, तो वह भारत है।लेकिन नेपाल में चीन की बढ़ती दिलचस्पी से यह देश लोकतंत्र के सपने देखने के चक्कर में विघटन जैसों खतरों के सामने जाकर खड़ा हो गया है। चीन की नेपाल में दिलचस्पी एक कारण यह भी है कि तिब्बत के लोग नेपाल में भारी संख्या में हैं जो कि तिब्बत के लिए संघर्ष करते हैं जिनके बारे में चीन की धारणा है कि वह चीन के खिलाफ विघटनकारी गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। सब जानते हैं कि तिब्बत चीन की एक कमजोर कड़ी है और चीन तिब्बतियों के लिए नेपाल को शरणगाह नहीं बनने देना चाहता।
इस साल दस अप्रैल को नेपाल में संविधान सभा के चुनाव होने हैं। यहां पर अमरीका की दिलचस्पी इससे जगजाहिर होती है कि उसने इन चुनावों में निगरानी करने के लिए एक कार्रवाई केंद्र की स्थापना की है। नेपाल के चुनाव आयोग के सचिव सुशील जंग राणा और नेपाल में अमरीका के राजदूत नेंसी जे पावेल ने एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं। कहने को अमरीकी राजदूत ने कहा है कि नेपाल चुनाव में सहायता का उद्देश्य वहां चुनाव को पूर्ण रूप से सफल बनाना है। लेकिन सच्चाई यह है कि अमरीका बदलते हालात में नेपाल को किसी भी प्रकार से अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता। वह नेपाल में चीन की बढ़ती दिलचस्पी के कारण पूरी तरह से वहां अपनी मौजूदगी चाहता है। उधर नेपाल के मुख्य चुनाव आयुक्त भोजराज पोखरेल ने नेपाल सरकार और युनाईटेड मधेशी फ्रंट के बीच हुए समझौते का स्वागत किया है। नामांकन पत्र जमा करने की अंतिम तारीख भी बढ़ा दी गयी है, जिससे सभी दल चुनाव में हिस्सा ले सकें। लेकिन यहां पर माओवादी और मधेशियों के बीच खतरनाक टकराव को देखते हुए नहीं लगता कि चुनाव शांतिपूर्ण हो सकेंगे। अमरीका की मौजूदगी माओवादियों को हाशिये पर तो ढकेल सकती है, लेकिन उसकी मजबूरी है कि वह और कहां-कहां अपनी और मित्र देशों की शांति सेनाएं भेजे।
नेपाल अपनी आंतरिक सुरक्षा के लिए काफी चिंतामग्न है। उसके माओवादियों के पास अति आधुनिक हथियार हैं, जो नेपाली सेना से मोर्चा ले रहे हैं। नेपाल के पास रक्षा मामलों का उतना बड़ा बेड़ा नहीं है कि वह अपनी नाभकीय और दूसरी शक्ति बढ़ा सके। वहां की आर्थिक हालात इतने दयनीय हैं कि नेपाल सरकार के सामने वहां के नागरिकों का जीवन स्तर सुधारने में ही वह दूसरों के आसरे है। यहां ऐसे समय पर राजनीतिक क्रांति आई है, जब नेपाल के पास अपने यहां नागरिक सुविधाओं और संसाधनों का भारी अभाव है। यहां पर एक गुट नेपाल की सत्ता पर सशस्त्र कब्जा चाहता है, जिससे नेपाल की शांति व्यवस्था फिलहाल बंधक है और यह हालात आगे भी जारी रहने की संभावना है। क्योंकि माओवादियों पर मौजूदा सरकार न लगाम लगा सकी है और न ही उनके खिलाफ बल प्रयोग में सफल हो सकी है।
भारतीय उपमहाद्वीप में नेपाल सबसे खूबसूरत देश माना जाता है। हिमालय की यह अद्भुत धरोहर है, जिसमें पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसे गांव और झरने तराशे गये पत्थरों से बने गांवों के मकान नेपाल की पुरानी सभ्यता की कहानी है। यहां पीठ पर वजन लाद कर लकडि़यां बीनती महिलाएं बच्चे और अपना सामान पीठ पर ढोते पुरूष देखकर नेपाल का भोलापन अपनी ओर खींचता है। यहां बस्तियों के सामने से नदियों और झरनों की कल-कल करती आवाजें सुनकर नहीं लगता कि नेपाल बन्दूकों से गरज रहा है। यहां की हरियाली को किसी की नजर न लगे, लेकिन उसकी तारीफ करने की कहां से शुरूआत हो और कहां पर अंत, शब्दों में कुछ लिखा नहीं जा सकता। प्राकृतिक सौन्दर्य यहां की ऐतिहासिक समृद्घि है। जैसे-जैसे आप नेपाल की समुद्र जैसी घाटियों की ओर बढ़ते हैं तो आपके कदम पीछे लौटने का नाम नहीं लेते। मन यहीं पर बार-बार खोता है-उसे ढूंढने के लिए कितने आगे निकल गए, पता ही नहीं चलता।
दुनिया नेपाल क्यों आती है? इसलिए आती है क्योंकि उसे यहां का प्राकृतिक नैसर्गिक सम्मोहन खींचता है। साहित्यकारों से लेकर कवियों तक को यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य का बखान करने के लिए नेपाल से ज्यादा खूबसूरत धरती कहां मिलेगी? इसका यौवन सदाबहार है। पर्वत श्रृंखलाएं देखने पर मन ऊंचाईयों को छूने लगता है। भगवान शिव के इस अलौकिक देश में शाम और सवेरे मन्दिरों में जय शिव ओंकारा की आरती साक्षात शिव के दरबार की झांकी होती है। यहां के मंदिर और घाट आध्यात्म की प्रेरणा स्थली हैं। अफसोस कि आज नेपाल विघटन और हिंसा की नई पाठशाला बन रहा है। यहां हिंसक भीड़ में कोई टेलीफोन का खंभा ऊखाड़ रहा है तो कोई सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहा है। किसी के हाथ में पत्थर है तो किसी के हाथ में खुखरी। किसी के हाथ में मशीनगन है तो किसी के हाथ में कारबाइन। नेपाल ऐसा तो नहीं था। पृथ्वी के इस स्वर्ग की रक्षा का दायित्व सभी पर आ पड़ा है, खासतौर से उन पर जो नेपाल में हैं और लोकतंत्र की इच्छा रखते हैं।